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[५४ २४-देवानंदामाताकेगर्भ ८२ दिनगयेबाद त्रिशलामाताकेगर्भमें आनेको च्यवनकल्याणकपना प्रकटतयासिद्धकरनेकेलियेही स्वास क. ल्पसूत्रमें च्यवनकल्याणकके सर्व कार्य देवानंदामाता संबंधी वर्णन नहीं किये, किंतु त्रिशलामाता संबंधी वर्णन कियेहैं,तथा श्रीसमवायांगसूत्र वृत्तिमेभी देवानंदामाताके गर्भसे ८२ दिनगये बाद त्रिशलामाताके गर्भमें आनेको अलग २ भव गिनतीमें लियेहैं,और कल्पसूत्र त. था उन्हींकी सर्व टीकाओंमें तथाश्रीवीरचरित्रादिअनेकशास्त्रोंमेभी देवानंदामाताकेगर्भमे८२दिन गयेबाद आसोजवदी१३को त्रिशलामाता. के गर्भ में भगवान् आयेहैं, यह अधिकार बहुतविस्तार पूर्वक खुलासाके साथ कथन किया है, इसलिये देवानंदामाताकी कुक्षिसे जन्म होनेके बदले त्रिशलामाताकी कुक्षिसे जन्म होने संबंधी किसी तरह कीभी असंगतिरूप शंकाकभी नहींहोसकती.जिसपरभी असंगतिरूपशंका निवारण करनेकेलिये गर्भापहारका नक्षत्र बतलानेका कहकर उनमें अलगरभव गिनने,व १४महास्वप्नदेखनेवगैरह सर्व बातोको उ. डाकर दूसराच्यवनरूप गर्भापहारको कल्याणकपने रहित ठहरातेहैं, और उनको बहुततुच्छ समझकरबडीनिंदाकरतेहैं, सो भी मायावृत्तिसे तीर्थकरभगवान्की आशातनाकरनेरूप चौवीशवी बडीभूलकी है.
२५- श्रीऋषभदेव आदि तीर्थकरमहाराज पहिले होगये, तथा श्री सीमंधरस्वामि आदि वर्तमानमें हैं,उन्हीं सबीने श्रीमहावीरस्वामिके च्यवनादि छ कल्याणक कथनकियेहैं,उन्होकेही अनुसार गणधर-पूर्वधरादि पूर्वाचार्योंनेभी आचारांग, स्थानांगादि आगमोमेंभी च्यव. नादि छ कल्याणक कथनकिये हैं,उसीकेही अनुसार तपगच्छके पूर्वज वडगच्छके श्रीविनयचंद्रसूरिजीने कल्पसूत्रके प्राचीन निरूक्तमें, तथा चंद्रगच्छके श्रीपृथ्वीचंद्रसूरिजीने कल्पसूत्रके प्राचीन टिप्पणमें और श्रीपार्श्वनाथस्वामिकी पट्टपरंपरामें उपकेश गच्छीय श्रीदेवगुप्त सूरिजीने कल्पसूत्रकी टीकामे इत्यादि अनेक प्राचीन शास्त्रोमेभी खु. लासा पूर्वक च्यवनादि छ कल्याणकलिखे हैं। उसीकेही अनुसार त. पगच्छकेभी पूर्वाचार्य श्रीकुलमंडनसूरिजी वगैरहोंनेभी श्रीकल्पावचूरि आदिक ग्रंथों में च्यवनादि छ कल्याणकलिखे हैं, इसलिये श्री तीर्थकर-गणधर-पूर्वधरादि पूर्वाचार्योंके प्राचीन समयसेही आगमानुसार आत्मार्थी सर्वगच्छवाले च्यवनादि छ कल्याणक माननेवाले थे, जिसपरभी आगमादि सर्व प्राचीनशास्त्रोके प्रमाणों को जान बुझ. कर छुपाकरके या अज्ञानतासे 'श्री जिनवल्लभसूरिजीने चितोडमें
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