Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 108
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] प्रश्न. १०९। मूल-कारणम्। आचा० ९९। मूलं-असंयमः प्राणातिपातविरमणादयः। भग०८९४| मूलो-जीवः तस्य कर्म वा। आचा० १६० मोहनीयं-तद्भेदो वा कास्तस्य गुणः। बृह० ६७। बृह. १४३ अ। मूलगुणःस्थान-शब्दादिको विषयग्णः। आचा. ९९। चारित्रकल्पवृक्षस्य मूलकल्पाः गुणःप्रायश्चित्तविशेषः। स्था० २००। मूलं-उशीरादि। आचा० प्राणातिपातविरमणादिः। भग० २९६| निशी. १६६ अ। ३०। मूलं-निकटम्। भग० २१७। मूलं-करणं-काषायाः। आद्यगुणः प्रधानगुण इत्यर्थः। निशी. २८ अ। आचा. ९९। मूलं-प्राणातिपातादौ पुनव्रतारोप-णम्। मूलगुणघाइण- मूलगुणान् घातयितुं शीलं येषां ते आव० ७६४। समीपम्। उत्त० ३०२। आसन्नम्। जम्बू० मूलगुणघा-तिनः३५९। मूलनक्षत्रम्। सूर्य. १३०| सचित्तं-तरुशरीरम्। अनन्तानुबन्ध्यप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानवरणाः वादआव०८२८ समीपम्। औप०९। मूलं-विदारिकारूपम्। शानां कषायाणामुदयः। आव० ७८ दशवै. १७६। सव्वछेदो। निशी. १३आ। समीपम्। मूलगुणनिर्मितः- पुरुषप्रायोग्याणि द्रव्याणि। आव० २७७। ज्ञाता० २७ मूलगुणविषय-आधाकर्मादि। आव० ३२५१ मूलए- मूलकः-कन्दविशेषः। उत्त०६९१। मूलकः-अन- | मूलगोत्ता- मूलभूतानि-आदिभूतानि गोत्राणि मूलगोत्राणि न्तकायविशेषः। भग. ३०० स्था० ३९० मूलओ- आदितः सर्वथैवेत्यर्थः। स्था० ५०२। मूलग्गाम- यत्र ग्रामे साधवः स्थिताः स मूलग्रामः। बृह. मूलक- अनन्तकायिकम्। प्रज्ञा० २५९। वनस्पतिकायवि- | ७९ ॥ शेषः। जीवा. २७। मूलक-मूलकर्ममूलकादिप्रयोगतो | मलचेतिय-आन्दपरे चैत्यम। निशी. ३५५ । गर्भ-पातनादि। प्रश्न. ३८५ मूलछिज्ज- मूलं-अष्टमप्रायश्चित्तेन छिद्यते-विदार्यते मूलकम्म- यदनुष्ठानाद्गर्भशातनादेर्मुलमवाप्यते यद्दोष-जातं तन्मूलच्छेद्यं अशेषचारित्रच्छेदकारि। तद्विधानादे-वाप्तो मूलपिण्डः। आचा० २५१। मूलकम आव०७८ नाम पुरुषद्वे-पिण्याः सत्या मूलदत्ता- अन्तकृद्दशानां पञ्चमवर्गस्य पुरुषद्वेषीणीकरणमपुरुषद्वेषिण्याः सत्या द्वेषि- दशममध्ययनम्। अन्त०१५) णीकरणम्। व्यव० १६२ आ। मूलकर्म-वशीकरणम्। मूलदलिय- मूलदलिक-मूलदलं-आदिभूतद्रव्यम्। प्रश्न. पिण्ड० १२११ १३४१ मलकरण- सामायिकादीनि प्रतिक्रमणावसानानि। मूलदेव- कलाशिक्षायामुदाहरणगतः। दशवै० १०९। चोरः। विशुद्धक-तव्यतायां मूलकरणम्। आव० ७७९| निशी. १२० अ। मूलदेवः चौरिकारकः। व्यव० ३३आ। यदवयवविभागविर-हितमौदारिकादिशरीराणां मूलदेवः। उत्त० २१८। मूलदेवः-औत्पात्तिप्रथममभिनिर्वतनम् तत् मूलक-रणम्। उत्त० १९७५ कीबर्धिदृष्टान्ते मार्गविषये पान्थविशेषः। आव०४२० मूलग-मूलक-शाकविशेषः। जम्बू. १२४। वनस्पति- पुण्डरीकसार्थगामी। नन्दी. ११४। मलदेवः-उज्जयिन्यां विशेषः। भग० ८०२। वनस्पतिविशेषः। भग०८०४। राजा। दशवै ५७ हरितविशेषः। प्रज्ञा० ३३मूलकः-सपत्रजालकम्। दशवैः | मूलनय- मूलभूतो नयः। अनुयो० २६४। १८५ मुलपलंब-याल्लोकस्योपभोगमायाति मूलगपत्त- पत्तविसेसं। निशी. ६० अ। तदेतन्मूलपलम्बम्। बृह. १४३ आ। मूलगबीय- मूलकबीज-शाकविशेषबीजम्। भग० २७४। मूलपढमाणुओग- मूलं-धर्मप्रणयनात्तीर्थकरास्तेषां मूलगम- मूलगमः-मूलदोषभेदः। ओघ० १२४ प्रथमः-सम्यक्त्वावाप्तिलक्षणपूर्व मूलगूण- मूलगूणः-मूलभूतो गुणः-उत्तरगुणाधारः-सम्य- । भवादिगोचरोऽनयोगो मूलप्रथमान्-योगः। नन्दी० २४२। क्त्वमहाव्रताणुव्रतरूपः। आव० ७८1 मूलगुणः-प्राणाति- | मूलप्रथमानुयोगः स चैकस्तीर्थकराणां पातनिवृत्त्यादिः। दशवै० १६१। प्रथमसम्यक्त्वावाप्तिभवादिगोचरो यः स मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [108] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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