Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 172
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] वप्प- वप्रः-केदारः। जम्बू. ४२। वप्रः-केदारो जलस्था-नम्। | वर्म-लोहम-यक्तूलकादिरूपम्। जीवा० २५९। वर्मजम्बू. २९११ वप्रः। आव० ५८१। वप्रः केदारो त्वक्त्राणविशेषः। विपा० ४६। जलस्थानम्। जीवा० १९८१ वप्रः-केदारः। आचा० ४१३। वम्महतोह- मन्मथयोधः। चत् । वप्रः-केदारः-जल्स्थानम्। जीवा० १२३। नवमभवण- वम्मा- वामा-पार्श्वमाता। आव० १६०| वाम्या। आव० वासीचैत्यवृक्षम्। स्था०४८७। वप्रो-विजयः। जम्बू. १०११ ३१७। वप्पो केदारो। निशी० ६९आ। वम्मिय- वर्मितं-सन्नद्धम्। जीवा० २५९। वर्मितःवप्पगा- वप्रका। आव० १३७। वप्रका-जयचक्रीमाता। आव० | वर्मीकृतः। भग. १९३। वर्मितः-वर्मतया १६१ कृतोऽङ्गेनिवेशनात्। भग० ३१८ निशी. ३आ। वप्पव्वव-सन्दिग्धः। निशी. २८९ आ। वम्मियसन्नद्ध- वर्मणि नियक्तः वार्मिकास्तैः सन्नद्धःवप्पा-। स्था० ८० नमिनाथमाता। सम० १५१। एकाद- कृत-सन्नाहो यः स वार्मिकसन्नद्धः। ज्ञाता० २२११ शमचक्रीमाता। सम० १५२ वप्रा-नमिमाता। आव. वम्मीय- वल्मीकः। आव. १५३। १६०| वप्रा-समन्नतो भूभागो ग्रामान्तरे वा केदाराः। वयंस- वयंस्यः-स्निग्धकः। आव० १९१। वयस्यः-समा आचा० ३३७। वप्राः-प्रकारा यावद्गृहम्। आचा० ३९०। नवयः- गाढतरस्नेहास्पदः। जम्बू० १२३॥ वप्पावई- वप्रावती विजयः। जम्बू. ३५७। वयंसग- अवतंसः-शिरस्त्राणम्। जम्बू. १३७। वयस्यकः। वप्पिणा- केदारवान् तटवान् वा देशः केदारः एव। भग० आव०११६ वयस्यः । आव.२७२। ૨૨૮. वयंसिदा- वयस्या। आव०२२२१ वप्पिणि- केदारः। प्रश्न केदारः। औप० ३। केदार। वयंसिया- वयस्या। आव० ३६७ प्रश्न० १६१| वय- वज्र-प्रापकम्। जम्बू. २३५। व्रतं-चित्रं द्रव्यादिविषवप्पु-वपूः-शिखरम्। भग० ४७२। यनियमरूपम्। प्रज्ञा० ३९९। व्रतंवप्रः-वर्जितत्त्वं बहुफलं च एभिर्गुणैरूपपेतो वप्रः। निशी निर्गन्थप्रव्रज्यालक्षणम्। प्रश्न० १३६। व्रतं१४१ ॥ अवद्यहेतुत्यागः। उत्त. १०४ वयः- यौवनम्। पिण्ड. वमढण- उद्वेगम्। बृह. २४६ अ। १४५। देहावस्था। नन्दी. १६५। व्रतम्। आचा० १४१| वमढेति- खरंटेति। निशी. २११ आ। व्ययः। अनुयो० १५४। व्रतं-सति असति वा वस्तुनि वमण- वमनं उदगीरणम्। उत्त०४१७। वमनं-छर्दनम्। तदिच्छापरित्यागतस्तन्निवृत्तिः। व्यव० ४१ आ। ओघ० १६४। वमनम्। ज्ञाता० १७१। छड्ड्णं । दशवै. व्रजः-गोकुलम्। उपा० २। व्रतं-नियमः। प्रश्न. ३२ वेदः१४९। उड्ढविरेयो वमणं, अहो सावणं विरेयो वमणं। आगमो लौकिकलोकोप्रात्तरकवचनिकभेदः। ज्ञाता० निशी दि०८९आ। ७। व्रतं-नियमः। निर०२४। व्रतप्रतिमा श्रावकस्य वमणि-पोंडयं। निशी. १२६अ। दवितीया प्रतिमा। आव०६४६। प्राणिनां वमति- त्यजति। उत्त० ३४६। त्यजति-क्षपयति। स्था० कालकृतावस्था। स्था० १२८ वयति पर्यटति। आचा० १४१। व्ययः। उत्त०६३२। व्रतं-मूलग्णः । सम० १०७। वमणी- वमनं-स्वतः सम्भतम्। विपा०८१ व्ययः-क्षयः। प्रश्न.१०२ व्रतः-नियमः-महाव्रतः। स्था० वमालीभूत-विप्रकीर्णम्। निशी. १७४ । २९०। वयः-संसारः, अवस्थाविशेषः। आचा० १४२। वमित्तए- वमयितुम्। ज्ञाता० ११० वयगाम- वज्रगामः। आव० २२० वमी- वान्तिः । आव० ६२५१ वयगुत्त- वाचि वाचा वा गप्तः वाग्गप्तः मौनव्रती वम्म- वृणोति-आच्छादयति शरीरकमिति वर्म- | सुपर्यालोचि-तधर्मसम्बन्धभाषी वा। सूत्र० १९२। अश्वतनु-त्राणम्। उत्त० २२३। वर्म-सन्नाहविशेषः। वयगुत्तया- वाग्गुप्ता- कुशलवागुदीरणरूपया। उत्त० जम्बू. २०५। वर्म-लोहकुत्तलादिरूपम्। जम्बू. २१९। ५९१३ ३२० मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [172] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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