Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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माहू-यस्मादर्थे। निशी० ६२आ।
मनोज्ञः। जीवा० २२९॥ माहेन्द्र-रोहिणीज्येष्ठादिनक्षत्रसम्भवम्। अनुयो० २१६ | मिउग्गह-तृतीयमहाव्रते प्रथमा भावना। आचा० ४२६। माहेसर-माहेश्वरः-मायाश्राद्धः। आव० २९६| माहेश्वरः। मिउणियाणि- मृद्कानि। गणि। आव० ३९९।
मिउत्तं- मृदुत्वं-कायनम्रता। आव. २६४। माहेस्सरी-लिपिविशेषः। प्रज्ञा० ५६। माहेश्वरी- मिउमदव- मृदु च तन्मार्दवं च मृदुमार्दवंनगरीविशेषः। आव. २९५ महत्या ईश्वर्या कारितेति अचिन्त्यमार्दवम्। ज्ञाता०७७ माहेश्वरी-दक्षिणापथे पुरी। आव० १७४।
मिउमद्दवसंपन्न- मृदुः यन्मार्दवंमाहोज्ज- माधुर्य-मार्दवम्। बृह. २५६ ।।
अत्यर्थमहकृतिजयस्तत्सं-पन्नः-प्राप्तः। भग० ८११ माहोज्जहोज्जा- माधुर्यहार्या-मार्दवग्राह्या। बृह. २५६। मृदुः-द्रव्यतो भावतश्चावनमन-शीलस्तस्य भावः कर्म मिंज- मजा-अस्थिमध्यावयवविशेषः। प्रश्न ८ बीजम। वा-मार्दवं यत्सदा मार्दवोपेतस्यैव भवति तेन सम्पन्नः
स्था० ५२१। मिजा-कीकसमध्यवर्ती धातुः। भग. तदस्यासात्सदा मृदुस्वभावो मदमा-र्दवसंपन्नः। उत्त. १३५ कीकसमध्यवर्ती धातुविशेषः। औप. १००
५९१। मध्यावयवः। भग०८८1 मयूरपिच्छमध्यवर्तिती। मिउमद्दवसंवण- ममार्दवसम्पन्नः-मृदुः-मनोजें जम्बू. ३५। मिजं-बीजम्। मिजं-बीजफलम्। प्रज्ञा. परिणाम सुखावहं यन्मार्दवं तेन सम्पन्नः, न ३७
कपटमार्दवोपेतः। जीवा० २७८१ मिठ- गजपरिवर्तुकः। बृह. ३११ अ।
मिए- मृगः-अज्ञः। दशवै० २४७ मिढियागाम- मिण्ठिकाग्रामम्। आव० २२६।
मिग- मृगः-अरण्यप्राणी। उत्त० २४९। मृगः-आटव्यपशुमि- मेराति। आव० ७८२। मृदुमार्दवत्त्वम्। आव० ७८२। विशेषः। प्रश्न. १३५। मृगः-श्वापदः। सूत्र० १५०। मृगःमाम्। उत्त० ३६५
अज्ञः बालशैक्ष्यकादि। व्यव० २५० अ। मिअंक- गुच्छाविशेषः। प्रज्ञा० ३२
मिगकोट्ठक- मृगकोष्ठकं-नगरं, यत्र जितशत्रुराजा। आव. मिअ- अतिवचनविस्तररहितं। सङ्क्षिप्ताक्षरं मितम्। २९१। अनुयो० १३३
मिगचरिय- मुगाणां चर्या इतश्चेतश्चात्प्लवनात्मकं मिअगंध- मृगगन्धः-जातिवाचकःशब्दः। जम्बू. १२८॥ चरणं मृग-चर्या। उत्त०४६२ जम्बू० ३१३
मिगचरिया- मितचारिता-परिमितभक्षणात्मिका। उत्त. मियलोमिय- ये मृगेभ्यो ह्रस्वका मृगाकृतयो बृहत्पुच्छा
૪૬રા. आटविकजीवविशेषास्तल्लोमनिष्पन्नं मृगलोमिकम्। । मिगदेवी- मृगादेवी-बलश्रीमाता, राज्ञी। उत्त० ४५० अनुयो० ३५
मिगपरिसा-अधित्तसत्ता अगीतत्था। निशी. १९ अ। मिआ- मिता-गृहस्थैरनुज्ञाता भूमिः। दशवै० १६८१ अधीतिनः परमगीतार्थाः। बृह. १०२आ। मृगपर्षद। मिआवई-मृगावती-भावप्रतिक्रमणोदाहरणे आर्या-उदयन- | निशी. ३८ आ। माता। आव० ४८५। भृगावती-आर्योदयनमाता, यस्वा | मिगवण- सावस्त्यामुद्यानम्। राज० ११४॥
आर्या चद्दनासकाशे केवलमृत्पन्नम्। आवा० ४८५ | मिगवालंकी- मृगवालुंगी लोके प्रसिद्ध। प्रज्ञा० ३६४। मिइंग- मृदङ्गो-मार्दलः। स्था० ३९५। मृदङ्गो-मईलः। | मिगवितीए- मृगैः-हरिणैर्वृत्तिः-जीविका यस्य स भग० ४७६|
मृगवृत्तिकः। भग० ९३ मिई- मृगी-मृगीरूपेणोपघातकारिणी विदया। आव० ३१८१ | मिगव्वं- मृगव्यं-मृगया। उत्त०४३८, ४३९। आहेडगो। मिउ- मृदुः-कोमलम्। नन्दी० ५। मृहः-अकोपनः, कोम- | निशी० १३६ आ। मृगया व्यसनं-अनेकेषां लालापी वा। उत्त०४९। मृट्टः-कोमलः। जीवा. २०७। मृगादिजन्तूनां वधं करोति तत्। ब्रह. १५७ अ। मृदुः-मनोजम्-परिणामसुखावहम्। जीवा० २७८। मृदुः- | मिगसिंग- मृगशृङ्ग-समासतो द्रव्यशस्त्रम्। आचा० ३३॥
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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