Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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मऊह- मयूखाः। मरण
मगदंतिया- गुल्मविशेषः। प्रज्ञा० ३२॥ मए- माम्। उत्त०१७९
मगदंतीआगुम्मा- मगदन्तिकागुल्माः गुल्मविशेषः। मएण-जातिस्मरणादिना ज्ञानेन। सूत्र. २९९।
जम्बू. ९८१ मओ- मृतः-विकारभाग। सूत्र० २७८५
मगदंतीआगुम्मा- मगदन्तिकागुल्माः गुल्मविशेषः। मकर-पञ्चेन्द्रियजीवः। प्रज्ञा० ३३।।
जम्बू० ९८१ मकराण्डक- प्रतीतम्। जीवा. १८९| नाट्यविशेषः। जम्बू. | मगधसेणा- लोगत्तरिया कहा। निशी. २५७ आ। ४१४॥
मगधसेना कथाकथको ग्रन्थः। व्यव. ११३ आ। मकरिका- भूषणविधिविशेषः। जीवा० २६८१
मगधा- जनपदः-यत्र कुचिकणे धनपतिः। आव० ३४॥ मुकुन्दः- मरूजवाद्यविशेषो योऽभिलीनं प्रायो वादयते। मगधाविसओ- मगधाविषयः यत्र पुष्पशालगाथापतिः। जीवा० २६६।
आव० ३५५ मक्कड- मर्कट:-प्रदवेषः दृष्टान्तः। आव०४०५ मर्कटः। | मगधाजणवय- मगधाजनपदः यत्र शिवो राजा। आव० आव०४१७ कोलिकः। बृह. १६६। मर्कटः-सूक्ष्म
३५६ जीवविशेषस्तेषां सन्तानः। आचा० ३२२१
मगरंडग-जलचरविशेषाण्डकम्। जम्बू. ३१| मक्कडासंताणा- मर्कटकसन्तानः-कोलियकः। आचा० मगर- मकरो-स्थूलदेहो जलजन्तुविशेषः। आव० ८१९। ३२२। मर्कटसन्तानः-कोलिकजालम्। आव० ५७३। मकरः। प्रज्ञा० ४३। मकरः-जलचरविशेषः। उत्त० ६९९। मर्कटसन्तानकः-लूतातन्तुजालम्। आचा० २८५) मकर:- मकर इव मकरो जलविहारित्वाद्धिवरः। प्रश्न मर्कटसन्तानकः। आचा० ३२२
३७। राहोः षष्ठं नाम। भग० ५७५। मकरः-राहदेवस्य मक्कार- मा इत्यस्य-निषेधार्थस्य करणं अभिधानं- षष्ठं नाम। सूर्य० २८७। मकरःमाकारः दवितीया दण्डनीतिः। स्था० ३९९। दवितीया सुण्डामकरमत्स्यमकरभेदभिन्नो जलचरविशेषः। दण्डनीतिः। स्था० ३९८१
प्रश्न.७ मकरः-ग्राहः। ज्ञाता० १६५ मक्कोड- मर्कोटकः। ओघ. १८४/
मगरपुट्ठ- मकरपुष्टिः । आव० ८१९। मक्खणं- बहणा मक्खणं। निशी. १८८ अ।
मगरासणं- मकरासनं-यस्याधोभागे नाना स्वरूपा मक्खिओ- मक्षितः। आव० २२७।
मकराः। जीवा. २००५ मक्खियं-महणो बीओ भेओ। निशी. ९६ आ। मेक्षितं- | मगरिआ- मकरिका-मकराकारआभरणविशेषः। जम्बू. उदकादिना संसृष्टम्। प्रज्ञा० १५४। म्रक्षितं
१०५ सचित्तपृथिव्यादिनाऽवगुण्डितम्, द्वितीय एषणदोषः। | मगरिमच्छ- मत्स्यविशेषः। प्रज्ञा०४४। पिण्ड० १४७
मगसिर- तृतीयनक्षत्रः। स्था० ७७ मक्खेत्ति- बहुणा मक्खण| निशी० ११६ आ। मगसिरा- चतुरिन्द्रियजन्तुविशेषः। जीवा० ३२॥ मक्षिका- सम्पातिमजीवविशेषः। आचा. ५५
मगसीसावलिसंठिते- मृगशीर्षावलिसंस्थितः। सूर्य. १३०| संमछेनजीव-विशेषः। दशवै. १४१।
मगह- मगधः-जनपदविशेषः। प्रज्ञा० ५५ जनपदविशेषः। मक्षिकापदं- मणिलक्षणभेदः। जम्बू. १३८
भग०६८० मखः- अध्वरः, वेपः, वेषः वेदाः, वितथः यागपर्यायः। मगहग- मगधकम्। ओघ०५५ उत्त० ५२५
मगहविसया-उदायनस्स रहुँ। निशी. १४५अ। मगदंति-मोग्गरति मगदंति पप्फा| निशी. १४१ आ। मगहसिरी- मगधश्रीः-अप्रमादविषये राजगृहे राज्ञो जरासमगदंतिआ-मगदन्तिका-मेत्तिका, मल्लिका वा। दशवै. ङ्घस्य सर्वप्रधाना द्वितीया गणिका। आव०७२१। १८५
मगहसुंदरी- मगधसुन्दरी-अप्रमादविषये राजगृहे राज्ञो मगदंतिय- मुद्गरका पुष्पम्। बृह. १६२आ।
जरा-सङ्घस्य सर्वप्रधाना प्रथमा गणिका। आव०७२१५
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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