Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 110
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] महाकुलप्रसूत आकृतिमान् पटुप्रज्ञः। आचा० २१६।। मेघोघरसियं- मेघौघरसितं-शब्दविशेषः। आव० २९२ मृष्टा- अमृता पथ्या वा। आव० ५९४। मृष्ट इव मृष्टाः- मेज्झ-भेध्यम्। व्यव० ४१८ आ। सुकुमारशानया पाषाणप्रतिमेव शोधिता वा मेढओ- मेषः-औत्पत्तिकी दृष्टान्ते मुख्यः। आव० ४१६। प्रमार्जनिकयेव। स्था. २३२१ मेढक- मेढकः-मुण्डकः। प्रश्ना०८। मृष्टान्नार्थी- मष्टान्नं अर्थते। ओघ०४९। मेढी- सफलफलकाधारभूतकाष्ठरूपा यस्याः सा तथा। मेंढ- मङ्गादनम्। बृह० ९६ आ। ज्ञाता० १५७। खलकमध्यपर्तिनी स्थूणा यस्यां मेंढमुह- मेण्ढमुखः-अन्तरदवीपविशेषः। जीवा० १४४॥ नियमिता गोपंक्तिर्धान्यं गाहयति तदवधमालम्ब्य मेण्ढमुखनामा अन्तरद्वीपः। प्रज्ञा. ५० सकलमन्त्रिमण्डलं मन्त्रणीयार्थान धान्यमिव मेंढमुहदेव- अन्तरद्वीपविशेषः। स्था० २२६। विवेचयति सा मेढी। ज्ञाता०११। खलकमध्यवर्तिनी मेंढिय- मेंढिका। आव. २२२१ स्थूला। भग० ७३९। मेढी-खलक-स्तम्भः। गच्छा। मेंढियगाम-शालकोष्टकचैत्यस्थानम्। भग०६८५ मेत- मेदः-चिलातदेशनिवासीम्लेच्छविशेषः। प्रश्न १४| मेंढिविसाण-मेण्ढविषाणं-मेषशृङ्गम्। स्था० २१९। मेतज्ज- मेतार्यः-नवपूर्व्यनगारः। आव० ३६९। मेंढविषाणा-मेषशृङ्गसमानफूलावनस्पतिजातिः। स्था० | मेतार्यः- दुःखसम्बोध्ये दृष्टान्तः। आचा० ३५१ १८५ मेत्त- मात्रा-द्वात्रिंशत्तमांशरूपा। भग० २९२१ मे- माम्। उत्त० ३६७ बुध्यादिपरि-णामस्याभिनवत्वख्यापनपरः। ओप० मेअन्न-मीयत इति मेयं-ज्ञेयं जीवादिवस्तु तज्जानाती- १० क्रियायाः दशमभेदः। आव०६४८ मात्रशब्दःतिमेयज्ञः। उत्त० ४४३। तात्पर्यार्थविश्रान्ते-स्तुल्यवाची। व्यव० ७२ आ। मेई- मातङ्गी। आव० ३६७। मेत्तायं- मात्रकम्। आव० ४०७। मेए- श्वपचः-चाण्डालः। दशवै० ३५ मेदा- गृहीतचापा दिवा रात्रौ जीवहिंसापरम्लेच्छविशेषः। मेखला- भूषणविधिविशेषः। जीवा. २६९। मेखस्य माला। | बृह. ८२ आ। अनुयो० १५० मेद्ध-अंगादानं। निशी. ३०आ। मेघंकरा- ऊवलोकवास्तव्या दिक्कुमारी। आव० १२२॥ मेधा- शीघ्रं ग्रन्थग्रहणम्। निशी. १७४ अ। अपूर्वश्रुतमेघ- मेघः। उपा० २६ ग्रहणशक्तिः । सम० १२८ मेघकुमार- श्रेणिकधारिण्योः पत्रः महावीर भगवतः | मेय- मेदः। ज्ञाता० १७३। मेदः-देहे धातुविशेषः। प्रश्न० ८। शिष्यः। ज्ञाता० ११८ मेघकमारः। ज्ञाता० १५३। मेदः। प्रज्ञा० ८० मयः। उत्त० ४७५१ मेघकुमारः ज्ञातायां प्रथमाध्ययनेऽभिहितः। ज्ञाता० मेयज्जे- मेदार्यः-एतद्गोत्रोत्पन्नव्यक्तिविशेषः। सूत्र. १२९। अन्त०२, १० ४०९| कौंचदयालमुनिः। मरण | मेतार्य:मेघकुमारतवो- उपाशकदशायामानन्दाध्ययने तपोवर्णने दशमगणधरः। आव. २४०। मेतार्यः। आव० ३६८। दृष्टान्तः। उपा० १८१ मेरए- मेरकं-मदयविशेषः। प्रज्ञा० ३६४। मेघघणसंनिवासं-घनमेघसदृशं-सान्द्रजलदसमानं काल- मेरओ- मेरकः-मदयविशेषः। जीवा. २६५, ३५१| कमित्यर्थः। भग० १२७ मेरग- मेरकं तालफलनिष्पन्नम्। विपा० ४९। पसन्नो मेघनाद-कालगते जागरणनिमित्तमध्ययनम्। व्यव० सुरापायोगेहिं दव्वेहिं कारइ। दशवै० ८८ आ। मेरकं२५८ आ। पत्रशाकविशेषः। जम्बू. २४४। मद्यविशेषः। उपा०४९। मेरकः-मद्यविशेषः। जम्बू० मेघमालिनी-ऊर्ध्वलोकवास्तव्या दिक्कुमारी। आव० १००। मेरक-प्रसन्नाख्यां, सुराप्रायोग्यद्रव्यनिष्पन्नमन्यं वा। दशवै. १८८1 मेघवती- ऊर्ध्वलोकवास्तस्य दिक्कुमारी। आव० १२२ | मेरय- मेरकः-स्वयम्भूवासुदेवशत्रुः। आव० १५९। मैरेयंसमेघस्वरा- धरेन्द्रस्य घण्टा। जम्बू. ४०७। | सका रकः। उत्त०६५४३ चा, १२२१ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [110] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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