Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 87
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text]] महआसव- मध्वाश्रवः। औप० २८१ मथुरा-परलोकनमस्कारफलदृष्टान्ते पुरी। आव० ४५४। महुकेढव- मधुकैटभः-पुरूषोत्तमवासुदेवशत्रुः। आव० असत्याकारे निर्व्याघाते नगरी। आव०६२२। तितिक्षोदा१५९। हरणे जितशत्रुराजधानी। आव०७०२। निशी० ३५२। महुकोसय- मधुकोशकः-क्षौद्रोत्पत्तिस्थानम्। प्रश्न० ३८५ मथुरा-श्रमणीप्रभृतीनां मानुष्योपसर्गे नगरम्। व्यव० महुघात- मधुघातः-मधुग्राहकः। प्रज्ञा० १३॥ १९६। श्रमण्युपसर्गकृबोधिकनिवारिकः क्षपकस्थानम्। महत्त- कालविशेषः। भग० ८८८1 बृह. २४०। चन्द्रप्रभगाथापतिवास्तव्या नगरी। ज्ञाता० महपुग्गल- मधुपुद्गलम्। आव०८५७ २५३। तिविहं सुत्तअत्थअभिहाणमहरं। दशवै० ३५ ।। महुमहण- मधुमथनं-आक्रष्टुम्। आव० ४८१ मथुरा-योगसंग्रहे भावपत्सु दृढधर्मत्वदृष्टान्ते नगरी, महमुह- दुर्जनः। बृह. २५५आ। । यमुना-राजधानी। आव०६६७। देवनिर्मितस्तूभस्थानम्। महुमेहणि- मधुमेहो-बस्तिरोगः स विद्यते यस्यासौ व्यव० १९७। मथूरा-शूरसेनजनपदे आर्यक्षेत्रम्। प्रज्ञा० मधुमेही, मधुतुल्यप्रस्त्राववानित्यर्थः। आचा० २३६। ५५ मथुरा-कृष्णपुरी। आव० १६२। मथुरामहुर- मधुरं-मधुरस्वरेण गीयमानम्। जीवा० १९४१ त्रिपृष्ठवासुदेव-निदानभूमिः। आव०१६३। मधुरस्वर-कोकिलारुत्वत्। जम्बू०४०। मधुरं श्रवणम- महुला- पादे गंडं। निशी. १३७ आ। नोहरम्, अष्टमो सूत्रगुणः। आव० ३७६। मधुरं- महवयण- वनस्पतिविशेषः। भग० ८०२। सूत्रार्थोभयैः श्राव्यम्, गद्यलक्षणविशेषः। दशवै० ८८ महस-नगरीविशेषः। निशी० २४१ अ। महरः-चिलातदेश-वासीम्लेच्छविशेषः। दशवै० १८० | महुसिंगिणिरुहा- वृक्षविशेषः। भग० ८०४। मथुरा। आव० १७३। मधुरं-कर्णसुखकरणम्। ज्ञाता० महसिंगी-साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० ३४| २११। मधुरः-श्रवणसु-खकरः। ज्ञाता० २३२। षष्ठ महसित्थ- येन प्रदेशेनालक्तकामिन्याः पात्यते दूतप्रेषणस्थानम्। ज्ञाता० २०८५ मधुरः तावन्मात्रं यो लिम्पति कर्दमः स मधुसित्थः। ओघ० हलादनबृंहणकुत्। स्था० २६| २९। मधुसिक्थं-औपपातिक्यां दृष्टान्तः। उत्त० ४२१| महुरग- मधुरम्। आव० ६२० मदनम्। भग० ३९९। मधुसिक्थः -तलयोर्यः कर्दमो महुरतण- तृणविशेषः। प्रज्ञा० ३३। लगति। बृह. १६३ । महुररस- मधुररसः-साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। | महुसित्थगी- तीलान्तगमेत्तो। निशी० ८० अ। प्रज्ञा० ३४॥ महुसित्थजलं- मधुसित्थकजलं-यद् महुरसर- मधुरस्वरं मधुमत्तकोकिलारुतवत्। अनुयो. अलक्तकमार्गावगाहि-कर्दमस्योपरि वहति। ओघ० ३२॥ १३२ महेंदज्झया- महेन्द्रध्वजः। जीवा० २२९। महुरस्सरा- मधुरस्वरा-द्विपकुमाराणां घण्टा। जम्बू. महेइ- मथ्नाति-घर्षयति। भग० ५२० महति। आव. १९७। ४०७ महेन्द्रसिंह- कुवलयमालागतराजपूत्रः। स्था० ५१६) महरा- मथुरा-जितशत्रुराजधानी। उत्त० १२०। मथुरा- महेयक्षा- महोरगविशेषः। प्रज्ञा०७०| चिरप्रतिष्ठितापुरी, इन्द्रदत्तपुरोहितवास्तव्यानयरी। महेलागुण- महेलागुणःउत्त० १२५। मथुरा-जितशत्रुराजधानी। उत्त० १४८१ प्रियंवदत्वभर्तृचित्तानुवर्तकत्वप्र-भृतिः। जीवा० २७४। मथुरा-यत्राक्रियावादीनिह्नव उत्पन्नः। उत्त० १७३, महेसक्ख- महेशाख्यः इति महान् ईशः-ईश्वरः इत्याख्या १७९। शङ्ख-युवराजराजधानी। उत्त० ३४५। मथुरा- यस्य महेशाख्यः ईशं-ऐश्वर्यमात्मनः ख्यातिनगरीविशेषः। दशवै. ३६। मथुरा अन्तर्भूतण्य-र्थतया ख्यापयति-प्रथयति जिनदासवास्तव्यानगरी। आव० १९८। मथा। आव. महांश्चासावीशाख्यश्च। जीवा० १०९। महान् ईश-ईश्वर ३०। मथुरा-पर्वतराजनगरी। आव० ३४४। मथुरा- इत्याख्या-शब्दप्रथा यस्य लोके स महेशाख्यः, अथवा चक्षुरिन्द्रियोदाहरणे जितशत्रराजधानी। आव० ३९८१ ईशानमीशो, 'भावे घञ्' प्रत्ययः, ऐश्वर्यमित्यर्थः, 'ईश मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [87] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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