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[१११] शास्त्रोको व ऐसे शासनप्रभावक गीतार्थ महापुरुषोंको विसंवादीका झूठा कलंक लगानेकाभी भय न करके अपना आग्रहकी प्रत्यक्ष असत्य बातको दृढकरनेके लिये ऐसे २ अनर्थ करते हैं । इसलिये आस्मार्थी भव भिरुयोंको ऐसा असत्य आग्रह छोडकर प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावहीकरने की सत्यवातको श्रद्धापूर्वक अंगीकार करनाही जिनाशानुसार होनेसे श्रेयरूपहै. इसीतरहसे आवश्यक चूर्णि-वृहद् वृत्ति लघुवृत्ति-पंचाशकचूर्णि-वृत्ति-श्रावकधर्म प्रकरणवृत्ति-योगशास्त्रवृत्ति वगैरह अनेकशास्त्रानुसार सामायिकमें प्रथमकरेमिभंते पीछे इरियावहीकी सत्य बातको निषेध करनेवाले और महानिशीथ दशवै कालिक-पंचाशक चूर्णि-उत्तराध्ययन-संघाचार भाष्य वृत्ति-धर्मरत्न प्रकरण वृत्ति वगैरह शास्त्रकारमहाराजोंके अपेक्षा विरुद्ध और अधूरे २ पाठोंके नामसे या किसीप्रकारकीभी कुयुक्तिसे सामायिक प्रथम इरियावही और पीछे करेमिभंते स्थापन करनेवाले आगमपंचागीके अनेक शास्त्रपाठोंके उत्थापनकरनेके दोषी बनते हैं. और खास अपने तपगच्छादिक सर्व गच्छोंके पूर्वाचार्योंकीभी आज्ञालोपने वाले बनते हैं [इसका विशेष खुलासा निर्णय उपरमें देखो] और तपगच्छमें पहिले तो प्रथमकरेमिभंते पीछेइरियावही करतेथे, इसलिये श्रीदेवेंद्रसूरिजी,श्रीकुलमंडनसूरिजी वगैरहोंने अपने२बनाये ग्रंथोमें प्रथमकरेमिभंते और पीछे इरियावही करनेका खुलासापूर्वक लिखाहै, मगर थोडे समयले अपने प्राचीन पूर्वाचार्योंके कथन विरुद्ध प्रथम इरियावहीकरनेका आग्रह चल पडा है, मगर जिनाज्ञाके आराधक आत्मार्थियोको ऐसाआग्रहकरना योग्यनहींहै। देखो-'सेनप्रश्न' में श्रीविजयसे नसूरिजीने सर्व पूर्वाचार्योंके और अपने गच्छकेभी पूर्वाचार्योंके वि. रुद्धहोकर सामायिक प्रथमइरियावही पीछेकरेमिभंते करनेका कहा है,मगर तोभी उन्हीकेही संतानीय अंतेवासी श्रीमानविजयजी और सु. प्रसिद्धन्यायाविशारदश्रीयशोविजयजीने 'धर्मसंग्रह'वृत्तिमें आवश्यक चूर्णि-पंचाशकचूर्णि-योगशास्त्रवृत्ति आदि अनेक शास्त्रानुसार प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावही करनेका खुलासा लिखा हैं, इसी तरहसे आत्मार्थियोंको अपने गच्छका या गुरुकाभी झूठ पक्षपातको त्याग करके प्रथम करेमिभंते पीछे इरियावहीकी जिनाजानुसार सत्य बात. को आवश्यमेवही ग्रहण करना उचित है
न्यायरत्नजी शांतिविजयजीने महानिशीथ, दशवकालिकादिक शास्रोके भिन्न २ अपेक्षावाले अधूरे २ पाठोंसे शास्त्रकारमहाराजोंके
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