Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 138
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] मौर्यपुत्रजन्मनक्षत्रम्। आव. २५५) हिंसायतिक्रौर्यानुगतं रौद्रम्। स्था० १८८१ रोहिणिया- रोहिणिका-त्रीन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२ । | रौप्यकूला-रुक्मिवर्षधरे षष्ठं कूटम्। स्था०७२। प्रज्ञा० ४२। रोहिणिका-रोहिणीपर्यन्तानि। सूर्य. ११४१ -x-x-x-xधनरक्षितभार्या। ज्ञाता० ११५ रोहिणी- ज्ञाताधर्मकथायां सप्तममध्ययनम्। सम० ३६) लंख-लखः-महावंशानखेलकः। प्रश्न. १४१। औप० ३। नवमबलदेवस्य माता। सम० १५२। स्था० २०४। भग. लखः-यो महावंशाग्रमारुह्य नृत्यति। जीवा० २८१। ५०४ शक्रेन्द्रस्याष्टमी अग्रमहिषी। भग०५०५। लखः-महावंशानखेलकः। राज० रा लखःसोमस्य प्रथमाऽग्रमहिषी। भग०५०५। वंशानखेलकः जम्बू० १४२। लखः-यो कटुद्रव्यमिवोपभुज्यमानम-तिशयेनाप्रीतिजनिका। महावंशाग्रमारोहति सः। अन्यो०४६। जीवा. १२० दक्षिणपश्चिमरतिकर-पर्वतस्योत्तरस्यां लंखगकुलं- लखकक्लम्। आव० ३५९। सुदर्शनाराजधान्यधिष्ठात्री शक्रदेवेन्द्रस्य लंखा- वंशवरत्तारोहगा। निशी० ४३ आ। लंखिका- परिधानं। निशी० १७९ आ। चतुर्थ्यग्रमहिषी। जीवा० ३६५। राममाता। प्रश्न० ७३। अरिष्ठपुराधिपतिरुधिरसुता वसुदेवपत्नी च। प्रश्न. लंगती- शनैः शनैः खजति। उत्त०४३। ९०| देवदाली। प्रज्ञा० ३६५। जम्बू० १५९। जम्बू. १६९। लंगलिय- लाङ्गालिकः-कार्पटिकविशेषः। ज्ञाता०५८ वापीनाम। जम्बू. ३७०। नक्षत्रनाम। सूर्य. १३० लंघण- लङ्घन-अतिक्रमणम्। जम्बू. २३७। जीवा० १२२॥ महाविद्यानाम। आव० १४४। रामबलदेवमाता। आव. लङ्घनं-गर्तादेरतिक्रमम्। जम्बू० २६५, ५३। लङ्घनं१६२ रोहिणी-ज्ञातायांसप्तममध्ययनम्। आव०६५३। उत्प्लुप्तगमनाम्। उत्त० १३५१ आचा० १०६) रोहिणी-उदयो मारणान्तिक इति विषये जीर्णगणिका। लंचा- लञ्चा-उत्कोटा। प्रश्न० ५८ ललितागोष्ठ्याः पाचिका। आव०७२३। वसुदेवस्य लंछ- लञ्छः-चौरविशेषः। विपा० ३९। प्रथमा राज्ञी। उत्त०४८९। रोहिणी-षष्ठाड़गे सप्तमं लंछण- लाञ्छन-कर्णादिकल्पनाऽकनादिभिः। प्रश्न ज्ञातम्। उत्त०६१४॥ त्वग्विशेषः। उत्त०६५३ ३८ लञ्छनं-चिह्नविशेषः। अनुयो० २१२। धर्मकथायां पञ्चमवर्गेऽ-ध्ययनम्। ज्ञाता० २५२ लंचिज्जइ- लञ्छयते-खण्ड्यते। दशवे. २२६। धर्मकथायां नवमवर्गेऽध्ययनम्। ज्ञाता०२५३। ज्ञातायां लंछिते-क्षते। निशी० १२१ आ। अवलिप्यकृताक्षरम्। बृह. १६८ आ। सप्तममध्ययनम्। श्रेष्ठिवधूः। ज्ञाता०९। रोहिणीप्रभृति- विद्यासाधनाभिधायिकानि शास्त्राणि। लंछिय- लाञ्छितं-रेखादिकृतलाञ्छनम्। भग० २७४। सम०४९। लाञ्छितं-रेखादिना। ज्ञाता०११६, ११९| रोहितांशा- हिमवद्वर्षधरपर्वते सप्तमं कूटम्। स्था०७१। लंछिया- रेखादिभिः कृतालाञ्छना। स्था० १२४। नदीविशेषः। स्था०७५ लंछेऊण- लाञ्छयित्वा। आव०४२११ लंतगवडिंसए- लन्तकदेवलोकस्य मध्येऽवतंसकः रोहिता- महाहिमवति चतुर्थं कूटम्। स्था० ७२। रोहियंस-तृणविशेषः। प्रज्ञा० ३३। भग० ८०२१ लन्तका-वतंसकः। जीवा. ३९२१ रोहिय- रोहितः-चतुष्पदविशेषः। प्रश्न. ७ लंतगा- लान्तकं-तृतीयवासुदेवागमनदेवलोकः। आव. रोहियप्पवायद्दहे- । स्था०७५/ रोहियमच्छ- मत्स्यविशेषः। प्रज्ञा० ४४। जीवा० ३६। लंतय- महाशक्रे देववमानविशेषः। सम० २७ लान्तकःरोहिया- रोहिता-रोहितजातीया। उत्त०४०७। कल्पोपगवैमानिकभेदविशेषः। प्रज्ञा०६९। रोहीडए- रोहीटकं वैश्रमणदत्तराजधानी। विपा० ८२ लंद-अधिगं च पोरिसी लन्दम्। निशी. १८आ। नगरविशेषः। महाबलस्य राजधानी। निर०४०। लंब-लम्बः-भवनपतिष् नवम इन्द्रः। जीवा० १७० रौद्र- भल्लिगृहोपाख्यानाद्रौद्रः। आचा. १४६। रौद्रं लंबण- लम्बनम्। दशवै० ३८। मेण्द्रम्। निशी० ११६ आ। लम्बनं-कवलः। ओघ. १०४। पिण्ड० १७२ आव०७२६॥ १६३ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [138] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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