Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 130
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] घोल-नाबहुलम्। अनुयो० १३२ परिवारादिका। प्रज्ञा० ६०० रिच्छ- ऋक्षः। जीवा० २८२। रिपुमईन- आन्दपुरस्य राजा। पिण्ड० ३१| रिट्ठ- रिष्टरत्नकाण्डं-षोडश, रिष्टरत्नानां विशिष्टो | रिभित- यत्राक्षरेषु घोलनया संचरन् स्वरो रङ्गतीव भूभागः। जीवा०८९। स्था० १९८, ४०६। रिष्ठः घोलनाब-हलम्। स्था० ३९६| स्वरघोलनावत्तम्। कंसराजसत्को मल्लः। प्रश्न०७४। रिष्ठः ज्ञाता०२५ स्वरघोलनावद् मधुरः। ज्ञाता० १७९| लोकान्तिकदेवस्य जातिविशेषः। आव० १३५ षडिवशतितमो नाट्यविधिः। जीवा० २४७। रिष्ठरत्नः। ज्ञाता० ३१ब्रह्मलोककल्पे रिभिय- चउविहे नट्टे बीओ भेओ। निशी. ९ अष्ठ। विमानप्रस्तरः। ज्ञाता० १५०| रिष्ठः-द्रोणकाकः। उत्त. रिभितः-स्वरघोलनाप्रकारवान्। ज्ञाता०२३ स्वरघोल६५२ अष्टादशसागरोपमस्थितिकं देवविमानम्। सम० नाप्रकारोपेतम्। ज्ञाता० २१११ यत्र स्वरोऽक्षरेषु-घोलना३५रिष्ठः-रिष्टविमानवासी नवमो लोकान्तिकदेवः। स्वरविशेषेष संचरन् रागेऽतीव प्रतिमासते स भग०२७१। पदसञ्चारो रिभितम्। जीवा० १९५जम्बू० ४० रिभितं रिहग-रिष्ठकः-फलविशेषः। उत्त०६५२ स्वरघोल-नावत्। प्रश्न १५९। रिहपुर- रिष्टपुरं-शीतलजिनस्य प्रथमपारणकस्थानम्। | रिम्भित- षडिवशतितमो नाट्यविशेषः। जम्बू४१७॥ आव०१४६| मृदुपदसञ्चाररूपम्। जम्बू०४१७। रिठ्ठपुरा- अरिष्ठपुरा-राजधानीनाम। जम्बू० ३४७) रिय-रीतं-रीतिः, स्वभावः। भग० २२। रीतं-आचारङ्गस्य रिडवण्ण-रिष्ठा-मदिरा तदवदवर्णो यस्य स रिष्ठावर्णः। द्वादशममध्ययनम्। उत्त०६१६) ज्ञाता० २३० रिश्यजिव- तृतीयं महाकुष्ठम्। प्रश्न० १६१। रिहवसभघाति-रिष्टवृषभघाती रिसओ- ऋषयः-मनुयः। उत्त० ४१३। कंसराजसत्करिष्टाभिधान-प्तदुष्टमहावृषभमारकः। रिसभ- वृषभस्तद्वद् यो वर्तते स ऋषभः। स्था० २९३। प्रश्न०७४। रिसभा- मणिपिठिकानाम। स्था० २३० रिहा- रिष्ठाख्यविमानप्रस्तटवासिनः। ज्ञाता० १५१| रिसह- ऋषभः-मर्कटबन्धोपरिवेष्टनपट्टः। सूर्य० ४। जम्बू० रिष्टा-जम्बूफलकलिका। जीवा० २६५। अरिष्टा, १५। ऋषभः-लोहादिमयपट्टबद्धकाष्ठसम्पुटः। भग० १२॥ राजधानीनाम। जम्बू० ३४७। स्था०८० वृषभस्तद्वद् यो वर्तते सः। स्वरविशेषः। अनुयो० रिट्ठाभ- ब्रह्मलोककल्पे विमानविशेषः। सम०१४ १२७। ऋषभस्तदुपरिवेष्टनपट्टः। राज०५७। ऋषभःरिष्टाभन-वमं लोन्तिकविमानम्। भग. २७१। रिष्टाभा- | वृषभस्तद्वत् यो वर्तते सः, सप्तस्वरे द्वितीयः। रिष्टरत्नव-र्णाभा या शास्त्रान्तरे जम्बूफलकलिकेति अनुयो० १२७ प्रसिद्धा। जम्बू. १०० रिसहनाराय- ऋषभनाराचं-यत् कीलिका रहितं संहननं रिण- ऋणम्। मरण। तत्, द्वितीयं संहननम्। जीवा० १५, ४२१ रित्त- रिक्तं-गुणविशेषः। जीवा० १९४१ रिसिभासिय- ऋषिभाषितं-उत्तराध्ययनादि। दशवै.४। रित्तओ- रिक्तः। आव० ३५७ रीइज्जति- दूविज्जति। निशी. १४६ अ। रित्तय- रिक्तं-तुच्छम्। आव० ६४३। रीइया-रीतिका-पीतला। औप. ९३। रिद्ध- ऋद्धः-भवनैः पौरजनैश्चातीव वृद्धिमुपगतः। सूर्य० । रीढा- यदृच्छिता। यदृच्छा। बृह० ५। | ऋद्धं-पुरभवनादिभिर्वृद्धम्। भग०७। रीणा- खिन्ना। भक्त रिद्धि- ऋद्धिः-परिवारादिका। भग. १३२ ऋद्धिः-ऋद्धिहे- रीतिज्जति-दूइज्जति। निशी० ३३४ आ। तुत्वेन। अहिंसाया विंशतितमं नाम। प्रश्न. ९। ऋद्धिः- रीयंत-रीयमाणंविभूतिः। आव० ५८५ निस्सरन्तमप्रशस्तेभ्योऽसंयमस्थानेभ्यः प्रशस्तेष्वपि रिद्धी- ऋद्धिः-परिवारादिका। प्रश्न० १२०| ऋद्धिः-विमान- | गुणोत्कर्षादुपर्युपरिवर्तमानम्। आचा० २४७। मनि दीपरत्नसागरजी रचित [130] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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