Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 157
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] ४६२१ वंजणपरियावन्नं- व्यजनपर्यायापन्न-कथञ्चित् जीवा० २५६। प्रागवस्थापरि-त्यागेनावस्थान्तरापत्तिरित्यर्थः। आव० | वंदओ- वन्दितुम्। आव०४८७। वंदण- वन्दन-अभिवादनम्। जम्बू० ३९८। वन्दनं-परिशुद्धं वंजणलद्धि-व्यञ्जनं-अक्षरं तस्य लब्धिः व्यञ्जनलब्धिः वन्दनम्। आव० ५२४। वन्दनं-अभिवादनं प्रशस्तकायतथा-विधकर्मक्षयोपशमः। उत्त०५८४| वाङ्गमनःप्रवृत्तिः। आव०७८७ वन्दनं-अभिवादनम्। वंजणुग्गह- व्यञ्जनावग्रहः-सम्बन्धावग्रहः। नन्दी. आव० ८११। वन्दनं-स्तुतिः। भग० ११५ वन्दनं शिरसा। १६८ व्यञ्जनावग्रहः-शब्दादिरूपतया आव०४०६। ज्ञाता०४४। वन्दनं-अभिवादनम्। राज. परिणतद्रव्याणामव्यक्तरूपः मव्यक्तरूपः परिच्छेदः। २७। सिरं बारसावत्तं। निशी० २३७ आ। सिरप्पणानन्दी. १६८ व्यञ्जनावग्रहः-अवग्रहे प्रथमो भेदः। मादि। दशवै. १६३। वन्दनः-माङ्गल्यः। ज्ञाता० १२ नन्दी . १७४। वन्दनं-नमस्तुभ्यमित्यादिवाचाऽभिष्टवचनम्। उत्त. वंजणोग्गह- व्यंजनावग्रहः-व्यञ्जनेन-उपकरणेन्द्रियेण ૬૬૮1. शब्दादित्वपरिणतद्रव्याणां व्यञ्जनानामवग्रहो वंदणकलश-वन्दनकलश:-मङ्गलकलशः। जीवा०२२७) व्यञ्जनावग्रहः। स्था० ५१। व्यंजनेन सम्बन्धेनावग्रहण वन्दनकलशः-माङ्गल्यघटः। जम्बू०७६। सम्बध्यमानस्य शब्दादिरूपस्यार्थस्याव्यक्तरूपः। वंदणकलसहत्थगय- वन्दनकलशहस्तगतः-वन्दनकलसो परिच्छेदः व्यञ्जनावग्रहः। व्यज्यन्ते इति हस्ते गतः यस्य स। जीवा० २४८। व्यञ्जनानि, व्यञ्जनानाम्पकरणेन्द्रियसम्प्रा- वंदणवत्तिया- वन्दनप्रत्ययं-अभिवादननिमित्तम्। आव. प्तानामवग्रहः-अव्यक्तरूपः परिच्छेदो वा। प्रज्ञा० ३११। | ७८६) वंजियाओ-णामेहि। निशी. २७६ अ। वंदणिज्ज- वन्दनीयं स्तुतिभिः। औप. ५। वन्दनीयम्। वंजुल-सप्तमभवनवासी चैत्यवृक्षम्। स्था० ४८७। सूर्य. २६७ वजुलः-खदिरचञ्चुः। प्रज्ञ०८ वजुलः-वेतसः। वंदति- वन्दते-स्तौति। राज०४८ वन्दते-वाचा स्तौति। दशवै० ८४१ ज्ञाता०1 वंजुलग- लोमपक्षिविशेषः। प्रज्ञा० ४९। लोमपक्षिविशेषः। | वंदामि- वन्दे मस्तकेन। आव० ७६३। जीवा०४१। वंदित्ता- वन्दित्वा-स्तुत्वा। स्था० १११| वंझा- अपत्यफलापेक्षया निष्फला। ज्ञाता०७९। वंदिमो- वन्द्यः । दशवै० २७४। वंट- भागः। बृह. १३७ आ। वंदिय- वन्दितः-त्रिविधयोगेन सम्यक्स्तुतः। आव. ५०७। वंठा- वण्ठा-अकयविवाहा भीतिजीविणो य वंठा। ओघ. | वन्दितः स्तुत्या। भग० ५८२। वन्दित्वा-वाग्भिः स्तुत्वाप्र-शस्य। आचा० ३४१। वंडुरापाल- मन्चरा अश्वपालः। आव० ९७ वंध- वन्ध्यः षविंशत्तममहाग्रहः। जम्बू. ५३५१ वंत- वान्तं-वमनम्। ज्ञाता० १४७। वान्तं-उद्गीर्णम्। वंफेज्ज-अभिलषेत्। सूत्र. १८३। उत्त० ३३९। वान्तः-परित्यक्तः। भग० १७६। वंतं- वंमिए- वल्मीकः। आव० ६१९। संमच्छिमम-नष्योत्पत्तिस्थानम्। प्रज्ञा० ५०, ३७ वंमी- रप्फो- निशी० ४३ अ। वंता- वान्त्वा-त्यक्त्वा। आचा० १७२। वंश- प्रवाहः-आवलिका। जम्बू० २५८१ वंती- णाम पडिया। निशी. १०। वंस-वंशः-महान् पृष्टवंशः। जीवा. १८०| वंशः प्रतीतः। वंद- वृन्दः-समूहः विस्तारवत्समूहः। जम्बू. २००।। जीवा. २६६। वंशः-प्रतरभेदः। प्रज्ञा० २६६। वंशः-वेणः। वंदइ- वन्दते-वाचा स्तौति। जम्बू०७१। वन्दते-स्तुति प्रश्न. १५९। वंशः-कवेलकम्। जम्ब०२३। आचा० ३७८। कोरति। जम्बू. १५९। वन्दते स्तौति। सूर्य०६। वन्दते वंशः-पुत्रपौत्रादिपरम्परा। स्था० ५२४। वंशः- वेणुः। कायेन। सूत्र. २७४। वन्दते-प्रसिद्धेन चैत्यन्दनविधिना। ज्ञाता० २३२॥ वंशः-क्रमभाविपरुषपर्वप्रवाहः। नन्दी. ८९ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [157] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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