Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 202
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] दिक्कुमारी। जम्बू. ३९२ रात्रेर्नाम। जम्बू०४९१| कर्दमः। आव. २७४। विजल-विगतजल:-कर्दमः।। गाथापतिनामग्रमहिषी। जम्बू.५३२। सप्तमी रात्री। दशवै. १६४। सिढिलकमो। निशी० ११२ आ। उदगविसूर्य. १४७। वैजयन्तीनां पार्श्वकर्णिका। सूर्य २६३। लिप्पिलं। निशी. १२९ अ। विज्जलं-स्निग्धकर्दपूर्वादि-ग्रूचकवा-स्तव्या दिक्क्मारी। आव० १२२ माविलस्थानम्। जम्बू. १२४। विगतं जलं। निशी. ११४ पान्तेिवा-सिनी प्रवा-जिका। आव. २०७। अ। कर्दमाकुलम्। बृह०७१ अपंकिलम्। बृह. १४८ औषधिविशेषः। उत्त०४९०| विजयपर्वता । प्रमाणाङ्गुलप्रमेया। अनुयो० १७१। पञ्च विज्जा- विदया-तत्त्वपरिच्छेत्री। आचा. १५९। मबलदेवमाता। सम० १५२इङ्गालस्य विद्याश्रुतम्। भग०७९४। विदन्त्यनया तत्त्वमिति प्रथमाऽग्रमहिषी। भग. ५०५। वैजयन्तीनां विदया विचित्रमन्त्रा-त्मिका। उत्त. २६७। वेदनं विदयापार्श्वकर्णिका। जीवा० २०९। विजया-अजितमाता। तत्त्वज्ञानात्मिका। उत्त० २६२ विद्या आव० १६० विजया-सुदर्शनबल-देवमाता। आव० १६२१ सच्छास्त्रात्मिका। उत्त० ३६२ विद्यतेऽनया विजयः आश्रयः। दशवै. २०४। औषधिविशेषः। उत्त. तत्त्वमिति विद्या-श्रुतज्ञानम्। उत्त० ४४२। विद्या४९०| वैजयन्तीनां पार्श्वकर्णिका। राज० ३९| प्रज्ञ-प्त्यादिदेवताधिष्ठिता वण्र्णानुपूर्वी। ज्ञाता०७ विजयाइ-खाद्यविशेषः। जम्बू. १९८५ विद्या-प्रज्ञाप्त्यादिका। प्रश्न. ११६। विद्याविजयेण-। स्था०८० प्रज्ञाप्त्यादिका। औप० ३३। विदया, यत्र मन्त्रे देवता विजयेण-वियेनः परेषामसहमानानामभिभावकत्वरूपेण। स्त्री सा विद्या ससाधना। आव० ४११। विद्या-ज्ञानं जम्बू. १८७ अत्यन्तापकारिभावतमो-भेदकम्। दशवै० ११० विद्याविजल-विगयं जलं जत्थ चिक्खल्लो। दशवै.७४। स्त्रीरूपदेवताधिष्ठिता, ससाधनावाऽक्षरविशेषपद्धतिः। विजहणा- विहानं-परित्यागः। स्था० १४० पिण्ड०१२१। लेहादिया-सउणरू-यपज्झवसाणा विजिओ- विजितः-पराजितः। आचा० ८४। बावत्तरिकला तो विज्जा, इत्थि-परिसाभिहाणा विजितसमर- आधाप्रतिश्रवणदृष्टान्ते गणसमृद्धनगरे विज्जमंता, ससाहणा विज्जा। निशी० ४४ अ। विद्यामहाबल-राज्ञो जेष्ठकमारः। पिण्ड० ४७ सम्यक्शास्त्रावगमरूपा। उत्त० ३४४। ससाधना विजीयते- अधिगमद्वारेण परिचता क्रियते। स्था० १९०| स्त्रीरूपदेवताधिष्ठिता वाऽक्षरपद्धतिर्वा विदया। पिण्ड. विज्ज- वैद्यः-वैद्यशास्त्रै चिकित्सायां च कुशलः। विपा० १४१। विदित्वा। उत्त० ३३७। विद्वान्-जानन्। उत्त. ४०। वेदः-आगमो ४४६। लौकिकलोकोत्तरिक्कप्रावचनिकभेदभिन्नः। राज० विज्जाअणुप्पवाय- यत्रानेकविधा विदयातिशया वर्ण्यन्ते ११८, ११९ तद्वि-द्यानुप्रवादम्। सम० २६| विज्जई-विदयते घटते। दशवै.४० विज्जाइसय-विदयातिशयः। दशवै. १०५ विज्जए- विदयते। दशवै. १२५ विज्जाचारण- विद्याचारणः विज्जकुमारा- विद्युत्कुमाराः, विशिष्टकाशगमनलब्धियुक्तः। प्रश्न० १०६ सोमस्याज्ञोपपातवचननिर्देश-वतिना देवाः। भग. अतिशयचरणसमर्थः। प्रज्ञा० ४२५॥ १९५ विज्जाचारणविणिच्छओ- विद्याचरणविनिश्चयःविज्जणुवायं- दशमं पूर्वम्। स्था० १९९। ज्ञानचरित्र-फलविनिश्चयप्रतिपादको ग्रन्थः। नन्दी. विज्जपुत्त- वैद्यपुत्रः-वैद्यशास्त्रचिकित्साकुशलस्य २०५४ पुत्रः। विपा० ४० | विज्जाचारणा- विद्या-श्रुतं तच्च पूर्वगतं विज्जय- वैदयकम्। ओघ० १९८१ तत्कृतोपकाराश्चारणा विद्याचारणाः। भग० ७९३। विज्जल- कर्दमः। आचा० ३३८1 पिच्छलम्। आचा० ४११। | विज्जाणुप्पवाय- विद्या-अनेकातिशयसम्पन्ना मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [202] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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