Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 75
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] विचकिलकुसुमम्। जम्बू. ५२८१ ओघ० १३९| ज्ञानम्। प्रश्न९७ मल्लिया- गुल्मविशेषः। प्रज्ञा० ३२ मल्लिका-जातिः। मसिण- मसुणम्। ओघ० ३०उत्त० ३०४। निशी० १३८ उत्त. १४२। मल्लिका-विचकिलः। ज्ञाता० १२५ आ। मल्लियापुड- पुष्पजातिविशेषः। ज्ञाता० २३२। मसी- मषी-मष्युपलक्षितो लेखनजीवी। जीवा० २७९। मल्लिस्सामी- षण्णां मसीई- मषी-दीपशिखापतितं एव कज्जलं राजपुत्राणामुवाहार्थमागतानामवधिज्ञानेन ताम्रभाजनादिषु सामग्रीविशेषेण घोलितम्। जम्बू. ३२ तत्प्रतिबोधनार्थं यथा जन्मान्तरे सहितैरेव प्रव्रज्या | मसीगुलियाई- मषीगुलिका-घोलितकज्जलगुटिका। कृता। आचा० २११ जम्बू. ३ मल्लिहाण- माल्याधानं-पुष्पबन्धनस्थानं शिरः, मसु-स्मश्रु। निशी. २१० अ। केशकलापः। भग० ४८०१ मसूर-धान्यविशेषः। प्रज्ञा०४११। भिलगा, चनकिका। मल्ली- ज्ञातायामष्टममध्ययनम्। सम० ३६। भग. २७४। धान्यविशेषः। भग०८०२। औषधि विशेषः। मल्लीषष्ठाङ्गेऽष्टमं ज्ञातम्। उत्त०६१४१ प्रज्ञा० ३३। मसूरा-मालवादिदेशप्रसिद्धधान्यविशेषः। ज्ञाताधर्मकथायाः प्रथमश्रुतस्कंधेऽष्ट-ममध्ययनम्, जम्बू. १२४। मसूरः-द्विदलविशेषः। पिण्ड. १६८1 एकोनविंशतितमजिनस्थानोत्पन्ना तीर्थकरी। ज्ञाता० मसूरकम्। ज्ञाता० २२९। मसूरः-धान्यविशेषः। प्रज्ञा० ९। मालायै हितं तत्र वा साध्विति माल्यं-कुसुमं १९३ तद्गतदोहदपूर्वक जन्मत्वेनान्वर्थतः शब्दतस्तु मसूरए- पोतमयमसूरकः, अप्रतिलेखितदूष्यपञ्चके निपातनात् मल्लीति नाम। ज्ञाता० १२९। पञ्चमो भेदः। स्था० २३४| पोतमयसूरकःमल्लेण-मालाभ्यो हितं माल्यं-कुसुमम्। ज्ञाता० १२५ अप्रतिलेखितदूष्यप-ञ्चके पञ्चमो भेदः। आव०६५२ मल्लेस्सामि- मर्दयिष्यामि। आव०६७६) मसूरक- आसनविशेषः। भग० १३१। धान्यविशेषः। जीवा. मशकगृह- रक्तांशुकः। भग० ५४० मषीभाजन- लिप्यासनम्। भग० २३७) मसूरकचन्द्र-ध्यान्यविशेषदलम्, चक्षुरिद्रियसंस्थानम्। मस- मषम्। अनुयो० २१२। निशी० ६१ अ। भग० १३११ मसक-मच्छरः। नन्दी०५८। मसूरगचंद- मसूरकाख्यस्य-धान्यविशेषः मसग- मशकः-चतुरिन्द्रियजीवभेदः। उत्त० ६९६| चतुरि- | यच्चन्द्राकृतिदलं स मसूरकचन्द्रः। जीवा० १५१ न्द्रियविशेषः। प्रज्ञा० ४२। मशकः। आव० १०२। मशकः- | मसूरचंदसंठाणसंठित- मसूरचन्द्रसंस्थानसंस्थितं कृत्तिमण्डितःवस्त्रविशेषः। ज्ञाता० २३२१ चक्षुरिन्द्रि-यम्। प्रज्ञा० २९३। मसमसाविज्जई-शीघ्रं दह्यते। भग०१८४ मसूरय- ब्रूयादिपूर्णं वल्कलगद्दिकादि। बृह० २२० । मसाण- श्मशानं-पितृवनम्। दशवै. २६७। मसूरा- मालवविसयादिसुचवलगा रायमासा। दशवै० ९२ मसाणपाल- मशानपालः-श्मसानरक्षकः। आव०७१७ आ। चणईयाओ-तिलमुग्गमासाः प्रतीताः। स्था० ३४४। मसार- मसारः-मसृणीकारकः, पाषाणविशेषः। औप. १० लोमपक्षीविशेषः। प्रज्ञा०४९। मसार:-मसृणीकारकः, पाषाणविशेषः। ज्ञाता०६। महंत- इच्छन्। प्रश्न. ५०| महान्तं-दीर्घम्। ज्ञाता० १३३ मसारगल्ल- मसारगल्लकाण्डं-रत्नप्रभायां पञ्चमं महत्-स्फीतिमत्। प्रज्ञा०६०० गवक्खकडए मसारगल्लानां विशिष्टो भूभागः। जीवा० ८९। महागवाक्ष-कटकेन-बृहज्जलसमूहेन। ज०२१| मसारगल्लः। प्रज्ञा० २७ मसारगल्लः-मणिभेदः। उत्त० | महंतर-महान्। मरण। ६८९। ज्ञाता० ३१। मणि-भेदः। जीवा० २३। मसारगल्लः- महततरा-आयामतः। भग०६०५ पृथिवीभेदः। आचा० २९। महंतरत्था- महद्रथ्या-राजमार्गः, देवयानरथो वा। आव. मसि- मषी-कज्जलम्। भग० ६७२। मशीन्यमक्षरलिपिवि- | ७४०। रायमग्गो। निशी० ७१ आ। रायमग्गो-देवजा १५ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [75] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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