Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
View full book text
________________
[Type text]
आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
[Type text]
सुविहित-साधुनेपथ्यं च। प्रश्न. १२५। रूप-सौन्दर्यवती स्वसहिय- तदेवाभरणसहियं। निशी. ७७ अ। आकतिः। प्रज्ञा० ५५१। रूपं-मतिः । स्था० ३९। रूवहेउ-| स्था० ९० नरयुग्मादि। सूर्य. २६४। रूपं-अङ्ग
रूवा- रूप-राजहंसचक्रवाकसारसादीणि, प्रत्यगावयवसन्निवेशविशेषः। सूर्य. २९२। रूपं- गजमहिषमृगयूथा-दीणि वा, जलान्तर्गतं काष्ठकर्मादि। आव० १२८। रूप-अन्यूना-ङ्गता। उत्त. करिमकरादीणि वा। सूत्र० २७२। १४५ आव० ३४१। रूप-आकृतिः । आव० ५६९। रूपं- रूवाणुवाए- अभिगृहीतदेशाद बहिः प्रयोजनभावे रूपमदः-यद् रूपस्य मानम्। आव०६४६। रूप-लेप्य- शब्दमनुच्चारयत एव परेषांसमीपानयनाथ शिलासुवर्णवस्त्रचित्रादिष रूपनिर्माणम्। जम्बू. १३७ । स्वशरीररूपदर्शनं रूपानपातः। आव०८३। रूपानुपातःरूपः-स्वभावः। प्रज्ञा० ३५९, ३७१। रूपं-महा-राष्टिकादि। रूपदर्शनम्। आव० ८३४१ उत्त० ४२४। रूपं-कटाक्षनिरीक्षणादि चित्रादि-गतं वा।। | रूवियं- सुरूपम्। आव०७१५१ उत्त०४२७। रूपं-पिशितादिपुष्टस्य शरीरशोभा-त्मकम्। | रूवियलिंग-रोदनचिह्नम्। मरण | उत्त० ४४०। रूपं-रूपस्पर्शायाश्रया मूर्तिः। उत्त० ६७२ | रुवी- गुच्छाविशेषः। प्रज्ञा० ३२। बाहिरब्भंतरकरणवजितो रूपं-निर्जीवं, प्रतिमारूपम, भूषणविकलं वा रूपम्। सा रूवी, मुडो सुक्किल्लवासधारी कच्छ ण बधति, दशवै० १४८। रूपं-सदाकारसंस्थानम्। जम्बू. २३६।। अबंभ-चारी, अभज्जगो भिक्ख हिंडइ। निशी० ३१ आ। रूवकहा-अन्ध्रीप्रभृतीनामन्यतमाया रूपस्य यत्प्रशंसादि | रूह- रूक्षः-निःस्नेहः। ज्ञाता०१११|
सा रूपकहा। स्था० २०९। रूपकथा-रूपसम्बन्धेन स्त्रीणां | रे-लघोरामन्त्रणं साक्षेपवचनः। उत्त० ३५८१ कथा। प्रश्न. १३९।
रेक्का - रेखा। आव० ४३ रूवखंधे-रूपस्कन्धः-पृथिवीधात्वादयो रूपादयश्च। सूत्र० रेगा- रेको विविक्तः। व्यव० १५७ आ।
२७। रूपस्कन्धः-पृथिवीधात्वादिको रूपादिकश्च। रेचक-भ्रमरिका। जम्बू०४१८१ प्रश्न.३१
रेचिंतं- निष्पन्नम्। जम्बू०४१८१ रूवग-रूप्यकः। उत्त०२७६। आव०४१७
रेणा- कल्पकवंशप्रसूतशकटालस्य सप्तमी पुत्री। आव. रूवगदोस- रूपकदोषः-स्वरूपावयवव्यत्ययः, सूत्रदोष ६९३ विशेषः। आव. २७४।
रेणुगा- रेणुका-अनन्तवीर्यभार्या। आव० ३९२। रूवजक्खा- रूपयक्षाः-धर्मपातकाः। व्यव० १६९। | रेणुगुंडिय- रेणुगुण्डितं-रेणुधूरितम्। ओघ० ११० रूपयक्षाः-रूपेण मूर्त्या यक्षा इव रुपयक्षाः मूर्तिर्निमंतो- | रेणुय- रेणुः-भूवर्ती तु रेणुः। सम०६१। धर्मिकनिष्ठा देवाः। व्यव० १७१ अ।
रेणुया- साधारणबादरवस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० १६) रूवतेण- रूपवन्तमपलभ्य स त्वं रूपवानित्यादि भावनया भग० ८०४१ रूपस्तेनः। प्रश्न० १२५। रूपस्तेनः-राजपुत्रादितुल्यरूपः। | रेणु-रेणुः-स्थूला रेणुपुद्गलाः। जीवा० २४५। रेणुः-स्थूलदशवै० १९०
तमरजः पुद्गलः। जम्बू० ३८९। रेणुः-रजः। ओघ० २१५। रूववती-धर्मकथायां पञ्चमवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० २५२। रेणुः-स्वपतः शरीरे लगति। ओघ० २१७। रेणुः-वालुका।
भूतेन्द्रस्य प्रथमाऽग्रमहिषी। भग० ५०४ स्था० २०४। भग० ३०७। जम्बू. १६९। धूलिः। ओघ० २१३। रजः त रूवसंघाट- रूपसङ्घाटः-रूपयुग्मम्। जीवा० १८०| एव स्थूला रेणवः। राज०१८ भग०६६५ रूवसच्च- अतद्गुणस्य तथारूपधारणं रूपसत्यम्, यथा | रेभित-कल्स्वरेण गीतोद्गातृत्वाम्। जम्बू०४१७
प्रपञ्चयतेः प्रव्रजितरूपधारणम्। दशवै० २०८। रेरिज्जमाण- हरिततया देदीप्यमानः। राज०१४५१ रूवसच्चा- रूपसत्त्या-पर्याप्तिकसत्याभाषायाः पञ्चमो रेरिज्यमाणः-देदीप्यमानः। भग० ३००। भेदः। प्रज्ञा० २५६|
रेल्लग- रेल्लकः- पूरः। आव० ५८१। रूवसहगय-रूपसहगतम्। प्रज्ञा०४३८।
| रेल्लण- प्लावनम्। पिण्ड० १२॥
मनि दीपरत्नसागरजी रचित
[135]
"आगम-सागर-कोषः" [४]

Page Navigation
1 ... 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246