Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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मंगुली- गोशालकः। उपा० ३७
जम्बू० ४०८१ मंगुसा- भुजपरिसर्पविशेषः। प्रज्ञा०४६। भुजपरिसर्पः मंजूसा- द्वादशयोजनदीर्घा मञ्जूषा। स्था० ४५० तिर्यग्योनिकः। जीवा०४०
मञ्जूषा। आव० ४०१, ५५९। मञ्जूषा-राजधानीनामा। मंगू- आर्यमङ्गः-ऋद्धिरससातगौरवदृष्टान्ते
जम्बू० ३४७ मथुरायामाचार्यः। आव० १७९।
मंडंब- अर्धगव्यूततृतीयान्तामान्तररहितं मण्डपम्। मंच-स्तम्भन्यस्तफलकमयः। ज्ञाता०६३। अक्कुड्डो। राज०११४१ निशी० ८४ ।
मंड-घृतसङ्घातस्य यदुपरिभागस्थितं घृतं स मण्डः। स्थूणानामुपरिस्थापितवंशकटकादिमयः। ब्रह. १६८ | जीवा० ३४५ आ। मञ्चः। आचा० २६२। मञ्चः-स्थूणा
मंडकप्पुते- मण्डूकप्लुतः-माण्डूकप्लुत्या यो जातो योगः, नामपरिवंशकटकादिमयो जनप्रतीतः। स्था० १२४।। दशमो योगः। सूर्य. २३३। मञ्चः। दशवै० १७६। मञ्चः। मञ्चः-अभितिको मञ्चः। | मंडग- मण्डकम्। आव० ८१४। मण्डकम्। आव० ८५५। भग० २७४। मञ्चः-मञ्चसदृशो योगः। सूर्य. २३३। मण्डका-कणिक्कमयः। बृह. २६७ आ। मण्डकःमंचगपाय- मञ्चकपादः। आव० ५७८५
कणिक्कमयस्तण्डुलः। पिण्ड० १६८1 मंचा- मालकाः-प्रेक्षणकद्रष्टजनोपवेशननिमित्तम्। मंडणधाती-धातीविसेसा। निशी० ९३ आ। मण्डनधात्रीजम्बू. १८८१
मण्डिका, धात्रीविशेषः। ज्ञाता० ३७ मंचाइमंचे- मञ्चातिमञ्चः
मंडबमारी- मण्डपमारी-मारीविशेषः। भग. १९७५ वित्रादिभूमिकाभावतोऽतिशायी मञ्चस्तत्सदृशो मंडबरूव-मण्डपरूम्। भग० १९३। योगः। सूर्य०२३३
मंडलं घाएसि- वृक्षायुपघातेन तत्करोति। ज्ञाता०६५ मंचाइमंचकलियो- मञ्चातिमञ्चकलिता। जीवा० २४६। मंडलंतरय- मण्डलान्तरकं-मण्डलान्तरम्। सूर्य ४४॥ मंचुल्लिआ-मञ्चिका। आव. ९३।
मंडलंतरिया-आन्तरी आन्तर्येव आन्तरिका मण्डलस्य मंजरि- मजरी। भग० ३७५
मण्डलस्यान्तरिका मण्डलान्तरिका। सूर्य. १४१। मंजरियामच्छ- मत्स्यविशेषः। जीवा० ३६।
मंडल- मण्डलं-चक्रवालम्। प्रश्न. ५०| मण्डलं-प्रतिबिम्बमंजिट्ठा- मस्जिष्ठा-रागद्रव्यविशेषः। जीवा. २६९। सम्भूतिः। जीवा० २१३। मण्डलंमञ्जिष्ठा-रागद्रव्यविशेषः। प्रज्ञा० ३५९।
प्रतिदिनभ्रमिक्षेत्रलक्षणम्। जम्बू०४३४१ मण्डलंमंजिवावण्णाभ- मञ्जिष्ठावर्णाभं-लोहितं, राहविमानम्। वृत्तम्। ज्ञाता० १७०| मण्डलम्। सूर्य. ११। मण्डलम्। सूर्य. २८७
आव० १५० मण्डलम्। आव०४०११ मण्डलं-द्वावपि मंजु- मजः-प्रियः। जीवा० २०७।
पादौ दक्षिणवामतः अपसार्य उरु अपि आकुञ्चति यथा मंजुघोसा- मञ्जुघोषा-उत्तरत्याग्निकुमाराणां घण्टा। मण्डलं भवति, अन्तरं चत्त्वारः पादाः लोकप्रवाहे चतर्थं जम्बू० ४०८। मञ्जुघोषा-दिक्कुमाराणां घण्टा। जम्बू स्थानम्। आव० ४६५। विषयमण्डलम्। आव० ६३६। ४०७
मण्डलं-आद्यसंस्थानलक्षणयुक्तत्वेन विशिमंजुमंजु-अतिकोमलः। भग० ४८३। मञ्जुम ः- ष्टाकारम्। अनुयो० १०२। मण्डलं-द्वावति पादौ अतिकोमलः। जम्बू. १४४१
दक्षिणवाम-तोऽवसार्य ऊरु आकञ्चति, यथा मण्डलं मंजुल- मजलं-कोमलम्। भग० ४६९। मलं-मधुरम्। भवति, अन्तरं चत्त्वारि पादानि तत्स्थानम्। उत्त. प्रश्न. १५९। मञ्जुलं-मधुरम्। निर० ३०। मञ्जुलः- २०५। मण्डलानि-वृत्तहिरण्यरेखरूपाणि। जम्बू० २२८। मधुरः। प्रश्न०७४।
मण्डलः-चत्-रन्तः-संसारः। उत्त०६१२। मण्डलंमंजुस्सरा- मजुस्वरा-अग्निकुमाराणां घण्टा। जम्बू० । मन्त्रसाधने वृत्तरेखा। दशवै. ३७ जाणरु जंघे य मंडले ४०७। मञ्जुस्वरा-दाक्षिणात्यानामग्निकुमाराणां घण्टा। | काउं न जुञ्झइ तं। निशी. ९० आ। यथा मध्ये मध्ये
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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