Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 105
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] अध उपरि च संकीर्णा मध्ये त्विषदविशाला कोष्ठिका। २१७ जम्बू० २३५१ मुनि-सन्तः। आव०७६० मुदग्ग- मुयग्ग-बाह्याभ्यन्तरभूपुद्गलरचितशरीरो मुनिए- ज्ञाते तत्वे सति ज्ञात्वा वा तत्त्वम्, मुनिकःजीवाः। स्था० ३८३ तपस्वीति। ग्रहगृहीतः। भग०६६८ मुदाहिए- उदाहृते। ज्ञाता० १३३। मुनिचन्द्रसूरि-अनुयोगद्वारटीकायां आचार्यविशेषः। मुदुग- ग्राहविशेषः। जीवा० ३६) अनुयो० २७१। मुद्गर- शस्त्रविशेषः। प्रज्ञा० ९७। मुनिपर्षद्- यथोक्तानुष्ठानानुष्ठायिसाधुपर्षद। राज०४६। मुद्गरक- मगदन्तिकापुष्पम्। बृह. १६२ आ। मुनिसुव्रतः- विशालायां यस्य पादुकेः। नन्दी० १६७। मुद्गफली- असारौषधिविशेषः। आव० ३६। मुनिसुव्रतस्वामी- भृगुकच्छे कोरड्कोद्याने समवसरकः। मुद्दग- गुच्छाविशेषः। प्रज्ञा० ३२॥ व्यव. १७३ आ। मुद्दा- मुद्रा। आव० ४२१। मुद्रा-अङ्गलीयकं नाम मुद्रा। | मुभूर्षुः- मरणेच्छुः । नन्दी० १४७।। उपा०५१ पट्टकः। बृह० ८४ अ। मुम्मु- गद्गद्भाषित्वेनाव्यक्तभाषी, मुकादपि मूको मुद्दाभिसित्तो- सेणावइ अमच्च मूकामूकः। सम० २१६॥ पुरोहियसेडिसत्यवाहसहिओ रज्जं भुंजति। निशी. मुम्मुर- विरलाग्निकणं भस्म मुर्मुरः। दशवै० १५४॥ २७० । मुम्मुरः-अग्निकणमिश्र भस्मः। ज्ञाता० २०४। मुर्मुरःमुद्दाल- मोद्दालः-द्रुमगणविशेषः। जम्बू. ९८॥ भस्ममिश्राग्नि-कणरूपः। उत्त०६९४। मर्मरःमुद्दिआबंध- मुद्रिकाबन्धः-ग्रन्थिबन्धः। ओघ० १४५ फम्फूकाग्नौ भस्मामिश्रि तोग्निकणरूपः। जीवा. २९। मुद्दिआसार-मृद्वीका-द्राक्षा-तत्सारनिष्पन्न आसवो प्रविरलाग्निकणानुविद्धं भस्म मुर्मुरः। आचा०४९। मृद्वीका-सारः। जम्बू. १०० मुर्मुरः-फुम्कुमकादौ भस्ममिश्रिता-ग्निकरणरूपः। मुद्दिय- मुद्रितं-मृन्मयमुद्रादानेन। ज्ञाता० ११६। अवलिप्य प्रज्ञा० २९। मुर्मुरः- फुम्कुकादौ मसृणोऽग्निः। जीवा० कृतमुदं। बृह० ११६८ आ। मुद्रितं-आच्छादितम्। आव० १०७। मुर्मुरः-भस्माग्निः। प्रश्न०१४। मुर्मुरः४३२॥ वल्लीविशेषः। प्रज्ञा० ३२ आपिङ्गला अर्धविध्याताऽग्निकणा मुर्मुरः। पिण्ड. मुद्दिया- मृद्वीका-द्राक्षा। स्था० २४१। १५२। अगनि कणियासहितासोम्होत्थारो। निशी० ५२ मृत्तिकादिमुद्रावता। स्था० १२४। मृद्वीका-द्राक्षा। आ। मुर्मुरः-फुस्कुकादौ मसृणाग्निरूपः। भग० ६९४। उत्त० ६५४। मुद्रिकाः-साक्षराङ्गुलीयकाः। जम्बू. १९०| ज्ञाता० २०१। मुर्मुरः-भस्ममिश्राग्निकणरूपः। स्था० मृद्वीका-द्राक्षा। प्रज्ञा० ३६५। जीवा० ३५१, २६५ ६९४। ज्ञाता० २०१। मुर्मुरः-भस्ममिश्रीग्निकणरूपः। मुद्दियापाणग- पानकविशेषः। आचा० ३४७। स्था० ३३६। मुद्दियासारए- मृद्वीकासारः-मृद्वीका-द्राक्षा मुम्मुरमाई- मुर्मुरादिकाः-उल्मुकादिः। आव० १३३। तत्सारनिष्पन्नः। प्रज्ञा० २६५ मुम्मुही- दशदशायां नवमी दशा। निशी. २८ आ। मुद्धत- मूर्द्धान्तः-उपरितनोभागः। सूत्र. २८८ मुयंग- मृदङ्गः-लोकप्रतीतो मईलः। जीवा० १८९। पः। बृह. १५ अ। परं-प्रधानं। निशी. २०० अ। मृदङ्गः-लघुमट्टलः। जीवा० २६६। मृदङ्गः। प्रज्ञा० ५४२॥ मुद्धज- मूर्द्धजः-केशः। जीवा० २३४१ मृदङ्गः-लघुमर्दलः। जम्बू. १९२। जीवा० २४५। मुद्धया- ग्राहविशेषः। प्रज्ञा० ४४। मृदङ्गः। जम्बू. १३७। मृदङ्गः-मईलः। सूर्य. २६७। मुद्धसूल- मूर्द्धशुलं-मस्तकशूलम्। ज्ञाता० १८१। मुयंगसंठिय- मृदङ्गसंस्थितः आवलिकाबाह्यस्य मुद्धा- मूर्धा। आव० १२५ द्वादशमं संस्थापनम्। जीवा० १०४। मुद्धाभिसित्त- मूर्धाभिषिक्तः। सूर्य. १४७। मुयंत- मुञ्चत्-त्यजत् सामर्थ्यात्। उत्त० ३३४। मुद्राविन्यास- एककं पुरतो बिन्दुवयसहितः। प्रज्ञा० | मुयच्चा- मृतार्चा-मृतेव मृता संस्काराभावादा-शरीरं मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [105] "आगम-सागर-कोषः" [४]

Loading...

Page Navigation
1 ... 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246