Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 134
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text]] रूक्ष-स्नहोपदर्शनरहितम्। व्यव० ५६ आ। स्पर्शभेदः।। प्रज्ञा०४७३ रूढ- चिरप्ररुढम्। नन्दी०४६| रूढा- प्रादुर्भूता। दशवै० २१९। रूद्धारो- रूद्धारः-अपवादः। व्यव० ३०३। आ। रूप- शरीरसौन्दर्यम्। ज्ञाता० २११। आकारः। सम० १३९ रूपक- रूप्यम्। नन्दी० १४६। आचा० १६७। रूपकथा- रूपस्य प्रशंसनं द्वेषणं वा स्त्रीकथायास्तृतीयः भेदः। आव. ५८१ रूपकदोष- स्वरूपभूतानामवयवानां व्यत्ययः। अनुयो. ર૬રા. रूपयक्षाः- यक्षभेदः। प्रज्ञा०७० रूपशालिनः- किन्नरभेदविशेषः। प्रज्ञा०७० रूपसप्तैकक- आचाराङ्गद्वितीयश्रुतस्कन्धे पञ्चममध्ययनम्। स्था० ३८७। रूपसहगत- सजीवं भूषणविकलं वा रूपं भूषणसहितं। रूपसहगतम्। स्था० २९१| रूप्पि- भेशकसुतः। ज्ञाता० २०९। रूप्यकूला- नंदीविशेषः। स्था०७४। प्रपातह्रदविशेषः। स्था०७५ रूयंसा- धर्मकथायां चतुर्थवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० २५२ स्था० १९८। भूतानन्दस्य दवितीयाऽग्रमहिषी। भग. ५०४१ स्था० १९७५ रूय- रूतं-कर्पासपक्ष्म। सूर्य. २९३। रोगो। निशी० ७७ आ। रूयकता- धर्मकथायां चतुर्थवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० २५२। रुयग- रूतादेव्याः सिंहासनम्। ज्ञाता० २५२। रूयगगाहावई- चम्पायां गाथापती। ज्ञाता०२५२ ख्यगसिरी- रूचकगाथापतेर्भार्या। ज्ञाता०२५२| रुयगावती- धर्मकथायां चतुर्थवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० २५२। रूचकावती-मध्यरूचकवास्तव्या दिक्कुमारी। आव० १२३॥ रुयप्पभा- धर्मकथायां चतुर्थवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता० २५२। रुययंसा- रूचकांशा-मध्यरूचकवास्तव्या दिक्कमारी। आव०१२३ रुयया- रूचका-मध्यरूचकवास्तव्या दिक्कुमारी। आव० १२३॥ रूयवडिंसए-रूतादेव्या भवनम। ज्ञता०२५२ रूया- रूचकगाथापतेर्दारिका। ज्ञाता० २५२। धर्मकथायां चतुर्थवर्गे प्रथममध्ययने देवी। ज्ञाता० २५२। भूतानन्दस्य प्रथमाऽग्रमहिषी। भग० ५०४१ स्था० १९८१ रूयाणंदा- रूतादेव्या-राजधानी। ज्ञाता०२५२ रूवंधर- रूप-रजोहरणादिकं-वेषं धारयती रूपधरः। उत्त. ४३६। रूव-रूप-आकृतिः। उत्त० ४४२। रूपं-आकारः। उत्त. ४३६| रूव-रूप-आकृतिः। उत्त० ४४२। रूपं-आकारः। उत्त० ५४२, ४७३। सुसंस्थानता। उत्त०६२६। रूप्यत इति रूपं-वर्णः संस्थानं वा। उत्त०६। रूप्यते-अवलोक्यत इति रूपं आकारश्चाविषयः। स्था० २५। रूपं-स्वाभावः नेपथ्यादि। स्था० १०८। रूपं-मूर्तिवर्णादिमत्त्वम्। स्था. १९६। रूपकः-रूप्यम्। नन्दी. १६५। रूपापेक्षया सत्यं रूपसत्यम्। स्था०४८९। रूदन्ति। पिण्ड० ११० रूतम्। ओघ. १४०। विशे० १०५। रूपं। रूवं णाम जं कट्ठचित्तलेप्पकम्मे वा पुरिसरूवं कयं अहवा जीवविप्पमुक्कपरिस-सरीरं तं। निशी. १ अ। रूपंअनुत्तरसुररूपादनं-तगुणम्। ज्ञाता० ६। बलाविशेषः। द्वासप्ततिकलाषु तृतीया। ज्ञाता० ३८॥ सुविभत्तगोवंगअहीण-पंचेदियत्तणं| निशी. २९० अ। उद्वतनस्नानजंपास्वेदकरणणहदन्तवालसंठावणादियं आभरणवत्थाणि वा णाणादेसियाणि विवि-हाणि। निशी० ८ आ। णिजीवं, भूषणवज्जियं वा। द० ६६। रूपं-भूषणरहितं जीववियुक्तं वा। बृह० ४१ अ। रूपः- रूपं-मूर्तिः । व्यव० १७१ अ। रूपं नाम-स्पर्शरूपादिसम्मूर्च्छनात्मिका मूर्तिः। प्रज्ञा० ८। रूपं नामसंकटविकटादिरूपम्। आचा० २४। रूपं-विहित नेपथ्यं शरीरसुन्दरता वा। भग० १३६। रूपं-अनवबद्धा-स्थीनि कोमलफलरूपम्। आचा० ३९१। रूपं-निर्जीव प्रतिमारूपम्। स्था० २९१। रूपं-मूर्तिवर्णादिमत्त्वम्। स्था० ३३३। रूपं-सुसंस्थानता। उत्त. २६७। रूपंआकारसौन्दर्यम्। उत्त०४९५ रूप्यंलेप्यशिलासवर्णमणिवस्त्रचित्रादिष रूपनिर्माणम्। सम० ८४। रूपंआकृतिः। प्रश्न. ३६। रूपं- आकारः। अनुत्त०४। रूपंरूपकम्। जीवा० १८० रूपं-आकारविशेषः। प्रश्न० ८५ रूपं-आकृतिः। प्रश्न. ११७। रूपं-शरीरसुन्दरता, मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [134] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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