Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 197
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] व्यासः। जम्बू. १९। विष्कम्भः-विस्तारः। प्रज्ञा० ४८५ | विक्षेप- तस्यैवाभिधेयार्थ प्रत्यनासक्ता। सम० ६४१ विष्कम्भः-बाहल्यम्। सूर्य विष्कम्भः-विस्तारः। विखुड्डती- क्रीडति। आव०७१० जीवा० ४०| विष्कम्भः-उदरादिविस्तारः। प्रज्ञा० ४२७५ विगंचण- विकिंचणं-त्यागः। ओघ० १४२ विष्कम्भं-प्रमाणाङ्गुलप्रमेयः। अनुयो० १७१। विग- वृकम्। आचा० ३३८। वृकः-ईहामृगः नाखरविशेषः। विष्कम्भः-आक्रमणम्। बृह. २५७ आ। प्रश्न. ७ वृकः-नाखरविशेषः। प्रश्न ५३। वृकःविक्खंभइत्ता- विष्कम्भ्य। आव. २२२१ इहामृगः। जम्बू० १२४। वृकः-ईहामृगः। प्रश्न. १६२१ विक्खंभओ- विकम्भतः-विस्तारमधिकृत्य। प्रज्ञा० २७५) । | विगइ- विकृतिमं। दशवै० २८। विकृतिः-विकारः। भग. विक्खंभवुड्ढी- विष्कम्भवृद्धिः। सूर्य. ३८५ विक्खणं-विसूरणं-निशी० १२२ आ। विगइगय-विकृतिगतम्। दशवै० २८१ विक्खत्तं- | निशी. १८२।। विगइपडिवद्ध- विकृतिप्रतिबद्धो अनुपधानकारी। बृह. विक्खय-विकृतं-कृतव्रणम्। भग० ३०८ १०४ आ। विक्खरिज्जमाणं- विकीर्यमाणं-इतस्ततो विगइसहावा- विकृतस्वभावा। दशवै. २८१ विप्रकीर्यमाणम्। जीवा. १९२॥ विगई-विकृतिः। आव० ८५२ विक्खिणं-1 ओघ० १६६। विगईगओ-विगतिगतः-विगतिजातः। आव. ५३८1 विकिखत्त-धर्मकथनादिना वा व्याक्षिप्तः। ओघ० १७६] | विगईविवज्जियाहार- विगतिभिर्वर्जित आहारो यस्य सः। विकीर्ण गोखुरक्षुण्णतया विक्षिप्तं धान्यम्। स्था० २७७ | आव० ५३८1 विक्षिप्तम्। आव. २६ विगड- मृतः, देहः। जीवा० १०६। विकटं स्थूरम्। व्यव० विक्खित्ता- विक्षिप्ता-विक्षेपणम्। उत्त. १४१ १६७ आ। विक्षिप्ता। ओघ०१०९। विगडणा- आलोयणाणुपुव्वी। निशी० १३५आ। विक्खिन्न- विकीर्ण-प्रसारितम्। भग०६३१| विगत- विकृतः-उत्कलृप्तः-पृथक्कृतः। प्रश्न० २१| विक्खिरिज्जइ-विकीर्यते। आव० ६३५१ विगतमीसता- सत्यामृषायां द्वितीयो भेदः। स्था० ४९० विक्खिरेज्ज-विकीरेत्-प्रसारयेत्। भग० ६३१। विगतचरस-विरसं-पुराणधान्यौदनादि। स्था० २९८। विक्खिरेज्जा- विकिरेन-इतस्ततो विक्षिपेत्। उपा०४२। विगति-विकृतिः-विकारः। बृह. २१६ आ। विखुण- अक्षाणकः। निशी. १२२ अ। विगतिकय- वाति विगतीए कंतं। निशी. १९९ अ। विक्खेव- विक्षेपः-अप्रयत्नेन रचितो इत्यादि विगतिगत-विगती वा जंमि दव्वे गता तं। निशी. ३४२ सपादश्लोकच-तुष्टयोक्तलक्षणः। प्रश्न. १४० विक्षेपः- | अ। अधर्मदवारस्येकविंशतितमं नामः। प्रश्न. ४३ विगती- विगारो। निशी० २१२ अ। खीरातियं बीभच्छा विक्षेपः-यत्र वस्त्रस्यान्यत्र क्षेपणं वस्त्राञ्चलानां वा विकृता वा गती, विविधा गती संसारे, असंजमो। निशी यत्रो क्षेपणम्। ओघ० ११० ३४२ । विक्खेवणि- विक्षेपणी-विक्षिप्यतेऽनया सन्मार्गात् कुमार्गे | विगत्तग- विकतकः-प्राणीनामजिनापनेता। सूत्र० ३२९। कमार्गाद्वा सन्मार्गे श्रोतेति विक्षेपणी, धर्मकथाया विगत्ता- विकर्ता-विकतयिता। भग०७७७। द्वितीयो भेदः। दशवै. ११० विगदूमिय- वृकैः-शृगालैर्वा ईषद् भक्षितम्। आचा० ३४९। विक्खेवणी- विक्षिप्यते-कुमार्गविमुखो विधीयते श्रोता या | विगद्धया- ध्वजा। जीवा० २१५१ कथया सा विक्षेपणी। औप०४६। विक्षिप्यते-सन्मार्गात् । विगप्प- विकल्पः-देश-विकल्पः, देशसम्बन्धी कुमार्गे कुमार्गादवा सन्मार्गे श्रोताऽनयेति विक्षेपणी। शस्यनिष्प-त्त्यादिविचारः, देशकथायाः तृतीयो भेदः। स्था०२१०१ आव० ५८१ विक्रान्तभाट- शूरः। दशवै. २३८1 विगम- विगमः-विनाशः। आव. २८२ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [197] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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