Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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५५
आव० २१८१
३१७। राजविशेषः। भग० ४६३। मल्लकी-राजविशेषः। मलयगिरि- बृहत्कल्पटीकाकारः। बह. ९६अ। गिरिवि- भग० ११५ मल्लकी। औप. ५८१
शेषः। ज्ञाता० २२२व्याकरणकारः। बृह. २आ। मल्लक-भाजनविधिविशेषः। जीवा० २६६। मलयज- मलयजः-श्रीखण्डः। भग०४७७)
मल्लकच्छा-आर्थिकानामेकवस्त्रकम्। ओघ० २०९। मलयववई- मलयवती काम्पिल्यस्ता ब्रह्मदत्तराज्ञी च। मल्लच-लणाकृतिः। निशी. १७९ आ। उत्त० ३७९।
मल्लकिन- राज्यविशेषः। राज०१२१| मलयवती-कथाकथको ग्रन्थः। व्यव० ११३ आ| निशी. | मल्लग- मल्लकं-शराबः। नन्दी. १७७ मल्लकं-शरावम्। २७७आ।
भग. २६९। मल्ल। ज्ञाता०४० सरावं। निशी. ७३ आ। मलया- जनपदविशेषः। प्रज्ञा० ५५ म्लेच्छविशेषः। प्रज्ञा० मल्लगसंपुड- मल्लकसम्पुटम्। आव०६२१।
मल्लचंगेरी- माल्यचङगेरी। जीवा. २३४॥ मलिए- मर्दितः-मानम्लानिप्रापितः। जम्बू. २७७। मल्लचलणाकृति-मल्लकच्छा। निशी. १७९ आ। मलिज्जंतु- मल्वन्ताम्। प्रश्न० ३९।
मल्लदाम- माल्यदामा-पुष्पमाला। भग०४७८१ मलिज्जइ- मृद्यते। आव० ७६४।
माल्यदामः- पुष्पमाला। ज्ञाता०३७ माल्यदामःमलिणिज्जति- मलिनीयते। आव०४९३।
पुष्पमाला। भग० ३१८१ मलिना-मानभञ्जनात्। स्था०४६३।
मल्लदिन्न- मल्ली लघुभ्राता। स्था० ४०२। मलिय- मलितः-कृतमानभङ्गः। औप० १२। मलितं परि- | मल्लदिन्नए- मल्लीलघुभ्राता। ज्ञाता० १४२| भुक्तम्। बृह२२१ आ। मलितं-पुरुषाभिलषणीययोषि- मल्लपडलय- माल्यपटलकम्। जीवा० २३४| दङ्गमर्दनम्। ज्ञाता० १६५। मलितः-उपद्रवं कुर्वाणः। मल्लमंडिय-तृतीयः परावृत्तपरिहारः। भग०६७४| राज०११|
मल्लय-मल्लकं-सरावम्। ओघ० १४० मलिया- मर्दिता। बृह० ११७ आ। मदिया। व्यव० १४१ मल्लवंता- माल्यवान-रम्यक्वर्षस्य वृत्तवैताढ्यः पर्वतः।
जीवा० ३२६। मलेइ-मर्दयति। आव. २१७५
मल्लवास- माल्यवर्षा। भग. १९९। मलेह- विनाशयथ। बृह. १२अ।
मल्लाज्झियाइ-मल्लाः-कड्यावष्टम्भनस्थाणवः मल्ल-माल्य-मालास् साधु, पृष्पमिति। प्रश्न. १६०| बलहरणाधा-रणाश्रितानि वा छत्राराधारभूतानि माल्यं-पुष्पम्। जीवा० २०७। माल्यं
ऊर्ध्वायतानि काष्ठानि। भग० ३७६। ग्रथितादिभेदभिन्नम्। जीवा० २४४। माल्यं-पुष्पदामः। मल्लाणवण- माल्यानयनम्। आव. २३०| जीवा० २४५। माल्यं-ग्रथितप्-ष्पाणि। भग० २००९ मल्याराम- द्वितीयः परावृत्तपरिहारः। भग० ६७४। मल्लः-मल्लयुद्धकारी। जम्बू. १२३। माल्यं-पुष्पं मल्लि- परीषहादिमल्लजयात्प्राकृतशैल्या तद्रचनापि माल्यम्। स्था० ४२१। माल्यं-ग्रथितानि छान्दसत्त्वाच्च मल्लिः, एकोनविंशतितमो जिनः, पुष्पाणि। अनुयो० २४। माल्यं-पुष्पं तद्रचनापि। स्था० यस्मिन्गर्भगते मातुः सर्वर्तुकवर२८६। माल्यं- अविकशितानि पुष्पाणि। अन्यो० २४। सुरभिकुसुममाल्यशयनीये दोहदो जातस्ततः मल्लिः। माल्यः-ग्रथितपुष्पः। उत्त०६६५ मल्लः प्रतीतः। प्रश्न. आव० ५०५ १३७। धारकः। औप०७०| मल्लः-कठिनीभूतः। औप. मल्लिअ-मल्लिका-विचकिलपुष्पं, लोके बेलि इति ८६। मल्लः -प्रतीत। जीवा० २८१। मल्लः । अनयो० ४६। प्रसिद्धम्। जम्बू. १९२। मल्लिका-विचकिलः। जम्बू० देव-विमानविशेषः। सम० ३९। माल्यं-विकसित दामः। २६५ औप. ५६।
| मल्लिआगुम्मा- मल्लिकागुल्माः। जम्बू०१८ मल्लई-मल्लकिः-मल्लकि नामानो राजाविशेषः। भग० | मल्लिका- गन्धद्रव्यविशेषः। जीवा० १९१|
आ।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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