Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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[Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
[Type text] मंसु- श्मश्रुः-कुर्चरोमालि। प्रश्न० ६०| श्मश्रु-कूर्चःकेशः। | मईकय- मतिकृतम्। सूर्य २३॥ प्रश्न. १०७
मउंद- मुकुन्दः-वाद्यविशेषः। भग० १४५। मंसूढी- प्रहरणविशेषफ। सम० १३८
मउअ- सन्नतिकारणं तिनिशलतादिगतः मृदुः। अनुयो. मंसुण्डकादिबुद्धि- मांसपिण्डादिद्धिः। ओघ. १६४। ११०। मृदुः-अनिष्ठुरम्। अनुयो० १३२॥ मअंतं-जं अंतं मअंतं-जूणं-आवरणहरणीयं। निशी० ५० । | मउड- मुकुटं शेखरकः। विपा० ७०| मुकुटः-भूषणविधिविआ।
शेषः। जीवा० २६८। मुकुटः-त्रिकुटः। निशी० २५४ आ। मइंग- मृदङ्गः-लघुमर्दलः। राज०४९।
मुकुटं-मस्तकाभरणविशेषः। प्रश्न०४८। मुकुटम्। मइ-माम्। दशवै०४१। मननं मतिः-अवबोधः। आचा० जीवा० ३८६ १२। मइ-बुद्धिः। सम० ११७। मतिः-अवायधारणे। भग. मउडठाण- मस्तकप्रदेशः। सम०६१| ३४५। मतिः-अपाय-धारणहेतुः। नन्दी. १९४। मतिः- मउडदित्तसिरा- मुकुटदीप्तशिराः मकटेन दीप्तं शिरो ज्ञानम्। आचा० २०। मतिः-भावतःश्रद्धा। दशवै० २७९। यस्य स। जीवा० ३८६] मतिः-प्रातिभबोधाव-ध्यादिज्ञानम। मननं मतिः- मउडविडव- मुकुटविटपः-शेखरकविस्तारः। भग० १७५ ज्ञानम्। आचा० २२८१
मउय- मृः-अकठिनः। जीवा० २७४। मइजड्डसुद्धी- मतिजाड्यशुद्धिः
मध्यमम्मणुल्लाव- मृदुमन्मनोल्लापः-अव्यक्तवाक्। तथावस्थितस्योपयोगविशे-षतः। आव० ७७३।
पिण्ड. १२५ मइदोब्बलं-मतिदौर्बल्यं-मतेः-बुद्धेः
मउयरिभियपयसंचारं- मृद्-मृदुना स्वरेण युक्तं न सम्यगर्थानवधारणम्। आव० ५९७।
निष्ठुरेण तथा स्वरेष्वक्षरेषु योलमास्वरविशेषेषु संचरन् मइम-मतिमान-सश्रुतिकः। आचा० १५६। मतिमान्-श्रुत- रोगेऽतीव प्रतिभासते स पदसञ्चारो रिभितं, संस्कृतबुद्धिः। आचा० १३८ मतिमान-सदसदविवेकज्ञः। मृदुरिभितपदेषु-गेयनि-बद्धेषु सञ्चारो यत्र गेये तत् आचा० १४३।
मृदुरिभितपदसञ्चारम्। जीवा. १९५५ मइमय-मतिमान् केवलीनः। आचा० २७३। मतिमान- मउलं-मुकुलं-फणाविरहयोग्या शरीरावयवविशेषाकृतिः। विदितवेद्यः। आचा० ३०६। मतिमान्
जीवा० ३६। ज्ञानचतुष्ट्यान्वितः। आचा० ३१५)
मउलि- मुकुली-मकुलं-फणाविरहयोग्यः। मइयं-मतिकं-येन कृष्ट्वा क्षेत्र मृदयते। प्रश्न. ८ मयिकं शरीरावयवविशे-षाकृतिः स विद्यते येषां ते म्क्लीउप्त-बीजाच्छादनम्। दशवै० २१८। मृतं
फज्ञाकरणशक्तिविकलोः, अहिभेदविशेषः। प्रज्ञा०४६| पञ्चत्वमुपगतम्। दशवै० ५९।।
मौलिः-मस्तकम्। भग० १३२ मउलिका-मुकुलीमइलितं- मलिनयति पांसयति। प्रश्न. ३६|
अहिविशेषः, यः फणां न करोति। प्रश्न 1 मुकुलीमइल्लिय- कठिनमलयुक्तः। भग० २५४। पद्मावतीपुत्रः। फणारहितः सर्पः। प्रश्न. ३७ ज्ञाता० १८६।
मउलिकड- कृतमकुलः। आव०६४७ मत्कलकच्छः । मई- मननं मतिः-कथञ्चिदर्थपरिच्छितावपि सक्ष्मधर्मा- उपा०१६ लोचनरूपा बुद्धि। नन्दी० १८७। मननं मतिः-कथञ्चिद- | मउलिय- मुकुलं-कुड्मलम्। राज० ६। मुकुलितम्। आव. र्थपरिछितावपि सूक्ष्मधर्मालोचनरूपा बुद्धिः। आव० १८१ ६८६| मतिः-समस्तपदार्थपरिज्ञानम्। सूत्र. १८८1 मतिः- | मउलियाओ-मुकुलानि नाम कुड्मलानि कलिकाः। जम्बू. मनःपर्ययज्ञानविशेषः। प्रश्न. १०५। मतिः
२५१ धृतिमतिविषये पाण्डववंशे पाण्डषेणराजस्य ज्येष्ठा | मउली-मकुली-स्फटाकरणशक्तिविकलः। जीवा० ३९| पुत्री। आव० ७०८मतिः-तद्ग्रहणादिकर्मजातः। दशवै. मौलिः-शेखरो यस्य विचित्रमालानां वा मौलिर्यस्य स १७७| मननं मतिः-मनसोव्यापारः। आचा. २३०| तथा। स्था० ४२११ मकटविशेषः। उपा० २९।
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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