Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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लक्ष्णतरा रेणुपुद्गलः। जीवा० २४५। राजः-लक्ष्णरे- रजकनीलिकोत्थ- द्रव्यक्रोधः। आव० ३६११ णुपुद्गलः। जम्बू० २८९। रजः-कठिनं
रजोहरण-निषदयादवयोपेत्तम। बह. १५० आ। स्वेदार्द्रामलरूपम्। पांशु वा। उत्त० १२३।
धर्मध्वजः। पिण्ड०४। रएइ- रञ्जयति। ज्ञाता० २०५१
रज्ज- राज्य-प्रभुता। स्था० ३४३। राजादिपदार्थसमुदायः। रएउं- रङ्गयित्वा। ओघ० १४३।
भग०६९१। राष्ट्राधिपत्यरूपम्। उत्त०४४१। राज्यम्। रओ- पृथ्वीकाय आरण्यं वायूर्द्धतमागतं रजः। आव०७३३| ज्ञाता० १३१। राणयभोत्ती रज्ज। निशी० ८३ । रक्ख- रक्षः-वैश्रमणस्य पुत्रस्थानीयो देवः। भग० २०० एकनपाज्ञावर्ति मण्डलम्। बृह० ८० अ। यावत् देशेषु रक्खतिया- धनगोपपत्नी। ज्ञाता०११५
एकभूपतेराज्ञा तावद्देशप्रमाणमेतेषु यत्र यस्य। बृह. रक्खस-राक्षसः-त्रिंशत्तम मुहूर्तः सूर्य. १४६। जम्बू० ८० ४९१। राक्षसः-व्यवन्तरः। बृह. २६४ आ।
रज्जआ-दोरकोत्ति। निशी. १२१ आ। व्यन्तरभेदविशेषः। प्रज्ञा०६९।
रज्जणता- मणसा पीतिगमणं रज्जणता। निशी० ७१। रक्खा-रक्षा जीवरक्षणस्वभावत्त्वात्।
रज्जवइ-स्वतन्त्रः। भग० ५४२२ अहिंसायास्त्रयस्त्रिंशत्तमं नाम। प्रश्न. ९९।
रज्जसुंक- राज्यप्राप्तव्यम्। ज्ञाता० १३१। रक्खिअज्ज- रक्षितार्यः। उत्त. २९६।
रज्जसुक्कः - राज्यशुल्क। आव० ३४४। रखिज्जा- रक्षितार्याः उत्त० १७३।
रज्जह-रज्यत-रागं कुत। ज्ञाता० १४८। रक्खिए- रक्षोऽस्यास्तीति रक्षितः रक्षायां नियुक्तो रज्जियव्वं- रक्तव्यं-रागकार्यः। प्रश्न. १५९। रक्षिको । व्यव० १९० अ।
रज्जु-दशनालिकानिष्पन्ना। अन्यो० १५४। रज्जूःरक्खियज्ज- पितृप्राव्राजकः, निशी० २९ आ। निशी० १२९ | रज्जुगणि-तम्। सूत्र० २६९। रज्जुः। आव० ५१५) आ।
फलकसङ्घातन-दवरिका। ज्ञाता० १५७ अक्खी-सप्तदशमतीर्थकृत्प्रमाशिष्या। सम० १५२| रज्जुगणित- सङ्ख्यया भेदः। स्था० २६३। रक्खोवयग- रक्षोपगतः-रक्षामुपगतः, सततं प्रयुक्त रक्षः।। रज्जुच्छाया- छायाया भेदः। सूर्य ९५१ भग० १९४१
रज्जमती- दोरो। निशी. १२१ आ। रक्तं- गेयरागेण रक्तः-भावितः। अनुयो० १३२
रज्जू- रज्ज्वा यत्सङ्ख्यानं तद्रज्जरभिधीयते। स्था० रक्तचन्दन- चन्दनविशेषः। सम० १३८
४९६। रज्जुः । आव० २७३। रक्तपटवेष- रक्तवस्तवेषः। नन्दी. १५७
रज्झइ-राध्यते। आव० २०६३ रक्तपट्टलिङ्ग-तव्वणियः। आव०६२८१
रह- राष्ट्र-ग्रामनगरादिसम्दायम्। उत्त० ४४२। रक्तपाच-दीर्घग्रीवो जलचरः। निशी. ५६ आ।
रद्वउड-रट्ठमहत्तरो। निशी० २०९ । राष्ट्रकूटःरक्तरत्न- पद्मरागरक्तम्। अन्यो० २५४।
राष्ट्रमहत्तरः। बृह. २१२आ। रक्तवती- नदीविशेषः। स्था०७५ प्रपातह्रदविशेषः। स्था० | रहिओ- राष्ट्रिकः। आव. २१९। ७५
रहकूड- राष्ट्रकूटः-मणलोपजीवी राजनियोगिकः। विपा रक्ता- शिखरिणिवर्षधरे पञ्चम कूटम्। स्था०७२।
३९| नदीवि-शेषः। स्था०७५। प्रपातहृदविशेषः। स्था०७५ | रहथेरा- राष्ट्र व्यवस्थाकारिणो बुद्धिमन्त आदेयाः रक्तोदा- शिखरिणिवर्षधरे अष्टमं कूटम्। स्था० ७२ प्रभविष्ण-वस्ते राष्ट्रस्थविराः। स्था० ५१६| रचियग- रचितकं-मोदकचूर्णादिसाध्वाद्यर्थं प्राप्य रद्वधम्म- राष्ट्रधर्मः-देशाचारः। स्था० ५१५ पुनर्मोद-कादितया विरचितम्। प्रश्न.१५४
रद्ववद्धण- राष्ट्रवर्धनः-अज्ञातोदाहरणे रजउग्घात- रजस्वलादि शोयामुसस्सु समन्ततोऽन्धकार | प्रद्योतात्मजपालकल-घुपुत्रः। आव० ६९९। इव दृश्यते तत्र पांशुवृष्टौ रजउग्घातो। व्यव० २४०। | रहिय- राष्ट्रिकः-राष्ट्रचिन्तानियुक्तकः। प्रश्न० ९६|
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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