Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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रहस्सब्भक्खाण- रहस्याभ्याख्यानं-एकान्तेऽभ्याख्यानं | राइमई- राजीमतीः-उग्रसेनपुत्री। दशवै० ९६। असदध्यारोपणम्। आव० ८२०
राइयं- रात्रिकं-रजनिनिवृत्तम्। प्रतिक्रमणविशेषः। आव० रहस्सिय-रहस्सियकम्। आव. २६७। रहस्सिया- रोहस्यिकी। बृह. ५९ आ।
राइल्लऊण-रालालिप्तं-सन्धितं कृत्वा। आव०४२५ रहाणीयं-रहेहिं बलदरिसणा रहाणीय। निशी. ७१ राइस्सिउ-राजाश्रितः। निशी० २५अ। रहावत्त- रथावतः-पर्वतविशेषः। आव. १७६, ३०४। राई-राज्ञः-चक्रवर्त्यादि। स्था० १७२ धान्यविशेषः। रहितं- अग्रपादाभ्यामीक्षणं एकपक्षदृष्टिसंबन्धो वा। ब्रह. निशी. १२० अ। आमलकल्पायां गाथापतिः। ज्ञाता० १४ आ।
२५०। रातीगाथापतेर्दारिका। ज्ञाता०२५०। राजानोरहिय-रहितः-परित्यक्तः । उत्त० ४२८।
मण्डलिकाः। राज० १२१। राजी। राज० ११२ राअ- राजा-चक्रवर्ती। भग०७००| भरताधिपः। आव० राईण- राजानः-क्षत्रियेभ्योऽन्ये। आचा० ३३४१ १५६। चक्रवर्ती-वसुदेवः-बलदेवः-महामण्डलिकश्च। राईणिया- राजानः-तत्कल्पा ईश्वरादयो वा। सूत्र०७१। अनुयो० २३
राईतिहो- यस्तु पश्चार्द्धभागः स रात्रितिथिः। सूर्य. १४९। राइंदिय-रात्रिन्दिवं- रात्रिदिवसप्रमाणम्। सूर्य०६१। राईसिरी- रातीगाथापतेर्भार्या। ज्ञाता० २५० राइ-धर्मकथायां प्रथमवर्गे दवितीयमध्ययनम्। ज्ञाता० राईहिंतो-राजभ्यः । आव० ३४४ २४७। राजा-महामण्डलिकः। स्था० ४६३।
राउल-राजकुलम्। आव० ९९। ओघ०१५२ आव. २७९| राइए- रात्रिशब्दोऽप्यहोरात्रवाची। जम्बू. १५०
राउलओ- राजकुलगः। आव०८९) राइणा-राज्ञा। ओघ. १९८1 आव० ३६७)
राउलग- राजकीयः। बृह. २७ आ। राइणिओ-रात्निकः-आचार्यः। आव०६३८ रात्निकः- राउला-राजकीया। ओघ० १४० आचार्यः, अन्यो वा यो जातिश्रुतपर्यायादिभिर्महान्। राउलिय- राजकुलिकम्। उत्त० ११९। राजकुलीनः। आव० आव०६५४१
५५८। राजकुलीयः-राजकुलसम्बन्धो। दशवै०४५। राइणियपरिभासिय-रानिकपरिभाषी-यो
राओ- सन्ध्या विकालवियुता रात्रिर्वा। बृह. ९२आ। रात्निकस्यआचार्यस्य
संज्झा। निशी. १९३अ। जातिश्रुतपर्यायादिभिर्महतोऽन्यस्य वा पराभवकारी। राओवरयं- रात्र्यपरतम्। उत्त०४१४। रागः-अभिष्वङ्गः पञ्चममसमाधिस्थानम्। आव०६५३
उपरतः निवृत्तो यस्मिंस्तत्रागोपरतम्। उत्त०४१४| राइणिया- पुव्वदिक्या सब्भा उवदेसगा वा, जे वा अन्ने रात्रोपरात्रम्-अहर्निशम्। आचा० ३१३। पूया। दशवै. १२४। आव०७९३॥
राक्षसराक्षसाः- राक्षसभेदविशेषः। प्रज्ञा० १७०| राइण्ण-राजन्यः-भगवद्वयस्य वंशजः। भग० ११५ राग-रागः-रञ्जकरसः। स्था० २१९। रक्ताता। जीवा. यस्तेनैव वयस्यतया व्यवस्थापितस्तदवंशजश्च १७३। रूपादयाक्षेपजनितः प्रीतिविशेषः। आव. २७२। राजन्यः। औप० २७
रागः-रागानभूतिरूपत्वादस्य अब्रह्मणो विंशतितमं राइतओ- रागवान्। आव० २०९।
नाम। प्रश्न०६६। रागः-पित्रादिष् स्नेहरागः। प्रश्न राइन्ना- आदिदेवेनैव-वयस्यतया व्यवहृताः। भग०४८१। १३७। रागः-स्नेहरागः। प्रश्न. १३८। रागः-रक्तता। कुलार्यभेदविशेषः। प्रज्ञा० ५६। राजन्याः-वयस्यतया प्रज्ञा. ९६। रागः-अभिष्वङ्गलक्षणः। आव० ८४८। व्यवस्थापितः। जम्बू. १४५। राजन्याः-सखिस्थानीयाः। कम्मजणितो जीवभावो रागो। निशी०७अ। आचा० ३२७। ये तु वयस्यतयाऽऽचरितास्ते राजन्याः। अभिष्वङ्गलक्षणः। आव० ५९७) स्था० ३५८। राजन्याः -भगवद्वयस्यवंशजाः। राज० रागज्झज्ञा-इष्टविषयावाप्तौ रागझञ्झा। आचा० १७०| १२१
रागद्दोसतुलग्ग- रागद्वेषयोस्तुलाग्रमिव राइभत्ते- रात्रिभक्तः-रात्रिभोजनम्। दशवै०११६)
तदनभिभाव्यत्वेन राग-दवेषतुलाग्रम्। उत्त० ११५
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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