Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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सूत्र० २९८१ मुणति-प्रतिजानीते सर्वविरतिमिति मुनिः। | मुक्तावलिवरे द्वीपेऽपरार्द्धाधिपतिर्देवः। जीवा० ३६९। उत्त० ३५७। मुणिति-प्रतिजानीते सर्वं
मुत्तावलिवरावभास- मुक्तावलिवरावभासःद्वीपः सावद्यविरतिमिति मुनिः। उत्त० ५५० सावज्जेसु समुद्रश्च। जीवा० २६८१ माणं सेवतिति। दशवै. ३३ आ। ओघ०६२
मुत्तावलिवरावभासभद्द-मुक्तावलिवरावभासभद्रः मुणेयव्य- मुणितव्यः-प्रतिज्ञातव्यः। उत्त० ५२७। मुणि- मुक्तावलिवरे द्वीपे पूर्वार्द्धापतिर्देवः। जीवा. ३६९। तव्यः- प्रतिज्ञातव्यः। उत्त०४२७।
मुत्तावलिवरावभासमहाभद्द-मुक्तावलिरमहाभद्रःमुण्डमालहर्म्य- द्रुमगणविशेषः। जीवा० २६९।
मुक्ताव-लिवरावभासे द्वीपेऽपरार्द्धाधिपतिर्देवः। जीवा. मुतव- वनस्पतिविशेषः। भग०८०२॥
३६९। मुत्कल- अपवर्तनादिकरणयोग्यः। उत्त० ५८५। सूर्य मुत्तावलिवरावभासमहाव- मुक्तावलि०महावरः-मुक्ता
वलिवरावभासे समुद्रेऽपरार्द्धाधिपतिर्देवः। जीवा० ३६९। मुत्त-मुक्तो-बाहमाभ्यन्तरग्रन्थिबन्धनेन मुक्तः | मुत्तावलिवरावभासवर- मुक्तावलि०वरः-मुक्तावलिवमहावीरः। भग०९। भग० ११११ मक्तो-मुक्त इव रावभासे समुद्रे पूर्वार्द्धाधिपतिर्देवः। जीवा० ३६९। मुक्तः। सुत्र ० २९८। मूत्रम्। ज्ञाता० ४९। मुक्तः- मुत्तावली- मुक्तावली मुक्ताफलमयी। जीवा० २५३॥ कृतकृत्यः निष्ठितार्थः। जीवा० २५६। मुक्तं-यत्पूर्वभवेषु । मुक्तावली-द्वीपः समुद्रश्च। जीवा० ३६८१ मुक्तावलीपरित्यक्तं तत्। प्रज्ञा० २७०।
तपोविशेषः। अन्त० ३१। मुक्तावली-चतुःसमुद्रसारभूतो मुत्तमउड- मुक्तोच्छ्रितबाहुद्वयरूपः। बृह. १६७ आ। मुक्ताहारविशेषः। चक्षुरिन्द्रियान्तर्दृष्टान्ते मुत्तसक्करा- पाषाणकः। निशी० ११७ अ।
धनसार्थवाहदुहिता। आव० ३९९। मुत्ताजाल- मुक्ताजालं-मुक्ताफलमय दामसमूहम्। मुत्तावलीवर- मुक्तावलीपारः-द्वीपःसमुद्रः। जीवा० ३६८। जीवा० १८१। मुक्ताजालः। जीवा० २६०।
मुत्ताहलमुत्ताजालतरोपियं- | आव०४२३ मुक्ताधारपुडक- मुक्ताधारपुटकं-शुक्तिसंपुटम्। प्रश्न. मुत्ति-मुक्तिः । प्रज्ञा० १०७। मणिकारः। नन्दी. १६५
मोचनं मुक्तिः -अहितार्थकर्मविच्युतिः। आव० ७६० मुत्तालत- मुक्तानामाश्रयत्वान्मुक्तालयः। स्था० ४४०। । मुत्तिमग्गे- मुक्तिमार्गः-अहितकर्मविच्युतेरूपायः। मुत्तालय- मुक्तालयः- इषत्प्राग्भारायाः सप्तम नाम। ज्ञाता०५१। मुक्तिमार्ग
प्रज्ञा० १०७। ईषत्प्राग्भाराया अष्टमनाम। सम० २२१ केवलज्ञानादिहितार्थप्राप्तिद्वारेणाहितकर्मविच्यमुत्तावलि- मुक्तावली-केवलमुक्ताफलमयी। भग० ४७७ | तिद्वारेण च मोक्षसाधकम्। आव० ७६०| मुत्तावलिमद्द- मुक्तावलिभद्रः-मुक्तावलिद्वीपे अहितविच्युतेरू-पायः। भग० ४७१। पूर्वार्द्धाधिपतिर्देवः। जीवा० ३६९।
मुत्तिय- मौक्तिकं-मुक्ताफलम्। प्रश्न. १६३। मुत्तावलिमहामह-मुक्तावलिमहाभद्रः
मुत्तिया- द्वीन्द्रियविशेषः। प्रज्ञा०४१। मुक्तावलिद्वीपेऽपरा -धिपतिर्देवः। जीवा० ३६९। मुत्ती- मुक्तिः निर्लोभता। जम्बू. १५१। मुच्यन्ते सकलमुत्तावलिमहावर- मुक्तावलिमहावरः-मुक्तावलिवरे कर्मभिस्तस्यामिति मुक्तिः। स्था० ४४०। ईषत्प्राग्भासमुद्रेऽ-पूर्वार्द्धाधिपतिर्देवः। जीवा० ३६९।
रायाः सप्तमं नाम। सम० २२। मुक्तिः -निर्लोभिता, मुत्तावलिवर- मुक्तावलिवरः-मुक्तावलिवरे समुद्रे सिद्धिर्वा। प्रश्न० १३६। मुक्तिः-ईषत्प्राग्भारायाः सप्तमं पूर्वार्धाधिप-तिर्देवः। जीवा० ३६९। मुक्तावलिवरः- नाम। प्रज्ञा० १०७। मुक्तिः -निर्लोभिता। प्रश्न. ९२। मुक्तावलि समुद्रे पूर्वार्द्धाधिपतिर्देवः। जीवा० ३६९।। मूर्तिः-शरीरम्। उत्त० ५१६। मूर्तिः-शरीरम्। निशी. मुत्तावलिवरभद्द- मुक्तावलिवरभद्रः-मुक्तावलिवरे द्वीपे ३०८ आ। पूर्वार्धाधिपतिर्देवः। जीवा० ३६९।
मुत्तोली- मुक्तोली-मोट्टा(द्दा)अध उपरि च संकीर्णा मध्ये मुत्तावलिवरमहाभद्द- मुक्तावलिवरमहाभद्रः- | त्विषद्विशाला कोष्ठिका। अनुयो० १५१। मुक्तोली नाम
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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