Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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स्तम्भः। ज्ञाता०१५
माणिभद्दत- महापद्मसेनापतिः। स्था०४५९। माणवग- माणवकः-चैत्यस्तम्भः। जम्बू. ३२७। चक्रवर्ते- माणिभद्र- द्रव्यपूतिनिरूपणे समिल्लपरे यक्षः। पिण्ड. ऽष्टमो निधिः। स्था० ५५८१
८३। अनिसृष्टद्वारविवरणे गृहस्थविशेषः। पिण्ड. माणवगण-श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अष्टम गणः। ११३ यक्षभेद-विशेषः। प्रज्ञा०७०| स्था०४५११
माणिम- माणजोगो-माणणोओ। दशवै० १५७ आ। माणवगनिही- माणवकनिधिः। आव० ११४१
मान्यः। दशवै. २७५ माणवगा- माणवकनामानः चैत्यस्तम्भः। जम्बू. १६३। माणो- माणिका-षट्पञ्चाशदधिकशतद्वयपलप्रमाणा। माणस- गान्धर्वानिकाधिपतिः। भग०६७४। स्था० ४०६। अनुयो० १५२। मानी-जात्यादिमदो पेतः। सूर्य. २९६। माणसन्ना- मानोदयादहङ्कारात्मिका
माणुम्माणियं- एगस्स वलमाणं अन्नेण अणनीयत इति उत्सेकादिपरिणतिर्मानज्ञा। प्रज्ञा० २२२१
माणुम्माणियं। निशी० ७१ । मनोदयादहकारात्मिकोत्सेकक्रिया, मानसः
माणम्माणियहाणाणि- मानोन्मानस्थानानिसंज्ञाऽनयेति मानसंज्ञा। भग० ३१४१
मानप्रस्थकादिः उन्मान-नाराचादि, यदि वा मानोदयादहङ्कारात्मि-कोत्सेकक्रियैव
मानोन्मानमित्यश्वादीनां वेगादिपरौक्षा तत्स्थानि सज्ञायतेऽनयेति मानसज्ञा। भग. ३१४|
तवर्णनस्थानानि वा। आचा० ४१३ माणसिय- मानसिकः। आव-७७८। मनसा निर्वृत्तो माणुस- मनसि शेते मानुषः, मनोरपत्यमिति वा। उत्त. मानसः स एव मनःक्तो मानसिकः। आव० ५७१। १८१। मानुषः। आव. २७३। मानसिक-चिन्तितम्। स्था० ४६६।
माणुसखेत्त- मानुषक्षेत्र-समयक्षेत्रमम्। प्रज्ञा० ४२९। माणसीसहस्स-मानसीसहस्रम्। जीवा. २३३।
माणुसरंधणाणि- मानुषरन्धनानि चुल्ल्यादीनि। आचा० माणा- माना-मानानुगता। आव० ५४८
४११। माणि-माणिभद्रभिधानदेववासत्त्वान्माणिभद्रकूटम्। माणुसुत्तर- मानुषोत्तरः-पुष्करवरस्य द्वीपस्य स्था०४५४१
बहमध्यदेशभागे पर्वतः। जीवा० ३३३, ३४३। माणिओ-मानिकः। ओघ. ९८१
रः। आव. १९२१ मण्डलाकारपर्वतः। स्था० माणिज्जामि- मानयिष्ये। उत्त०८४९।
१६६। मानुषेभ्यो-मानुष-क्षेत्राद्वोत्तरः परतो वर्ती माणिभद्द- माणिभद्रः-वर्द्धमानपरस्य विजयवर्द्धनोद्याने मानुषोत्तरः। स्था० १६६। ईशान-कल्पे यक्षः। विपा० ८८1 माणिभद्रः वैश्रमणस्य पुत्रस्थानीयो देवविमानविशेषः। सम०२ देवः। भग० २००। माणिभद्रः-उत्तरनिकाये व्यन्तरेन्द्रः। | माणुस्स- मानुष्यकं-मनुष्यसम्बन्धिं औदारिकशरीरम्। भग. १५८ भग०६८० निरयावल्यां तृतीयवर्गे
उत्त० १८४। मानुष्यम्। आव० ३४१| षष्ठमध्ययनम्। निर० २१। सुधर्मसभायां माणेमाणी- मानयन्ती स्पर्शद्वारेण। ज्ञाता० ३३। माणिभद्रसिंहासने देवः। निर० ३६। मणिपतिनगाँ मातङ्गविद्या- यदुपदेशादतीतादि कथयन्ती डोण्ड्यः। गाथापतिः। निर०३६। माणिभद्रः-यक्षे-न्द्रः। जीवा० स्था० ४५११ १७४| निशी. २२ अ। माणिभद्रं-औत्तरपौरत्ये मातमिस्सिया- मातृमिश्रा। आव० ८२३। दिग्विभागे चैत्यः। सूर्य.रामाणिभद्रः-यक्ष-विशेषः। मातापितृसमान- अम्मापिइसमाणो-उपचारं विना साधुषु आव. २२५ मिथिलानगर्यां चैत्यविशेषः। जम्बू. ९, एकान्तेनैव वत्सलः। स्था० २४३।
मातिघर- मातृगृहम्। आव०८६३। माणिभद्दकूड- मणिभद्रनाम्नो देवस्य निवासभूतं कूटं मातुलिंग- बीजपूरम्। आव० ३५६) मणिभ-द्रकूटम्। जम्बू० ७७। मणिभद्रकूट
मातुलुंग- बीजपूरकम्। अनुत्त०६। वैताढ्यकूटनाम। जम्बू० ३४१।
| मातृवाहकाः- ये काष्ठशकलानि समोभयाग्रतया
५४०
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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