Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ (Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] मग्गोवसंपया- मार्गे देशनायोपसंपत् मार्गोपसंपत्। व्यव. २२९, २३२ ३७८ आ। निशी० २४१ । मच्छंडिआ- मत्स्यण्डिका-खण्डशर्करा। जम्बू. १९८१ मघमघंत- मघमघायमानं-अतिशयवान् गन्धः। ज्ञाता० मच्छंडिका- मत्स्यण्डिका खण्डविशेषः। प्रश्न. १५३। १२ मत्स्यण्डी-खण्डशर्करा। प्रज्ञा० ३६४| मघमघामान- बहुलसौरभ्यो यो गन्धः उद्धृतः-उद्धृतः। मच्छंडिया- मत्स्याण्डिका-शर्कराविशेषः। अनुयो० १५४। सम०६१। मच्छंडी- मत्स्यण्डी-खण्डशर्करा। जीवा० २७८१ मघमघेत- अनुकरणशब्दोऽयं मघमघायमानो खण्डशर्करा। अनुयो० ४७। बहलगन्धः। सम० १३८ मघमघायमानः। जम्बू. ५१ | मच्छंतं- मथ्यमानम्। प्रश्न. ५७ मघव- भरतक्षेत्रे तृतीयश्चक्रवर्ती। सम० १५२२ मघा- मच्छंध- मच्छबन्धो-मत्स्यबन्धः। ओघ. २२३। महाभेघास्ते यस्य वशे सन्ति स मघवान्-इन्द्रः। जीवा० मत्स्यबन्धः कैवर्तः। व्यव. २३१ आ। ३८८ मघवा-तृतीयक्रवर्ती। आव. १५९। मघा-महामे- मच्छंधले- मत्स्यबन्धविशेषः। विपा० ८११ घास्ते यस्य वशे सन्ति स मघवात्-इन्द्रः। भग० १७४। मच्छंधवाडए- मत्स्यबन्धपाटकः। विपा० ७९। मघा-महामेघास्ते यस्य वशे सन्ति स मघवान्। प्रज्ञा. मच्छ- मत्स्यः । प्रज्ञा० ४३। राहोःसप्तमं नाम। भग० १०१ १७५। मच्छः-राहुदेवस्य सप्तमं नाम। सूर्य २८७ मघा- मघाः-महामेघाः। भग० १७४। कृष्णराजेवितीयं मत्स्यः -अष्टमङ्गले पञ्चमं। जम्बू. ४१९। नाम। स्था०४३२ चच्छखल-मत्स्य खलम्। आचा० ३३४। मघावती- मघावती-कृष्णराजेः तृतीयं नाम। भग० २७१। मच्छखागा- समुद्रे जन्तुविशेषः। निशी० २७३ आ। मग-धर्मः- | जीवा. २ धर्भाभिधानम्। आव०४। मच्छपुच्छे- मत्स्यपुच्छ-मत्स्बन्धविशेषः। विपा. ८११ मगलं-मन्यते अना(न)पायसिद्धिं गायन्ति मच्छबंधा- मत्स्बन्धः धीवरः। ओघ.१८०१ मच्छबंधप्रबन्धप्रतिष्ठितं? लान्ति वाऽव्यवच्छिन्नसन्तानाः मत्स्यबन्धः कैवर्तः। व्यव० ३३०२८५। मच्छबंधंशिष्यप्रशिष्यादयः शास्त्र-मस्मिन्निति वा मङ्गलम्। मत्स्यबन्धः। प्रश्न.१३| उत्त० । मङ्ग्यते हितमनेनेति, मङ्गलातीति वा मच्छर- मत्सरः-परसम्पदसहनं सति वा वित्ते धर्मोपादानहेतुरित्यर्थः, मां गालयति-संसा त्यागाभावः। उत्त०६५६। कोहो। निशी० ७२ अ। रादपनयतीति। आव०४१ मच्छरिज्जइ-मत्सरायते। आव० २२४। मङ्गलपाठिका- प्रातः सन्ध्यायां देवतायाः प्रतो या मच्छरित-मत्सरित्वं-परगणानमसहनम्। प्रश्न. १२५ वादना-योपस्थाप्यते सा। जम्बू० ३८१ मच्छरीया- मात्सर्य-परोन्नतिवैमनस्यम्। आव०८३८1 मङ्गी- वादित्रम्। जम्बू० १३७ मच्छा- मत्स्याः -मीनाः। उत्त०७९ठ। मगु- मन्दश्रद्धाविषये मथायामाचार्यः। आव० ४३९। मच्छिय-माक्षिकं-मधुविशेषः। आव०८५४ मत्स्याःमङ्खलि- मङ्खः। भग० ३५९। पण्यं यस्य स मात्सिकः। प्रश्न. ३७ मच्चु- मृत्युः-यमराक्षसः। ज्ञाता० १६५। चतुरिन्द्रियजीवभेदः। उत्त०६९६| मच्चुमुहं- मृत्युमुखं-मरणगोचरम्। उत्त० २४८१ भच्छियमल्ल- मात्स्यिकमल्लः-सोपारकपत्तने मृत्युमरणं-मृत्युस्तस्य मुखमिव मुखं। मृत्युः मल्लविशेषः। आव०६६४। आयुःपरिक्षयस्तस्य मुख-मिव मुखं मृत्युमुखं भच्छिया- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२॥ शिथिलीभवबन्धनाद्यवस्था। उत्त० ३८८1 चतुरिन्द्रिय-भेदः। उत्त०६९६| मच्च-मृत्युः-प्राणवधस्य त्रयोदशमपर्यायः। प्रश्न०६। | मच्छुव्वत्तं- मत्स्योवृत्तं-एकं वन्दित्वा मत्स्यवद् द्रुतं मच्छडक- जलचरविशेषाण्डकम्। जम्बू० ३१| दवितीयं साधं दवितीयपाइँन रेचकावर्तेन परावर्तते मच्छंडि- मत्स्यण्डी-खण्डशर्करा। जम्बू० १०५। ज्ञाता० । तत्। कृतिकर्मणि अष्टमदोषः। आव० ५४४ मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [62] "आगम-सागर-कोषः" [४]

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246