Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 85
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] महासाल- महाशालः-पृष्टिचम्पानगर्यां युवराजा। उत्त० । महासेणकण्हा- महासेनकृष्णा३२१। महाशालः-श्रीवीरशिष्यः केवलीजातश्च। उत्त. अन्तकृद्दशानामष्टमवर्गस्य दशममध्ययनम्। अन्त० ३२३। २७। महासेनकृष्णा। अन्त० ३२१ महासावय- षष्ठशतकस्य तृतीयोद्देशकः-महाश्रावकः। महासेते- नाट्याधिपतिः। स्था० ४०६। भग. ३२६। महासेन- द्वारामत्यां बलवर्गमुख्यः। ज्ञाता० १०० महासासण- महाशासनः-राजाधिपः। आव०७१२२ महासोक्ख- महासौख्यः। भग० ८६। महासौख्यः-महमहाशासनः-महामण्डलिकः। आव०७१८ महाशासनः। त्सौख्यं यस्य प्रभूतसवेंदोदयवशा स महासौख्यः। उत्त०३०२। जीवा० १०९। महासौख्यः-महत्सौख्यंमहासिला- सचेयणाऽसंदा महासिला। निशी० ८२ आ। प्रभूतसवैयोदयवशात् यस्य स महासौख्यः। जीवा. महासिलाकंटए- महाशिलैव कण्टको जीवितभेदकत्वात २१७। सूर्य २५८१ महासौख्यः विशिष्टस्खयोगाद। महाशिलाकण्टकः। यत्र ज्ञाता० ३०| प्रभूतसद्वेद्योदयवशाद् यः सः तणशकलादिनाऽप्यभिहतस्याश्व महासौख्याः । प्रज्ञा० ८८1 महत् सौख्यं येषां ते महाहस्तादेर्महाशिलाकण्टकेनेवाभ्याहृतस्य वेदना जायते सौख्यः। सूर्य. २८६। महत्सङ्ग्रामः महाशिलाकण्टकः। भग० ३१६) भवनपतिव्यन्तरेभ्योऽतिप्रभूतं तदपेक्षया तेषां महाशिलाकंटओ- महाशिलाकण्टकः प्रशान्तत्वात् सौख्यं येषां ते महासौख्याः। सूर्य. २५८ सङ्ग्रामविशेषः आव०६८४१ महासोतामो- पादत्राणाधिपती। स्था० ३०२ महासिव- महाशिवः-षष्ठपुरुषपुण्डरीकवासुदेवपिता। महास्कन्द-भूतभेदविशेषः। प्रज्ञा० ७० आव. १६३१ महास्थण्डिल- शबपरिष्ठापनभूमिलक्षणम्। बृह. २३७ महासीहनिक्कीलिय-तपविशेषः। ज्ञाता० १२४। महासीहसेण- महासिंहसेनः-अनुत्तरोपपातिकदशानां महाहरि- महाहरिः-हरिसेनपिता। आव. १६२ दविती-यवर्गस्य द्वादशममध्ययनम्। अनुत्त०२। महाहरी-हरिसेन चक्रिणः पिता। सम० १५२ महासुक्क- महाशुक्रः-सप्तमदेवलोकः। भग० २२०। सह- | महाहिमवंत-महाहिमवान्-हेमवतक्षेत्रस्योत्तरतः स्रारकल्पे देवविमानविशेषः। सम० ३३। महाशक्रः-सुप्रभ | सीमाकारी-वर्षधरपर्वतः। जीवा० १९४। महाहिमवान्। १ सुदर्शना रनन्द ३ बलदेवत्रयागमनस्थानम्। आव.. आव. २९७ १६३। ज्ञाता० १९१। महाहिमवत्- जम्बूद्वीपे दक्षिणस्यां पर्वतः। स्था०६८, महासुक्का- महाशुक्लाः-अतिशयोज्वलतया चन्द्रादित्या- ७०,७२। दयः। उत्त. १८७। महाशक्रः-कल्पोपगः वैमानिकभेद- | महिंद- माहेन्द्रः-पर्वतविशेषः। शक्रो वा। जम्ब०७६) विशेषः। प्रज्ञा० ६९। महाशुक्रः-नारायणवासुदेवागमन- माहेन्द्रः-स्पार्श्वजिनप्रथमभिक्षादाता। आव० १४७। विमानम्। आव० १६३। माहे-न्द्रः-अष्टममुहूर्तनाम। सूर्य. १४६। माहेन्द्रमहासुविण- महाफलत्वात्। भग० ५४३ पर्वतविशेषः। शक्रो वा। औप० १११ लान्तककल्पे महासेए- महाश्वेतः-व्यन्तरेस इन्द्रविशेषः। प्रज्ञा० ९८१ दवादशमसागरोपमस्थि-तिकदेवविमानविशेषः। सम. महासेण- जम्बूद्वीपे ऐरवतवर्षे आगमिण्यामुत्सर्पिण्यां तीर्थ-करनाम। सम० १५४। महासेनः महिंदकनं- महाशुक्रल्पे देवविमानविशेषः। सम० २७। अनुत्तरोपपातिकदशायां द्वितीयवर्गस्य महिंदकुंभसमाण- महेन्द्रकुम्मसमानः-महाकलराप्रमाणः। द्वितीयमध्ययनम्। अनुत्त० २। कुभेन्द्रः। स्था० ८५। । जीवा० २०५१ महासेणकण्ह-निरयावल्यां प्रथमवर्गे दशममध्ययनम्। | महिंदकुंभसमाणाः- महाकलराप्रमाणा यद्वा महीन्द्रो निर० ३। राजा तदर्थं तस्य। समबन्धिनो वा कुम्माः । २२ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [85] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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