Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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५३
लूर्णेति-। ज्ञाता० ११६
लुंडिया- लिण्डिका। आव० ४१७ लूता- कुष्ठभेदः। आचा०७५ अवरदविगा। ओघ १३० लेख-विधा लिपिविषयभेदात्। सम० ८३। विसकुम्भो। निशी. ४८ अ।
लेखनी-लेखिती-ययाऽक्षराणि लिख्यन्ते। जीवा. २३७। लूया- लूता-कोलिकपुटम्। बृह. २७८ अ। लूता
अनुयो० १२३ कोलियकः। ओघ० १२६।
लेच्छड़-लिप्सुकः वणिगादिः। सूत्र. २७८। लेच्छकिःलूयातंतुपुडग- लूतातन्तुपुटकम्। उत्त० ३२५
एतन्नामानो राजविशेषः। भग० ३१७। क्षत्रियविशेष लूषयन्- शनैः प्रमार्जयन्। ३२९।
एव। सूत्र. २३६। लिप्सूः वणिग्विशेषः। स्था० ५०८। लूषयेत्- दशेत्। व्यव० १३३।
लेच्छकी-राजविशेषः। औप. ५८१ भग० ११५, ४६३। लूसए- लूषयति-मुष्णाति व्यसकापादितमनिष्टमिति लेच्छकिनः- राजविशेषाः। राज०१२१। लूषकः। स्था० २६२। लूषयति-मुष्णाति। स्था० २६२। | लेच्छारिय- खरण्टितः। व्यव. २४६ आ। खरण्टितम्। लषयेत् स्वकं स्वत एव खण्डयेत्। दशवै०१७६
पिण्ड०७४। लिप्तम्। निशी० २२० । लूसग- लूषकः-विकल्पभेदः। दशवै० ५७। लूषकः-व्रतानां लेज्झ- लेह्य-मधुशिखरिणीप्रभृति। ज्ञाता० २३२। विध्वंसकः। आचा. २५३
लेड- लेष्टुः। प्रश्न० ५८1 लेष्टुः, विजातिरत्नम्। जम्बू. लूसण- लूषणं-हस्तादिना पनकादेः सम्मार्जनम्। औप० २१२२
लुहुअ-लेष्टुकम्। आव० २१८ लूसिए- लूषितः खड्गादिना। दशवै० २६७।
लेण-लयनं-आश्रयः सत्त्वानाम्। स्था०४३० लयनंलूसिमो- रुष्यामः-रोषं कर्तुमर्हामः। बृह. २८७ अ। गृहम्। स्था०४५१। लयनं-पर्वतनिट्टिगृहम्। प्रश्न० ८। लूसेज्ज-विरोधयेत्। आचा० ३४४।
लयन-शैलगुहम्। प्रश्न० १२७। लयनं-गुहा। उत्त०६४। लूसेमाणी- मुष्णन्ति। जीवा० ३६२।
लयनं-उत्कीर्णपर्वतगृहः। भग० २३८१ लयनं-पर्वतनिलहे- रूक्षः-शरीरे मनसि च द्रव्यभावस्नेहवर्जितत्वेन क्कुटितगृहम्। जम्बू. १०७। लयनम्। दे० यस्स परुषः, लूषयति वा कर्ममलमपनयतीति लूषः। स्था० उवरिजं देवकुलं तं। निशी. १९२ आ। लयनं१८१। रूक्षः-संयमः। सूत्र०८८ रूक्षः। भग०४८४| रूक्षः- गिरिपर्वपाषा-णगृहः। ज्ञाता०८० अन्तप्रान्ताहारत्वेन रूक्षः। सूत्र. २९८ रूक्षः-स्नेहप- लेणसुहुम- लयनसूक्ष्मम्। स्था० ४३०| रित्यागात्। साधोरूपमानम्। दशवै० ८४।
लेत्थारिय- लिप्तम्। ओघ. १४४। आगन्तुकस्नेहादि-रहितं, रामरहितपगताङ्गारम्। लेप- नाभिप्रमाणे उदकसंस्पर्श लेपः। व्यव० २५आ। आचा० १४४। स्वजनादिषु स्नेहविरहाद्रूक्षः साधुः। लेपकल्पिक-सूत्रोक्तप्रकारेण लेपं परिहरति-परिभोगयति दशवै. २६२। रूक्षः-निःस्नेहम्। स्था० २९८१
स लेपकल्पिकः। बृह. ८२आ। लेपकृतम्। बृह. २३८। तैलादिवीर्जतम्। स्था० २९८। रूक्षः-निःस्नेहः। ज्ञाता० । लेप्प- लेप्यं-मृत्तिकाविशेषः। प्रश्न० १६०| लेप्यं वज्रलेपा१११। रूक्षं-आगन्तुकस्नेहादिरहितं द्रव्यतो भावतोऽपि, दिश्लेषद्रव्यः। उत्त० ४६१। रागरहितमपगताङ्गारम्। आचा० १४४। रूक्षं
लेप्पकम्म- लेप्यकर्म-लेप्यरूपकम्। अनुयो० १२ अप्रीणितम्। भग० १८९। रूक्ष-निःस्नेहम्। प्रश्न. १०६। लेप्यपुत्त-लिकादि। अनुयो० १२। रूक्षः-संयमान्निःसङ्गात्मकः। आचा० २५८।
लेप्पकार- लेप्यकारः-शिल्पभेदः। अनुयो० १४९। लूहदेसिए- रूक्ष्यदेश्यं-रूक्षकल्पमन्तप्राप्तम्। आचा. लेप्पणवाण- लेप्यस्थानम्। आव० ४२२॥ ३१०
लेप्पार-तुन्नाकविशेषः। प्रज्ञा०५६। लूहवित्ती- रूक्षवृतिः-संयमवृत्तिः। दशवै. १८७ लेप्यकर्म- लेप्यरूपकम्। अन्यो० १३। लेप्यकर्मलूहि-तित्थे चिट्ठति। निशी. १७आ।
पुस्तकर्मम्। आचा०४१४१ लूहेति-रूक्षयति। आव० १२३॥
| लेलु- लोष्ठः। सूत्र० २९८1 लोष्टः। दशवै० १५२। लेष्टुः
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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