Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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लोमाहार- लोमाहारः-खल्वोघतो वर्षादिषु यः
लोयायय- लोकायतः-नास्तिकवादी। दशवै.५१।। पुद्गलप्रवेशः स मूत्राद् गम्यत इति। भग० २७) लोयावादी- लोकः-प्राणिगणस्तं वदितं शीलमस्येति लोमभिराहारः लोमाहारः। प्रज्ञा० ५०७।
लोकवादी। आचा० २२। लोकः-चतुर्दशरज्वात्मकः लोय- लोकः-बाह्य अभ्यन्तरश्च, तत्र बाह्यो
प्राणिगणो वा तत्रापतितुं शीलमस्येति लोकापाती। धनहिरण्यमात-पित्रादिः, आन्तरस्तु
आचा० २२ रागद्वेषादिस्तत्कार्यं वा अष्टप्रकारं कर्म। आचा० | लोल- रत्नप्रभानरके नरकावासाः। स्था० ३६५। लोलः-व्रते १४५ असंयतलोकः। आचा० १४४। इन्द्रियानुकूलं चञ्चलः। प्रश्न. १२० लोलः-चञ्चलः। स्था० ३७३। रसादयुपेतमुच्यते। आचा० ३३६। लोकः-गृहस्थलोकः। लोलः-यद् भूमौ करे वा प्रत्यपेक्षमाणवस्त्रस्य लालनम्। आचा० १४८ लोकः-भूतग्रामः। आचा० १६५। लोकः- उत्त० ५४१। लोलः-अप्राप्तप्रार्थनपरः (भिक्षुः)। दशवै. यथावस्थितजन्तुलोकः, तदाधारं वा क्षेत्रम्। आचा० ર૬૮. १५४१ ज्ञाता०६० लोकः-षड्जीवनिकायः। आचा० १५३। | लोलइ-लोलयति-लोटते। पिण्ड० १२४ लोकः-पञ्ञ्चास्तिकायात्मकः-लोक्यते-प्रमीयत इति | लोलग- ललिगो। निशी. १४ आ। लोक इति व्युत्पत्त्या लोकालोकरूपः। स्था० ३९| लोलति- लुठति। आव० ३५८१ लोयइ- रोचते। बृह. २८३ अ।
लोलयति- कलुषयति। बृह० ५५ अ। लोयग- लोवर्ग-निर्गुपामशनादि। बृह. १७८ अ। लोलया- लोलता। आव० ४२११ लोयग्गं-कोकाग्रं लोकाग्रे वर्तमानत्वात्। प्रज्ञा० १०७। लोलयासढे- लोलता-पिशितादिलाम्पटयं लोकाग्रं-ईषत्प्राग्भाराख्यम्। आव० ७८९।
तद्योगाज्जन्तुरपि तन्मयत्वख्यापनार्थं लोयग्गथुभिय- लोकाग्रस्तूपिका-लोकाग्रस्य स्तूपिकेव। लोलतेत्युक्तः। शाठ्ययोगाच्छठःईषत्प्राग्भाराया नवमं नाम। प्रज्ञा० १०७|
विश्वस्तजनवञ्चकः। उत्त० २८० लोयग्गपडिवाहिणी- लोकाग्रप्रतिवाहिती लोकाग्रेण लोला- भूमौ लोलते हस्ते वा पुनः पुनर्लोलयति प्रत्युह्यत इति। ईषत् प्राग्भाराया दशमं नाम। प्रज्ञा० प्रत्युपेक्षयन्। ओघ० ११०| लोलयति प्रत्यपेक्षमाणः।
ओघ० ११०| लोलत इति, चञ्चला(प्रत्युपेक्षणा)। ओघ. लोयट्टिई- लोकस्थितिः लोकव्यवस्था। भग. १८६। ११०| लोलाः- लम्पटाः। उत्त० ५९० लोयणा- लोचना-सर्वकामविरक्तताविषये देवलास्तराज्ञी। | लोलिक्कं- लौल्यं-अधर्मद्वारस्याष्टमं नाम। प्रश्न०४३। आव०७१४१
लोलियं-लोठितम्। आव० १०२। लोयनाभी-लोकस्य-तिर्यग्लोकस्य स्थालप्रख्यस्य लोलिया- लौल्यम्-लौलप्यम्। आव० ८३१| नाभिरिव -स्थालमध्यगतसमुन्नवृत्तचन्द्रक इव | लोलुए- रत्नप्रभानरके नरकावासः। स्था० ३६५) लोकनाभिः। सूर्य ७८१
लोलुप्यमान- लालप्यमानम्। उत्त० ४००। लोयफूड- लोकेन-लोकाकाशेन सकलस्वप्रदेशैः स्पष्टो लोलेति-लोलयति। आव०६५११ लोकस्पृष्टः। भग० १५११
लोष्टक- मृतपिण्डः। नन्दी० १५० लोयमज्झ- लोकस्य-तिर्यग्लोकस्य समस्तस्यापि मध्ये | लोष्टकप्रधान- वर्लकवरः। भग० ७६७। वर्तते इति लोकमध्यः। सूर्य० ७८1
लोह- लोभक्रिया-लोभाय यत्करणं, क्रियाया द्वादशमो लोयमेत्त- लोकमात्र-कोकपरिमाणम्। भग० १५१। ___ भेदः। आव०६४८ लब्धवस्तुविषयगृयात्मकम्। उत्त. लोयसंजोग-लोकसंयोग-लोकेनासंयतलोकेन संयोगः- ६६४। भग०८०४१ सम्बन्धः ममत्वकृतः। आचा० १४४|
लोहकंटिया-संडासओ। निशी. १८आ। लोयाणी- साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० ३४। | लोहकडाह- लोहकटाहं-कवेल्ली। भग. २३८१ लोयाणुभाव- लोकानुभावः-लोकप्रभावः। भग० १८६| | लोहकडाहि- लोहमयं बृहत्कडिल्लम्। अनुयो० १५९
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मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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