Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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माग्गमग्गि- पृष्ठतःपृष्ठतः। आव० ३८८1
मृषाभाषाया द्वितीयो भेदः। स्था०४८९। मानम्। पिण्ड. माघभद्रा- वापी नाम। जम्बू. ३७०|
१२११ विभागनिष्पन्ने प्रथमो भेदः। अनुयो० १५१ माघवति- कृष्णरात्रेः तृतीयं नाम। स्था० ४३२१
मानः-गर्वपरिणामः। जीवा० १५) ज्ञाता०२७ स्था० माघवती- माघवती-कृष्णरात्रिः। भग. २७१।
३३६। मानः-जात्यादिगुणवानहमेवेत्येवं मननंमाजिष्ट- रागविशेषः। जम्बू. १८८1
अवगमनं, मन्यते वाऽनेनेति मानः। स्था० १९३। मानःमाडंब- मडम्बं जलदुर्गम्। उत्त० ३४३।
अहमितिप्रत्ययहेतुः। उत्त० २६१। मानः-जातिकुसर्वतश्छिन्नजनाश्र-यविशेषरूपं मडम्बम्। अन्यो. २३॥ लरूपबलादिसमुत्थो गर्वः। आचा० १७०। मान-प्रस्थमाडंबिअ- माडम्बिकः-पूर्वोक्तमडम्बाधिपः। जम्बू. १२२१ कादिः। आचा० ४१३। मान-सेतिकादि तविषयम्। स्था० माडम्बिकः-चित्रमण्डपाधिपः। राज० १२११ मडम्ब-जल- ४४९। मान-जलद्रोणप्रमाणता। ज्ञाता०११। एतत्। बृह. दुर्ग तस्मिन् भवो माडम्बिकः तद्भोक्ता। उत्त० ३४३। १३३ अ। वंदण-अब्भुट्ठाणपव्वइओ जो रागदेसे कीर-इओ माइंबिआ- माडम्बिकः-मडम्बाधिपतिः जीवा० २८० वा। दशवै०८८आ। मानः। राज०१३३ माडंबिइया- माडम्बिकः-छिन्नमडम्बाधिपतिः। ब्रह. माणक-माप्यविशेषः। जम्ब० २४४। १२१ ॥
माणकर-माणकरः-गच्छार्थकरोऽहमिति माद्यति। स्था० माडंबित- माडम्बिकः-छिन्नमडम्बाधिपः। स्था० ४६३। २४१। प्रज्ञा०३२७
माणजुत्तो- जलपरियाए दोणीए जलस्स दोणं छड्डेतो माइंबिय- माडम्बिकः-प्रत्यन्तराजा। प्रश्न. ९६। माड- माण-जुतो। निशी० ८५आ। द्रोणं पाणियस्य म्बिकः-छिन्नमडम्बाधिपः। भग० ३१८,४६३।
पडिच्छति। निशी. ६अ। माडम्बिकः संनिवेशविशेषनायकः। भग० ११५, ४६३। माणण- माननं-अभ्युत्थानासनदानाञ्जलिप्रग्रहादिरूपम्। चित्रमण्डपा-धिपः। राज० १२१]
आचा. २६। माडबी- माडम्बिकः-प्रत्यन्ताधिपः-छिन्नमडम्बनायकः। | माणनिसूरण- दृप्तारात्यहङ्कारविनाशकः। उत्त०४४८१ बृह० २५५ आ।
माणनिस्सिआ-माननिःसृता-मृषाभाषाभेदः। माडबिओ- जो छिण्णमंडवं भुञ्जति सो माडबिओ। निशी० मानाध्माताः। दशवै० २०९। माननिःसृता २७० ।
यत्पूर्वमनुभूतमप्यैश्वर्यमात्मोत्कमाढभाग-रजतमय उत्सेधः। जम्बू०४९।
र्षख्यापनायानुभूतभस्माभिस्तदानीमैश्वर्यमित्यादि माढर- रथानितापती। स्था० ३०३।
वदतो भाषा। प्रज्ञा० २५६। माढरि-साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० ३४१ | माणपिंडो- माणहितो जं एसतित्ति सो माणपिंडो, माढी- सन्नाहविशेषः। जम्बू० २०६। तन्त्राणविशेषः। अभिमाणतो पिंडग्गहणं करेतिति माणपिंडो। निशी. प्रश्न.४७
१०० आ। माण-मानं-कुडवादि। आव०८२३। मानक्रिया-मानाय माणब्भंस- मानभ्रंशम्। ज्ञाता० १९२। यत्करणम्, क्रियायाः नवमो भेदः। आव०६४८ मानं- माणभद्द-मिथीलायां चैत्यः। भग० ४२५ जलद्रोणप्रमाणता। औप०१३। मान
माणमाणे- मानयन् तदनुभावमनुभवन्। ४६२१ मानावमानगणिमप्र-तिमानलक्षणम्। आव० १२८ माणयति- मानयति श्रुतोपदेशं प्रति चोदनादिभिः मानं-जलद्रोणप्रमाणता। प्रश्न०७४। मान-प्रमाणम्। शिष्यान् दशवै० २६४। सूर्य०१७१। मानः वन्दना-भ्युत्थानलाभनिमित्तः। माणवए- माणवर्गः-षट्चत्त्वारिंशत्तमो महाग्रहः। स्था. दशवै. १८७ मानं-जलद्रोणप्रमा-णताः। जम्बू. २४३। ७९| माणवकः। दशवै०६३। माणवकः। सूर्य. २६७। मानं-जलद्रोणप्रमाणता। स्था० ४६१। मान-स्वलक्षण अष्टाशीतौ षट्चत्त्वारिंशत्तमो महाग्रहः। जम्बू. ५३४। अनन्तानबन्ध्यादिविशेषः। आचा० १६४। भग०१४३ | माणवक- चैत्यस्तम्भः। सम०६४। सौधर्मसभायां
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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