Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
[Type text]
اواyo
अन्त०२८१ महलू- तपनीयपट्टम्। जम्बू० २१११
महाकंदिय- महाक्रन्दितःमहल्ल- महान्। आव. २०६, ३५८, ३१४। महान् वृद्धः। व्यन्तरनिकायानामुपरिवर्तिव्यन्त-रजातिविशेषः। उत्त० १९३। वृद्धः। आव०७६। बृहत्तरम्। बृह० ६४ अ। प्रज्ञा० ९८। महाक्रन्दितः-वाणमन्तरवि-शेषः। प्रज्ञा०९५) महत्। आव० ३०५ महत्-महाप्रमाणम्। दशवै० २१७) महाकच्छ-विजयविशेषः। जम्बू. ३४६। महाकच्छ:महत्तमम्। भक्त।
ऋषभप्रभोः शिष्यः। आव० १४३। श्रीऋषभस्वामिनो महल्लए- महति। आव० ५५७। आर्यरक्षितपिता। उत्त. महा-नाम तः। जम्बू० २५२। ८४|
महाकच्छकूड- महाकच्छकूट-पद्मकूटवक्षस्कारे तृतीय महल्लपयोयण-महत्प्रयोजनः महत्तराकारः। आव. कूट-नाम। जम्बू० ३४६|| ८४३
महाकच्छा-। स्था० ८० अतिकायमहोरगेन्द्रस्य महल्लपिंड-पितृव्यः। आव० १७३।
तृतीयाग्र-महिषी। स्था० २०४। अतिकायस्य महल्लया- महता भण्डकेन। ओघ. १६९। महत्प्रमाणं- तृतीयाग्रमहिषी। भग. ५०५। धर्मकथायाः पञ्चमवर्गस्य भाज-नम्। ओघ०१६९।
सप्तविंशतितममध्ययनम्। ज्ञाता० २५२। महल्लि- महती। आव. २००
महाकण्ह-निरयावल्यां प्रथमवर्गे षष्ठममध्ययनम्। महल्ली- महती। आव० ४१६)
निर०३। महव्वाइ-महावादी। दशवै०५३
महाकण्हा- महाकृष्णा-अन्तकृद्दशानामष्टमवर्गस्य महसिव- षष्ठबलदेववासुदेवयोः पिता। सम० १५२। षष्ठममध्य-यनम्। अन्त० २७। महाकृष्णामहसुक्क- महाशुक्रः-वासुदेवागमनकल्पः। आव० १६३। सर्वतोभद्रप्रतिमाकारिका। अन्त०२९। महसेण- मुकुटबद्धराजा। भग०६१८
महाकप्पसयसहस्सा-| भग०६७४। मल्लीसहप्रव्राजकोऽष्ट-मकुमारः। ज्ञाता० १५२, २०७। महाकल्पशतसहस्त्रम्। भग० ६७४। बलवर्गशाहस्त्रोकः। अन्त०२ चन्द्रप्रभजिनपिता। महाकप्पसुयं- महाग्रन्थं महार्थम्। नन्दी. २०४। सम० १५० महासेनः-सुप्रतिष्ठन-गरनपतिः। विपा. महाकम्मतर- विधायमानानलापेक्षयाऽतिशयेन महान्ति ८२। महासेनः-चन्द्रप्रभपिता। आव० १६१।
कर्माणि-ज्ञानावरणादीनि बन्धमाश्रित्य यस्यासौ महसेणवणुज्जाण- महसेनवनोद्यानं-क्षेत्रम्,
महाक-र्मतरः। भग० २२९। अनन्तरनिर्गम-सामायिकक्षेत्रम्। आव० २७६। महाकल्प- श्रुतधरविरोधः। आव० ५३१| महांधकार- महान्धकारं-महातमोरूपम्। भग० २७०। | महाकहापडिवन्न- महाकथाप्रतिपन्नः-महाकथाप्रबन्धः। महा- अष्टमं नक्षत्रम्। स्था० ७७। मघाः-महामेघाः। जीवा- | भग० ३२७ ३८७ मघा-मण्डिकपुत्रजन्मनक्षत्रम्। आव० २५५) महाकाए- महोरगेन्द्रः। स्था० ८५। महाकायःमहान्-प्रधानः प्रभूतो वा। आव० ५९६। बृहत्। उत्त. उत्तरनिकाये सप्तमो व्यन्तरेन्द्रः। भग० १५८ ३६६। महत्-प्रभूतम्। जीवा० १२८। महत्-भवनपति महाकाओ-पंचिंदिओ। निशी. ७२ अ। महाकायःव्यन्तरेभ्योऽतिप्रभूतम्। ओघ० २५८१ महत्-प्रशस्तमा- मूषकादिः। आव० ७४१। त्यन्तिकं वा। स्था० १७१। महान्
महाकादम्बा- गन्धर्वभेदविशेषः। प्रज्ञा०७० अविचिन्त्यशक्त्यपेतः। नन्दी० २३। महान्
महाकाय- महाकायः-महोरगः। जीवा. १७२। महाकायःकषायोपसर्गपरिषहेन्द्रियादिशत्रगणजया-दतिशायी। महोरगेन्द्रः। जीवा० १७४। महाकायःनन्दी० २३। महत् पूर्वम्। दशवै० ४० अ। बाहुल्ले। सजातःप्रीणितश्च। दशवै २१७५ दशवै० १११
महाकाया- महोरगभेदविशेषः। प्रज्ञा०७० महाओहस्सरा- महौघस्वरा-बलीन्द्रस्य घण्टा। जम्बू० | महाकाल- भौतपरिगृहीताऽर्हत्प्रतिमा आव० ८११|
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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