Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 66
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] मणि- मणिः-मरकतादिः। उत्त. २६५। मणिः-इन्द्रनी- | मणिरत्नम्। जम्बू. २२५।। लादिः। उत्त० ३१६। मणिः-चन्द्रकान्तादिः। जीवा. मणिरयणकउज्जोय- मणित्नकृतोदयोतः। आव. ५५९। १६४। मणिः-चन्द्रकान्तादिकः। आव० १८४। मणिः- मणिलक्खण- कलाविशेषः। ज्ञाता० ३८५ पारिणामिक्याम्दाहरणम्। नन्दी. १६७। चन्द्रकान्तादि, मणिवंशय- मणिः-मणिमयो वंशो यस्य तत् स्थूलसमुद्भवः। आव० २३० मणिः- चन्द्रकान्तादिः। मणिवंशकम्। जीवा० ३६० भग. १६३। स्थलजाता मणयः। जम्बू. १२४। मणिवइया- जम्बूभरते नगरी। निर० ३६। मणिअंगा- मणिमयानि आभरणान्याधेये मणिवई- माणिभद्रगाथापतिवास्तव्यं नगरम्। निर० ३६। आधारोपचारान्मणीनि तान्येवाङ्गानि-अवयवा येषां ते | मणिवया- मणिपदनगरी, मित्रराजधानी। विपा. ९५ मण्यङ्गाः-भूषणसम्पादकाः। जम्बू० १०५ मण्यङ्गाः- मणिसिलागा- मणिशलाका-एकोरुद्धीपे द्रुमगणविशेषः। आभरणदायिनः। सम०१८ जीवा० १४६। मणिशलाका। जम्बू. १००। मणिश-लाकामणिकम्म-विचित्रमणिनिष्पादितस्वस्तिकादिः। आचा. मणिशलाकेव सुरा। जीवा० ३५१| ४१४॥ मणी- मणिः-चन्द्रकान्तादि। प्रश्न० ३८१ मणिः-चन्द्रकामणिकाञ्चनकूट- नीलवर्षधरपर्वतेऽष्टमकूटः। स्था० ७२। न्तादिः। सूर्य. २६३। मणिः-चन्द्रकान्तादि। प्रज्ञा०९७। मणिकार- मुक्तिमाकाशे प्रक्षेपकः। नन्दी. १६५। सूर्य-मणी। निशी. २५४ आ। मणिः-चन्द्रकान्तादिः मणिजाल- मणिसमूहः भूषणविधिविशेषः। जीवा. २६८ | उद्योतकृत्। आव०४९७। मणिणाग- मणिनागः-नागविशेषः। आव० ३१८१ मणु-मनुशब्दो-मनुष्यवाची। प्रज्ञा०४३। मणिनागः-नागविशेषः। उत्त० १६७ एकसागरोपमस्थि-तिकं विमानम्। सम०२ मणित- मणितं-रतकूजितम्। ज्ञाता० १६८। मणुअ-मर्त्यः-मनुजः। स्था० ४६६) मणिदत्त- मेघवर्णोद्याने यक्षायतनम्। निर०४०। | मणुअलोअ- मनुष्यलोकःमणिनाग- राजगृहे नदविशेषे नागविशेषः। स्था० ४१३। अर्द्धतृतीयद्वीपसमुद्रपरिमाणः। आव० ३१| मणिपीठिका- मणिमया पीठिका। जीवा० २२३। मणुग्घाय- आचाराङ्गस्य सप्तविंशतितममध्ययनम्। मणिपुर- नागदत्तगाथापतीनगरम्। विपा. ९५१ उत्त० ६१७ मणिपेढिया- पीठिकाविशेषः। स्था० २३० मणुणसंयओगसंवउत्त- मनोजसंप्रयोगसंप्रगुक्तः। औप० मणिप्पभ- मणिप्रभः-अज्ञातोदाहरणे धारिण्याः साध्व्या ४३ जातः पुत्रः, अजितसेनस्य पुत्रत्वेन प्रसिद्धः। आव. मणण्ण- मनसः इष्टं मनोज्ञम्। आव०७२६। मनोज्ञः६९९| मनोऽ-नुकूलः। जम्बू० २४१ मणिप्पभोभास- मणिप्रभयाचितः। मरण । मणुण्णा- मनोज्ञता-सामान्येन कमनीयता, अथवा मणिमेखला- रत्नकाञ्ची। ज्ञाता० २७। यथाभि-प्रायमनुकूलता। दशवै० २११। मणियंगा- भूषणदायकवृक्षविशेषः, अष्टमकल्पवृक्षः। मणुन्न- मनोज्ञम्। सूर्य० २९३॥ मनोज्ञः-विपाकेऽति स्था० ५१७। मण्यङ्गाः-मणीनां सुखज-नकतया मनःप्रह्लादहेतुः। जीवा० ४९। आभरणभूतानामङ्गभूताः-कार-णभूता मणयो वा मणुमइया- मनुमतिका-सर्वविरक्तताविषये अगानि-अवयवा येषां ते मण्यङ्गाः-भूष देवलास्तराजस्य दासी। आव०७१४१ णसम्पादकोः। स्था० २९९। मणुयलंभ- मनुष्यलाभः। आव० ३४५१ मणियए- मणियुक्तम्। आव० ५६०| मणुया- मनुर्जाता मनुजा-मनुष्याः। स्था० २२॥ मणियाए- मणिकारः-परलोकफलविषये श्रेष्ठी। आव० मणुस्स- मनोरपत्तयं-मनुष्यः। प्रज्ञा० ४३। मनोरपत्यं ८६३ | मनु-ष्यः। जीवा० ३३। मनोरपत्यं-मनुष्यः। उत्त० ६४४। मणिरयण- चक्रवर्तेः षष्ठमेकेन्द्रियं रत्नम्। स्था० ३९८१ | मणुस्सखेत्त- मनुष्यक्षेत्रः-मनुष्योत्पत्त्यादि मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [66] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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