Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 94
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] ४५ मार्ग- पृष्टः। दशवै० २३५। छेदनं-मार्गातिक्रमणम्। स्था० | निशी० १७३ अ। ३४६| माला- समूहः। ज्ञाता० १३३। अनेकसुरकुसुमग्रथिता। मार्गतः- | नन्दी०। ६० आव०१८४| मालाः-श्रेणयः। जम्बू. १०४। अरहट्टस्य मार्गण- निपुणबुद्धयान्वेषणम्। पिण्ड. २९| माला। ओघ. १९| मार्जार- बिडालः। उत्त०६२६। बिडालः। प्रज्ञा०२५४। मालाकारा- श्रेणिविशेषः। जम्बू. १९३ वायुः। स्था० ४५७ मालिअं- मालितं-धारितम्, परिहितम्। जम्बू. १८७ मार्जारपादिका- हरितभेदः। आचा० ५७ मालिण- मुकुली-अहिभेदविशेषः। प्रज्ञा० ४६। मार्जिता- शिखरिणी। आचा० ३३६) मालिणीय- मालनीयं-परिवारणीयम्। जीवा. १९९। माल- उपरितलव्यवस्थितः। ओघ० ५२। कायोत्सर्गे मालिय-मालिकम्। जीवा. २६९। पञ्चम-दोषः। आव० ७९८ मालः गृहोपरि क्रियामाणः। माली-सुविधिनाथस्य चैत्यवृक्षः। सम० १५२। भग. २७४। आचा० ३६२। उपरितलम्। ओघ.५२ वनस्पतिवि-शेषः। राज०७९। वनस्पतिविशेषः। जम्बू मालोमा-लकः-उपरितनभागः। ज्ञाता० १५७) द्वितीयभूमिका। बृह. १३। श्वापदादिरक्षार्थे मालुआ- एकास्थिकफलवृक्षविशेषः। जम्बू. ४६। मञ्चविशेषः। ज्ञाता०६३। माल मालुगा- मालुका विनयविषये अम्बर्षिब्रह्मणभार्या कोगृहस्योपरितनभागः। स्था० १२४। श्राविका। आव०७०८५ त्रीन्द्रियजीवभेदः। उत्त०६९५१ मालक- गृहोपरितनभागः। बृह. १६८ आ। मालुज्जेणि- दृष्टान्तसूचकं वचनम्। ओघ० १९। मालंकार- हरितराजः। स्था० ३०२। मालुय- वनस्पतिविशेषः। भग० ८०३। मालुकःमालणा- माल्यते-व्याप्यते इति मालणा। ओघ. ९२२ वृक्षविशेषः। प्रज्ञा० ३१| मालुकः-एकास्थिकफलवृक्षमालणीया- परिवारणीयानि। जम्बू. ४३। जीवा० १९६, विशेषः। राज०८० ३५९। मालुया- मालका-वल्ली। सूत्र०८ माल्का-एकास्थिकमालती- ज्ञातिः। जम्बू०४५। कुसुमम्। ४७३। फला। जीवा. २०१। त्रीन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा. ३२१ मालनीयं- परिवारणीयम्। ज्ञाता०४२। वल्लीविशेषः। प्रज्ञा० ३३ मालय- माल्यम्। आव० १५१। मालुयाकच्छ- मालुकानाम एकास्थिकवृक्षविशेषः। तस्य मालयघर- मालकगृहं-द्वितीयभूमिकायुपरिवतिगृहं। । यत्कक्ष तत्तथा। भग० ६८५१ मालकाकच्छः-एकास्थिजम्बू. १०६ कफलवृक्षः। ज्ञाता०७८ मालवंत- माल्यववक्षस्कारनिभोत्पलादि मालुयामडवर- मालुकामण्डपकः-वृक्षविशेषयुक्तो योगान्माल्यवद्देव-स्वामिकत्वाच्च माल्यवदहृदः। मण्डपकः। जीवा० २०११ जम्बू. ३२० माल्यं-पुष्पं नित्यमस्यास्तीति माल्यवान् | मालोहड-मालात्-मञ्चादेरपहतं-साध्वर्थमानीतं देवः। जम्बू. ३३९। सीता-नदयां प्रथमवक्षस्कारपर्वतः। यद्मक्तादि तन्मालापहृतम्। त्रयोदशम उद्गमदोषः। स्था० ३२६। माल्यवन्नाम वृत्तवैताढ्यपर्वतः। जम्बू. पिण्ड० ३५ ૨૮૦[. माल्यवत- रम्यग्वर्षे पर्वतः। स्था०६८। मालवंतदह- उत्तरकुरौ पञ्चमहृदः। स्था० ३२६। माल्यवान्- पर्वतविशेषः। प्रज्ञा० १५९। मालव-मालवा म्लेच्छविशेषाः शरीरापहारिणः। व्यव. माश्वग्गो-स्त्रीजनः। बृह. १११ अ। १४ अ। मालवकः-स्तेनः। आव०८१९। मालवः माषतष- घोसंतस्स वि जस्स गंथो न हायति स मेहो। चिलातदेशनिवासीम्लेच्छविशेषः। प्रश्न. १४। निशी० ३६ आ। अपूर्वधराणामप्रमादवती शुक्लध्याम्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा० ५५ नोत्पत्तिः। आव० ६०३। अल्पश्रुतत्वे दृष्टान्तः। उत्त. मालवग-जनपदविशेषः। भग०६८० पर्वतविशेषः। ૬િ૮૦ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [94] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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