Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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ऐश्वर्ययुक्तः, भवस्य वा संसारस्य भयस्य वा-त्रास- | उपा० ५। भक्ष्यं-खण्डखाद्यम्। सूर्य. २९३। भक्ष्यम्। स्यान्तहेतुत्वाद् नाशकारणत्वाद भवान्तो भयान्तो वा। ओघ० १५९। भक्ष्यं-खरविशदमभ्यवहार्यम्। सूत्र० ३४३। स्था० १२३। भदन्त ! गुरोरामन्त्रणं, ततश्च हे भदन्त ! भक्ष्य-खण्डखादयादि। स्था० ११८ प्रश्न. १६३| भग. कल्याणरूप ! सुखरूप इति वा 'भदि कल्याणे सुखे च' ३२६। भक्ष्य-मोदकादि। प्रश्न.1 इति वचनात्, प्राकृतशैल्या वा भवस्य-संसारस्य भक्खराभा- गोत्रविशेषः। स्था० ३९० भयस्य वा-भीतेरन्तहेतुत्वाद भवान्तो भयान्तो वा भक्तपरिज्ञा- भक्तस्य-भोजनस्य यावज्जीवं प्रत्याख्यानं तस्यामन्त्रणं हे भवान्त ! भयान्त ! वा, भान् वा
यस्मिंस्तत्तथा, इदं च त्रिविधाहारस्य चतुर्विधाहारस्य ज्ञानादिभिर्दीप्यमान् ! 'भा दीप्ताविति वचनात्, वा नियमरूपं सप्रतिकर्मे च। सम० ३४१ स्था० ३६४। भ्राजमान् ! वा दीप्यमान् ! भ्रातृ दीप्ता-विति वचनात् । आहारपरित्यागरूपः। उत्त० ५८९। भग० १४| भवान्त !! प्रज्ञा० ५६२
भक्तयः-विच्छित्तिविशेषाः। सम०१३९। भंभसारपुत्त- भम्भसारपुत्रः-श्रेणिकराजसूनुः। औप० १४॥ भक्तव्य-भतव्यं धारणीयम्। भग० ८५६) भंभासारसुत- कूणिकः। जम्बू० १४३।
भगंदर- भगन्दरः रोगविशेषः। जीवा० २८४। भग० १९७ भभा- गुजा। आचा०७४| भेरी। भग०३०६| जम्बू.१६७| जम्बू. १२५। ज्ञाता० १८१। अधिट्ठाणे खतं किमियजा
भम्भा-ढक्का। भग० २१७। ज्ञाता० २३२ भंभा-ढक्का लसम्पण्णं भवति। निशी. १८९ अ। निःस्वानानीति सम्प्रदायः। जम्बू. १०१।
भगंदलं- मगन्दरः पुतसंधौ व्रणविशेषः। बृह० २५४ अ। भंभाभूए-भां भां इत्यस्य शब्दस्य दुःखार्तगवादिभिः भग- ऐश्वर्यं समग्रं रूपं-यशः श्रीः धर्मः, प्रयत्नं च। करणं भंभोच्यते तद्भूतो यः स भंभाभूतः। भंभा वी-भेरी । प्रज्ञा० ४। नन्दी. १५। समग्रैश्वर्यादिलक्षणः। नन्दी. सा चान्तः शून्या ततो भंभव यः कालो जनक्षयाच्छून्यः | १५ समग्रैश्वर्यादिः। प्रज्ञा० १५ समग्रैश्वर्यादिः। प्रज्ञा० स भम्भाभूत उच्यते । भग० ३०६। भम्भां इत्यस्य ४१ जीवा० २५५ दुःखातगवादिभिः करणं भम्म उच्यते तद्भुतो यः स | भगन्दल-भगन्दरः-रोगविशेषः। विपा० ४० भम्भाभूत इत्युच्यते। भम्भा वा-भेरी सा चान्तः शन्या | भगवंत- श्रुतैश्वर्यादियोगाद् भगवन्तः कषायादीनिति ततो भम्भेव यः कालो जनक्षयात्तच्छून्यः स
भग-वन्तः। जीवा०४१ भम्भाभूतः। जम्बू० १६७
भगवं- भगवत्-भट्टारकम्। प्रश्न. ११५। भगवान्भंस- अंशः-अन्तर्धानम्। आव० ८२७।
आचार्यः। व्यव० २२० । भंसणं-भ्रंशनं-चलनम्। प्रश्न. १४१।
भगवती- व्याख्याप्रज्ञप्तिः-विवाहप्रज्ञप्तिः। भग० २। भंसला- उद्धतचेष्टा। कलहविशेषः। आव०७३८
भगवतीवेत्ता- प्रज्ञप्तिधरः। आव० ५३२ भंसुरुला- जत्थ महे बहु राया। जत्थ महे बहुराया मिलंति। | भगवा- चरगा। निशी० ३१ अ। निशी०७१ आ। विसयपसिद्धा। निशी०७१।
भगवान- महात्मनः संज्ञा। व्यव० २७३ अ। भइए- भृतकः-कियत्कालं मुल्येन धृतः। व्यव० ३३७। भगसंठिए-भगसंस्थितं-भरणीनक्षत्रस्य संस्थानः। सर्यभइत्ता- भक्त्वा-सेवित्वा। उत्त०४१५)
१३० भइय- भृतिं करोति भृतिकः-कर्मकरः। राज०२२ भग्ग- भग्नः-सर्वथा नाशितः। आव०७७९। वात्यादिना भइयव्व-भजनीयं-सेवनीयम्। ओघ० २१०भक्तव्यं कुब्जखञ्जत्वकरणेनासमर्थीभूतः। ज्ञाता० ११८। भग्नः भर्त्तव्यं धारणीयम्। भग० ८५६)
गोरूपादिभिर्विद्धंसनात्। व्यव. ११५अ। भइरथी- भगीरथी-कूटलेखकरणे उदाहरणम्। आव० ८२२ | भग्गई-क्षत्रियपरिव्राजकविशेषः। औप० ९१| भई-भृतिः-कर्मकरादिदेयद्रव्यम्। बृह. १६४ आ। भग्गरुग्ग- वाहनात् स्खलनादवा पतने भग्नः रुग्णश्चभए- भयं-प्रत्यनीकेभ्यो यज्जातम्। आव०६२६)
जीर्णतां गतः। ज्ञाता० १९५१ भक्ख-खरविशदमभ्यवहार्य भक्षम्। पक्वान्नमात्रम्। भग्गवणिया- वणिताः संतो भग्ना भग्नव्रणिता। व्यव०
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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