Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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विहाडेत्तुं-विघाट्य-विदार्य। प्रश्न. १९।।
११३ विहाण-विधान-स्वरूपस्य करणम्। भग० २८२। भेदः। | विहारकप्प-विहरणं विहारः तस्य कल्पो-व्यवस्था
भग० ८७४ विधान-विशेषः कालादिरिति। भग०२०।। स्थविर-कल्पादिरूपा यत्र वर्ण्यते ग्रन्थे स विहारकल्पः। विधानं-विशेषः। जीवा० १९ विधानं-भेदप्रकारः। ओघ. नन्दी . २०६| २६। विविक्तं-इतरव्यवच्छिन्नं धानं-पोषणं स्वरूपस्य विहारकल्पिकं- । बृह. १११ आ। यत् तत् विधानं-विशेषः। प्रज्ञा० ५०१। विधीयते- विहारगमणं-विहरणं-क्रीडनं विहारस्तेन गमनंविशेषाभि-व्यक्तये कियन्त इति विधानं भेदः। उत्त. | उद्यानादौ क्रीडया गमनं विहारगमनम्। सूत्र० ८७ २३१
विहारगेह-विहारगृहम्। आव० १३७ विहाणसंगणिय-विधानेन-भेदप्रकारेण संगुणितः। ओघ. | विहारजत्ता-विहारयात्रा-क्रीडार्थमश्ववाहनिकादिरूपा।
२६। विधानेन-भेदप्रकारेण संगुणितः। जम्बू. २६। उत्त०४७२। विहाणसहाण- वेहानसंस्थानं मानुषोल्लम्बनस्थानम्। विहारठाण-विहारस्थानं-आश्रयस्थानम्। व्यव० १६६ अ। आचा०४१११
विहारभूमि-विहारभूमिः-स्वाध्यायभूमिः। आचा० ३२४। विहाणादेस-विधानादेशी
विहारभूमी-विहारभूमिः-स्वाध्यायभूमिः। आचा० ३७६। यत्समुदितानामप्येकैकस्यादेशनम्। भग० ८६३। असज्झाए सज्झायभूमी जा सा। निशी. १४८ आ। भेदप्रकारेणैकैकशः। भग० ८७४।
भिक्षापरिभ्रमणभूमिः। व्यव० ३६५अ। विहायंती-विभाता। आव० ३६६)
विहारालोचना-आलोचनाविशेषः। व्यव० ४८ आ। विहायगई-विहायगतिस्तु स्पृशदगतिः। भग. ३८१| विहारिण-मासमासेन विहरन्तः। बृह. १८४ आ। विहायगति-विहायसा गतिः गमनं विहायोगतिः। प्रज्ञा. विहिंसण-विहिंसनं-विविधव्यापादनम्। प्रश्न. २२ ४७४।
विहिंसा-विविध-अनेकधा हिंसा-हिंसनशीला, वीतिविश्रविहायगती-आकाशेन विहायोगति विहायोगति स्पृशद ब्धावान् स्वेषु स्वेषुत्पत्तिस्थानेष्वनाक्लभवस्थितान् गत्यादि, सप्तदशभेदभिन्नागतिः। प्रज्ञा० ३२७।
जन्तून् हिंसन्तीति विहिंसा। उत्त० १९४। विघातः। विहायोगति- गतेः पञ्चदशमो भेदः। प्रज्ञा० ३२७) प्रश्न०६। विहार-विहारः-विहरणं-क्रीडनं वा। सूत्र. ८७ विहारः- विहिंसिय-विहिंसितं-न सम्यग् निर्जीवकृतमिति। सूत्र० बौद्धाध्याश्रयः। प्रश्न.1 मासकल्पादिविहारः। आव० ३०११ ५२९। नगरम्। सम.१०३ विचित्रक्रीडा। प्रश्न०६९। | विहि-विधिः-चक्रवाललक्षणः प्रकारः। भग. २८२। विधिःविहारः-भिक्षुनिवासो देवगृहं वा तत्प्रधानो ग्रामादेरपि। । कौशल्यम्। आव० ५०३। विधिः-कार्यसाध्यम्। प्रश्न उत्त० ६०५। विहारः। आव० २९५) विहारः-विचरणम्। ९२। विधिः-प्रवचनोक्तः प्रकारः। दशवै. २ विधिःजम्बू० १२४। विहारः-वसतावस्वाध्यायिके समुत्पन्ने विधिविशेषः भेदः। सम. ११४१ विधिः-विरचनम्। सति स्वा-ध्यायनिमित्तमन्यत्र गमनम्। बृह. २६१ अ। अनुयो० १४०। विधिः-अनुष्ठानमासेवनम्। उत्त. सज्झाय-भूमी। निशी. १४३ अ। विहारः-चंकमणम्। ६११। विधिः-कल्पे-कल्पा-ध्ययने बृह. २०४ आ। विहारार्थम्। ओघ० ६०
द्वितीयतृतीययोरूद्देशयोर्विधिः। व्यव० ४२०/ गोचरचर्यादिहिण्डन-लक्षणः। जम्ब० १५११ | विहगहिय-विधिगृहीतं-अलुब्धेनोद्गमितम्। आव. विहरन्त्यस्मिन्प्रदेश इति विहारः-प्रदेशः। उत्त० ५४४। ८५९। विधिनोदगमदोषादिरहितं सारासारविभागेन च विहारः-भिक्षुनिवासः, देवगृहम्। उत्त०६०५ विहारः- यन्न कृतं पात्रके तत् विधिगृहीतम्। ओघ० १९२ ग्रामादिचर्या। स्था० ४१६। विहारः
विहिण्णू-विधिज्ञं-पञ्चचत्वारिंशतो देवतानां अवस्थानशयनादिरूपः। जम्ब० १०७। विशेषा
उचितस्थानानि-वेशनार्चनादिविधिज्ञम्। जम्बु. २०७। नुष्ठानरूपः। बृह० २२१ आ। साधु-वर्तनः। ज्ञाता० विहिन्न-विधिज्ञः-न्यायमार्गप्रवेदः। दशवे. १९५)
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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