Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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२५
परस्प-रमसहमानतया हिंस्यहिंसकताध्यवसायः। | वइरवालुए- वज्रवालका नदीसम्बन्धिपलिनमपि जम्बू. १२७। वज्रस्वामी-बालभावेऽपि वर्तमानस्य वज्रवालुका, यद्वा वज्रवद्वालुका यस्मिंस्तथा मातरमवगणय सङ्घ-बहुमानकारकः। नन्दी. १६७ तस्मिन्नरकप्रदेश इति। उत्त० ४५९। वजः। हीरकः। उत्त०६८९। रत्नविशेषः। निशी० २२९ वइरवेइआ- वज्रवेदिका-दवारण्डिकोपरि वज्ररत्नमयी आ। वज्रः-हीरकः। प्रज्ञा० २७।
वेदिका। जम्बू०७९। त्रयोदशसागरोपमस्थितिकं विमानम्। सम. २७ वजं- | वइरसामि-यस्य माउलो समियआयरिओ। निशी. १०३ हीरकमणिः। जम्बू०८२ वज्र-शक्रायुधम्। प्रज्ञा० ८७ | वहरसामिउप्पति- वज्रस्वाम्युत्पतिः। दशवै०५१।
वज्र-कीलिका। सम० १४९। वैरं-रत्नविशेषः। ज्ञाता० ३१] | वहरसामी-दुर्भिक्ष निवारकः। निशी. १६अ। वइरकंत-त्रयोदशसागरोपमस्थितिकं विमानम्। सम० वइरसिंग-त्रयोदशसागरोपमस्थितिकं विमानम्। सम० २५१
२५१ वइरकूड- वज्रकूटं-नन्दनवने अष्टमकूटम्। जम्बू० ३६७। | वइरसिट्ठ- त्रयोदशसागरोपमस्थितिकं विमानम्। सम.
त्रयोदशसागरोपमस्थितिकं विमानम्। सम० २५ वइरजंघ- वज्रजङ्घः-लोहार्गलनगरस्वामी। आव० ११६) । वइरसेण- वैरसेनः। आव. ११८ पुष्कलावतीविजये लोहार्गलनगरे ऋषभपूर्वभवे वइरसेणा-धर्मकथायाः पञ्चमवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० वज्रजङ्घः। आव० १४६। वैरजङ्घः-महाविदेहेऽधिपतिः।
ર૬રા. आव० ११५ तृतीयवासुदेवप्रतिशत्रुः। सम० १५४। वइरागर- वैराकरः। ज्ञाता०२२८। वहरणाभ- वज्रनाभः-वज्रसेनधारिण्योः पुत्रः चक्रवर्ती।। वइराड- वैराटपुरं-वत्सजनपदे पुरं, आर्यक्षेत्रम्। प्रज्ञा० ५५। आव० ११७
वइरामइए- वज्रमया-वज्ररत्नात्मिका। जम्बू० २०| वहरणाम- प्रथमतीर्थकृत्पूर्वभवनाम। सम० १५१| वइरुत्तरवडिंसग- त्रयोदशसागरोपमस्थितिकं विमानम्। वइरदंडा- वज्रो-वज्ररत्नमयो दण्डो रूप्यपट्टमध्वर्ती येषां ते | सम० २५४ वज्रदण्डाः। राजन
वइरोअण- 'विइति विशिष्ट रोचनं-दीपनं वइरनाभ- वज्रमयो नाभिः-मध्यभागो ययोस्ते वज्रनाभः। दीप्तिरितियावत् येषामस्ति ते वैरोचना, जम्बू०५७
ओदीच्यासुराः। जम्बू. १६२१ वइरप्पभ- त्रयोदशसागरोपमस्थितिकं विमानम्। सम० वइरोयण-विविधैः प्रकारे रोच्यन्ते-दीप्यन्त इति
विरोचस्त एव वैरोचनाः-उत्तरदिग्वासिनोऽसुराः वइरभूती-आयरियो महाकविः। व्यव० १८० आ।
तेषामिन्द्रः। स्था० २०५१ वैरोचनम्। तृतीयं वइरमज्झ- वज्रमध्यः। औप० ३२ निशी. ३०६ अ । लोकान्तिकविमानम्। भग० २७१। वइरमज्झा- वज्रस्येव मध्यं यस्यां सा वज्रमध्याः। तन्वि- अष्टसागरोपमस्थितिकं देवविमानम्। सम० १४१ त्यर्थः। स्था०६५। वज्रमध्या-याऽद्यन्तवृद्धा मध्ये हीना | वइरोयणराया-वैरोचनराजः-वैरोचनेन्द्रः। जीवा० १६६। च। स्था० १९५४
वइरोयणिंद- बलीन्द्रः। भग० १५६। जीवा. १६६। वइरमय-दिव्यो वज्रमयःस्थालः। आव. २७७)
वइरोसभ- वज्रऋषभ-वज्रऋषभनाराचं संहननम्। उत्त. वइररूव-त्रयोदशसागरोपमस्थितिकं विमानम। सम. ४५२।
वइरोसभनाराय- वज्र-कीलिका ऋषभः-परिवेष्टनपट्टः वइरलेस-त्रयोदशसागरोमपस्थितिकं विमानम। सम. नाराचं-उभयतो मर्कटबन्धः वज्रर्षभनाराचम। प्रज्ञा०
४७१ वइरवण्ण- त्रयोदशसागरोमपस्थितिकं विमानम्। सम० वइसस- वैशसं-दुःखम्। बृह. ९३ अ।
| वइसाह- अंतो पण्हितातो काउं अग्गतले वाहिजरहठितो
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मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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