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[१०२] शंका होवे तो गुरुसे पूछे या पुस्तकादि वांचे, अथवा दूसरा कोई पुस्तकादि वांचता होवे तो उपयोगयुक्त सुनता रहे.
१५- अपने घरसे सामायिक लेकर भगवान्के मंदिरमें आया होवे,वहां पासमें साधु न होवे तो भी भगवान्के समक्ष फिरसे सा. मायिक लेकर इरियावही पूर्वक आगमनकी आलोचना करके पीछे चैत्यवंदन, शास्त्रपाठ पढना गुणनादि धर्म कार्य करनेका बतलाया.
१६-उपाश्रयमें गुरु महाराज होवे,तो उपर मुजब सामायिक करनेकी विधि बतलायी है, ऐसेही पौषधशालामेभी सामायिक करनेकी विधि समझ लेना चाहिये.
१७– उपाश्रयमें गुरु महाराज न होवे, या समयके अभावसे कारणवश गुरु पास जाकर सामायिक करनेका अवसर न होवे और केवल अपने घरमेही छ आवश्यकरूप प्रतिक्रमण करनेकेलिये सामायिक ग्रहण करें,तो भी ऊपर मुजब स्त्रमासमणपूर्वक सामायिक मुहपत्तिके पडिलेहणका,सामायिक संदिसाहणेका व ठाणेका आदेश लेकर नवकारपूर्वक करेमिभंतेका उच्चारणकरके पीछेसे इरियावही पूर्वक अपना धर्मकार्य करे,मगर वहांसे गुरु पास जाने वगैरह कार्योंसे गमनागमन नहीं होनेसे आगमनकी आलोचना न करें. परंतु शेष बाकीकी उपर मुजब सर्व विधि करनेका बतलाया.
१८- यहांपर कोई पहिले इरियावही करके पीछे करेमिभंतेका उच्चारण करनेका कहतेहै,वोलोग शास्त्रोके भावार्थको नहींजाननेवालेहैं क्योंकि आवश्यकचर्णि-बृहवृत्ति वगैरह प्राचीनशास्त्रोंमें प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही साफ खुलासा पूर्वक कहा है।
१९- कभी गुरुके अभावमें अपनेघरमें या पौषधशालामें सामायिक करें,तब वहां "जाव नियम पज्जुवा सामि" ऐसा पाठ उच्चारणकरें और उपाश्रयमे गुरु समक्ष सामायिक करें, तब वहां “जावसाहू पज्जुवा सामि " ऐसा पाठ उच्चारण करें और इरियावही पू. र्वक अपने धर्मकार्यों में समय व्यतीत करनेका बतलाया.
२०-राजा-महाराजादि महर्द्धिक होवे,उन्होंको शहरकेरस्तोम नंगे पैर पैदल चलना योग्य न होनेसे वो अपने घरसे सामायिक लेकर गुरु पास उपाश्रयमें नहीं जावें, किंतु-हाथी, अश्व, पदातिक आदिक राज्यऋद्धिकी सौभा युक्त भेरी भंभादि वाजिंत्र सहित बडे आडंबर. से सामायिक करनेकेलिये गुरुपास आवे, उससे शासनकी प्रभाव.
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