Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 44
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] ८४४। भृङ्गागरः-मत्तकरिमहाम्खाकृतिसमानं भृङ्गारम्। भिक्ख-भिक्षा। उत्त०५३०| भिक्षाणां समूहो भैक्षम्। जीवा० २५४। भृङ्गारम्। जीवा० २५४। भृङ्गारः स्था० ४५२ वादयविशेषः। आव० १२२ भृङ्गारः-कनकालुका। भिक्खकरो- ओदणं। निशी० ३२८ अ। जम्बू० २६२। भृङ्गारः-कनकालुषा। जम्बू० १०१। भिक्खा- भिक्षा-तुच्छमविज्ञातं वा। औप० ३९। आव० भृङ्गारः-जलभाजनविशेषः। जम्बू. १८३। कलशः। आव०६९। पक्षिविशेषः। ज्ञाता०६९। भिक्खाए- भिक्षामत्ति-अकति वा भिक्षादो भिक्षाकः उत्त. भिंगारए- भृङ्गारकः-कनकालकः। जम्बू०५६। २५१, २९४१ भिंगारओ-भृङ्गारकः। जीवा० २१३। भिक्खागकुल- भिक्षाककुलं-भिक्षणवृत्तिः। स्था० ४२०| भिंगारकलस-भृङ्गारकलशः। जीवा. २४८१ भिक्खागा- भिक्षाटाः-साधवः। आचा० ३५६। भिक्षणभिंगारग- भृङ्गारकः, पक्षिविशेषः। ज्ञाता०६७। शीला-भिक्षुकाः साधवः। आचा० ३३५। भिक्षणशीला, पक्षिविशेषः। भृङ्गारिका च, या रसति निशिभमौ भिक्षणधर्माणो भिक्षणे साधवो वा भिक्षाकाः। स्था० व्यङ्गुलशरीरेत्येवंल-क्षणा। प्रश्न० 1 १८६। भिक्षाकाः-गौरीपुत्राः। जम्बू० १४२। भिक्षामटन्तिभिंगिरिडी- भृगिरिटिः-चतुरिन्द्रियजीवभेदः। उत्त. भिक्षाटाः भिक्षणशीलाः साधवः। आचा० ३५५। ६९६। भिक्खाणिज्जोग्ग- पडलापत्तगबंधो। निशी. ३५७ अ। भिंडमओ- भिण्डमयः। आव० ३९७। भिक्खाणियं- आहारं। निशी० ३२७ अ। भिंडिमाल-भिण्डिमालः-प्रहरणविशेषः। जीवा० १०८ भिक्खातरित- भिक्षार्थं चर्या-चरणमटनं भिक्षाचर्याभिण्डिमालः। प्रश्न. २१। भिण्डिमालम्। औप०७१। वृत्तिसं-क्षेपरूपा। स्था० ३६४| भिन्दिपालाः-हस्तक्षेप्याः महाफला दीर्घा भिक्खाभायण-भिक्षाभाजनमिव भिक्षाभाजनं तदस्माकं आयुधविशेषाः। जम्बू. २०६। भिक्षोरिव निर्वाहकारणमित्यर्थः। ज्ञाता०१८७ भिडिमालग्गं- भिण्डिमालाग्रम्। जीवा. १०७ भिक्षाभाजनम्। आव० ३७३। भिडियालिंग- अग्नेराश्रयविशेषः। जीवा० १२३ भिक्खायर-भिक्षाचरः। आव. २२२१ भिंद-भेदनं-वैधीभावोत्पादनम्। दशवै. २२८। भिंद- भिक्खायरिय-भिक्षाचरिकः-वृत्तिसंक्षेपः। औप. ३७) कुन्ता-दिना भेद विधेहि। ज्ञाता० २३८५ भिक्खायरिया- भिक्षाचर्या। उत्त०६०६। भग० ९२११ भिंदति-भिन्दति व्यभिचरति। प्रश्न० ८६। भिक्षानिमित्तं विचरणम्। ज्ञाता०१८८ भिदिय-विदार्य। भग०६५४१ भिक्खायरियाभग्ग-भिक्षाचर्याभग्नः-भिक्षाटनेन भिंभि- ढक्का। स्था० ४६१। निर्विण्णः। आव० ५३७ भिभिसार-भिमि-ढक्का सा सारो यस्य य भिभिसारः।। भिक्ख:- भिक्षुः-मतविशेषः। आव०८५६। भिक्षुः-श्रमणः। स्था०४५८ भग० १२३। भिक्षु-मिक्षणशीलः भिनत्ति भिउडि- भुकृटिः-कोपविकृतभूरूपा। जम्बू० २०२। भृकुटिः- वाऽष्टप्रकारकर्मेति भिक्षुः। दशवै० ८४। भिक्षुकःदृष्टिरचनावशेषः ललाटे। उपा०२३। भृकुढिः -नयन मतविशेषः। आव०६२७। भिक्षुःललाट विकारविशेषः। प्रश्न०४९। कोपकृतो भूविकारः। आरम्भपरित्यागाद्धर्मकायपालनाय भिक्षणशीलो ज्ञाता० १३८१ भिक्षुः, एवं भिक्षुक्यपि। दशवै० १५२ भक्षुः-अष्टप्रकारं भिउडी- भकटिः- लोचनविकारविशेषः। विपा० ५३ कर्म नां ज्ञानदर्शन चारित्रतपोभि-भिनतीति भिक्षुः। भृकुटी-भृविकारः। ज्ञाता० १४२। आव० ५१४। भ्रक्टी- व्यव० ३९ आ। भिक्खणसीलो। दशवै. ३३ आ। आवेशवशकृतभृत्क्षेपरूपा। उत्त. १५३ | भिक्खुउत्तमा- भिक्षुत्तम! हे यतिप्रधान ! उत्त० ५३०| भिऊ- भृगः-लोकप्रसिद्धऋषिविशेषः। औप. ९२ भिक्खुउवासगपुत्त- बौद्धोपासकपुत्रः। आव० ८१२। भिक्खंतगो-भिक्षमाणः। आव० ४२११ | भिक्खुओ- भिक्षुकः-सौगतः। बृह० ९०आ। मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [44] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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