Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 123
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] रयत्ताणं-रजस्त्रामण। ओघ. १९९। रजस्त्राणं तिक्तादिरूपम्। प्रज्ञा० ५९९। श्रोतृणामाक्षेपकारी पात्रवेष्टनची-वरम्। प्रश्न. १५६। रजस्त्रामम्। आव. गुणविशेषः। बृह. १९२ आ। इक्षुरसः। निशी० १०७ अ। ६२३। राजस्त्राणं-आच्छादनविशेषः। ज्ञाता०१३ धातुपाणिएण तंबगादि आसित्तं सुवण्णादि भवति सो रजस्त्राणं-आच्छादनविशेषः। जम्बू. २८५ रसो भण्णति। निशी० ८६ आ। रसः लक्षणम्। दशवै. रययकूड- रजतकूट-नन्दनवने पञ्चमं कूटनाम। जम्बू० ४८। रसः-शृङ्गारादिः। प्रश्न. ११७। रसः-मधुरादिकः३६७ भोगो वा। उत्त०४०६। तीमनकाम्जिकादिः। स्था० रययवडिंसए- रजतावतंसकः-अपरस्यामवतंसकः। जीवा० ३८६। विकृतिः। आचा० ३०६। फाणिताद्रसः। दशवै० ८४| ३९११ रसः-निष्यन्दः सारः। दशवै० ११० रयरेणुविणासण- लक्ष्णतरा रेणुपुद्गला रजस्त एव रसकषाय- हरीतक्यादीनां रसः। आव. ३९० स्थूला रेणवः रजांसि च रेणवश्च रजो-रेणवस्तेषां रसगा- रसमनुगच्छन्तीति रसगाःविनाशनं रजो-रेणुविनाशनम्। जीवा० २४५। कटतिक्तकषायादिरसवे-दिनः संज्ञिनः इत्यर्थः। आचा. रयसंसद्हडा- रजःसंसृष्टाहृता-पृथिवीरजः सम्बद्धा नीता २३७ प्राभृतिका। आव० ५७६) रसगारव- रसगौरवं रसेन गौरवंरयसुसंपउत्तं- शृङ्गमयो दारूमयो वंशमयो इष्टरसप्राप्त्यभिमानाप्राप्तिवाऽगुलिकोश-स्तेनाहतायास्तन्त्र्याः स्वरप्रकारो प्रार्थनद्वारेणात्मनोऽशुभभावगौरवम्। आव० ५७९। लयस्तमनुसरद् गेयं लयसुसंप्रयुक्तम्। जीवा. १९५१ | रसहाए-रसार्थं सरसमिदमहमास्वादयामीति धातुविशेषो रयहरणं- रजोहरणम्। आव० ३१९, ७९३। रजोहरणं- वा रसः, स चाशेषधातूपलक्षणं ततस्तदुपचयः धर्मध्वजः। पिण्ड० १३। ज्ञाता०५३ स्यादित्येतद-र्थम्। उत्त०६६७। रयहरणचाय- रजोहरणवर्जः, रजोहरणग्रहणम्। व्यव० रस(सर)देवी- चतुर्थवर्गे नवममध्ययनम्। निर० ३७। २७आ। रसना- जिह्वा। जीवा० २७३। रयहरणपडिग्गहमत्ता- रजोहरणप्रतिग्रहमात्रा। आव. रसनिज्जूढ- रसनियूढं-कदशनम्। दशवै० २३१| ३५६। रसनिज्जूहणया- घृतादिरसपरित्यागः। स्था० २३३॥ रयिप्पिया- धर्मकथायां पञ्चमवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० रसपरिच्चाओ- रसत्यागः। भग० ९२११ २५२२ रसमाणप्पमाणे- रसमानप्रमाणंरयुग्घात- महास्कन्धावारगमनसमुद्धता इव सेतिकादेश्चतुर्भागाधिकमभ्य-न्तरशिखाय्क्तं विश्रसापरिणामतो समंता रेणुपतनं। निशी० ७० अ। यद्रसमानं क्रियते तत्। अन्यो० १५२ रयुग्घाय- रजउद्घातः-रजस्वला दिशः। अन्यो० १२१।। | रसमान- कर्षादि। स्था० १९८१ चतुःषष्टिकादि। जम्बू रयोहरण- रजोहरणम्। प्रश्न० १५६) રરના रल्लग-रल्लकः-कम्बलविशेषः। जम्बू. १०७ रसमुच्छिए- तत्पिशितास्वादस्तत्र मूर्च्छितो-गृद्धो रसरल्ला-दधिजन्तुविशेषः। आव०६२४। मूर्छितः। उत्त०४३८1 रवइ- रवते-शब्दं करोति। जीवा० २४८१ रसमेह- रसजनको मेघो रसमेघः। जम्बू. १७४। रविगत- जत्थ सूरो द्वितो तं रविगतं। निशी. ९९ अ। रसया- रसाज्जाता रसजाः-तक्रारनालदधितीमनादिष रवित- रुतम्। ज्ञाता० १६० पायुकृम्याकृतयोऽति सूक्ष्मा जीवाः। दशवै० १४१। रस- रस्यते-आस्वादयत इति रसः। प्रज्ञा० ४७३। रसवती- शालनकादि। व्यव० ८१ अ। अत्यन्तासक्तिरूपः। उत्त० २९६। रस्यते रसवाणिज्ज-रसवाणिज्यं- रसव्यापारः। आव०८२९ अन्तरात्मनाs-नुभूयत इति रसः। अनुयो० १३५। रसं- | रसहरणी- रसो ह्रियते-आदीयते यया सा रसहरणी-नाभिरसग्राहकं रसनेन्द्रि-यम्। रस्यते-आस्वादयतेऽनेन नालम्। भग०८ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [123] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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