Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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भांडग- भाण्डकं-पतगृहम्। व्यव० २९९ आ।
भाजनोद्ग्रहण-भाजनाद्भजने यावत्पतनम्। आव० ५७६। भाइज्जाइया- भातृजाया। बृह. २९ आ।
भाटि-मैथुनार्थं यन्मूल्यम्। आव०८२७। भाइणिज्ज-भागिनेयः-भगिनीपुत्रः। दशवै० २१५) भाडीकम्म- भाटीककर्म। आव० ८२९। भाइति-भाजयति विश्राणयति, शेषदेवेभ्यो ददाति। भाण- भाजनम्। ओघ० ११७ आव० २८९, ४२७, ४३६) जीवा० २४६।
पात्रम्। ओघ० १५५। भाण्डम्। स्था० ३३९। भाइयपुणाणिय-विभाजनं-ईश्वरादिगृहेषु वीननार्थमर्पणं | भाणक-वादयविशेषः। स्था०६३। तेभ्यः प्रत्यानयनं-पुनरानयनं, विभक्ताश्च ते भाणगो- उद्घोषकः। निशी० ३४४ आ। पुरानीताश्चेति। आव. २३८५
भाणद्गं-भाजनदवितीयं-पतदगृहं मात्रकं वा। ओघ. भाइयव्व- भेतव्यम। आव. १२१ भाज्यः-विकल्पनीयः। १५५ अनुयो० २२८१
भाणाइधावणा-भाजनादिधावनं-क्षालनं पात्रादेः। ओघ. भाइल्ल-भागिकः यः षष्ठांशादिलाभेन कृष्यादौ
६९ व्याप्रियते। सूत्र० ३३११
भाणिऊण-अभिधाय। आव० ३३० भाइल्लएइ-भागिको-द्वितीयायंशग्राही। जम्बू० १२२। भाणिय- भाणिकं अनन्तजीववनस्पतिभेदः। आचा०५९। भाइल्लग-यो भागं लाभस्य लभते स। ज्ञाता०८९। भागो | भाणीअ-अभाणीत्। जम्बू. २००२ विद्यते यस्य सो भागवान्। शुद्धचार्थिकादि। स्था० | भाणुमित्त- बलमित्तकणिट्ठभाया। निशी. ३३९ आ। ११४१
ज्ञाता० १५२ भाइल्लगत्ता- कृण्यादिलाभस्य भागग्राहकत्वम्। भग० भाणुसिरी- भाणुमित्तस्स भगिणी। निशी० ३३९। ५८११
भाणू-धर्मनाथजिनस्य पिता। आव० १६१। सम० १५१| भाउज्जा- भ्रातृजाया। भग० ५५८1
भाण्डागरं- कोशः। नन्दी. १६७। श्रीगृहम्। आव. ९६| भाउज्जाइया- भ्रातृजाया-भ्रातृकलत्रम्। आव० ८२४। भातिसमाण- भ्रातृसमानः-अल्पतरप्रेमत्त्वात् भाए- भागः-विभागः। ज्ञाता० २३० भागः-अर्द्धपोषः। तत्त्वविचारादौ निष्ठरवचनादप्रीतेः तथाविधप्रयोजने
आचा० ३२६। भागः-अचिन्त्या शक्तिः । आव०६० त्वत्यन्तवत्सलत्वा-च्चेति। स्था० २४३। भायणं- विभज्य समर्पणम्। बह० २०९ अ।
भादुगं- उत्कटस्पर्शरसगन्धतयाऽन्यद्रव्यपरिणामकम्। भाएति- भाजयति-विश्राणयति। राज०१०३
बृह. १९४ । भाग- भागः अवकाशः। सूर्य. १०४। भागः। सूर्य. १६। | भामण्डल- जनकाराजपुत्रः सीतासहजातः। प्रश्न० ८६) दशा | उत्त० १४४। पूजा। सूत्र० १७४| पलिकामात्रम्। भामरं- भ्रामरं-मधुविशेषः। आव० ८५४। महङ्गो तईओ उत्त० १४२। लब्धद्रव्यविभागः। ज्ञाता०४१। निशी. भेओ। निशी. १९६ आ। १४२ आ।
भामंडणा- भंशना। बृह. १३। भागवओ-भागवतः-पौराणिकः। आव० ४१९।
भाय-भागः-लाभस्यांशः। विपा० ७७ लाभांशः। ज्ञाता० भागवतः- भागवतपाठकः। नन्दी० १५२। आचा० १४६। ८३ भागसहस्साई- बहवोऽसङ्ख्येया भागाः। प्रज्ञा० ५०८। भायण-भाजनं-योग्यम्। सूर्य. २९६। भाजनं-नन्दीपात्रम्। भागावडिओ- भागापतितः-भोग्यः। आव०६०९।
ओघ०१८४१ भागिल्लओ-भागिकः-द्वितीयांशस्य चर्थांशस्य वा भायणत्था-भाजनाथ विश्राणनार्थम्। व्यव० १७१ अ। ग्राहकः। जीवा० २८०
भायणवत्थ-भाजनवस्त्रं पटलम्। ओघ० १७५ भागी-भाजनम्। उत्त० ५९००
भायणवुट्ठी-भाजनवृष्टिः -पात्रवर्षणम्। भग. १९९। भागीरथी- गङ्गा। उत्त० ३७८१
भायल- जात्यविशेषः। ज्ञाता०५८। भाङ्कारः- भेरीशब्दः। नन्दी०६२
भारंडपक्खी- चर्मपक्षिविशेषः। ज्ञाता०४९।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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