Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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भार- पुरुषोत्क्षेपणीयो भारः। जम्बू. १६२ भारः-विंश- पर्यायः। निशी. २३। अ। मोक्खो। दशवै. १४३ आ। त्त्यापलशतैः पुरुषोत्पेक्षीणो भारो भारक इति। स्था० चित्ताभिप्रायः। आचा० १३२ परिणामः। भग० ८९० ४६२ भारः-क्षीरभृतकम्भदवयोपेता कापोती। आव० धर्मः। भग० ७३७। अन्तःकरणम्।उत्त० ३९९, ५६३। ७७०| भारकः-पुरुषोद्वहनीयो विंशतिंपलशतप्रमाणो भावः। नन्दी. २२७। भावंवा। भग० ६९१। भारः-विंशतितुलाप्रमाणः। अनुयो. इन्दनक्रियानुभवनलक्षणपरिणाममाश्रित्येन्द्र इन्दन१५४| भारः-गुरुताकरणम्, परिग्रहस्य सप्तदशमं नाम। परिणामेन वा भवतीति भावः। स्था० १०३। मनः। स्था. प्रश्न.९२
१९६। आन्तरपरिणामः। उत्त०७०८ स्वरूपम्। आव० भारए- भारतः सूर्य २०
१८१। युक्तार्थस्वादिको गुणः। अनुयो० १४८॥ भारकाय- भारः-क्षीरभृतकुम्भद्वयोपेता कापोती, स चासौ अभिप्रेतः। परकीयाभिप्रायः। अनुयो० ४९। भावःकायश्च, कापोती एव वा। आव०७६७। कापोती। दशवै. पर्यायः। प्रज्ञा० ५९। भग० १४८ चित्तसमुद्भवः। ज्ञाता० १३५
१४४| भावः-बह्वर्थः, द्रव्यवाचकः, शुक्लादिवाचकः, भारग्गस- भाराग्रशः-अनेकविंशतितुलापरिमाणानि। औदयिकादिष्वपि वर्तमानः कर्मविपाकलक्षणश्च। जम्बू. १६२। भारपरिमाणतः। ज्ञाता० १२६|
दशवै०६९। सत्तापरिणामः। भग०७६०। अस्तिकायः। भारती- भरतस्त्री। जीवा०६०।
दशवै ७०| जगतीवर्षवर्षधरायास्त-दग्रतपदार्थाः। भारद्दा- गोत्रविशेषः। स्था० ३९०
जम्बू. १८ भावनास्तम्भादीनामपि तद्बभारद्दाजं- भारद्वाजं-मृगशिर्षगोत्रम्। जम्बू. ५००|
ध्याऽऽलिङ्गनादिचेष्टा, असम्प्राप्तकामभेदः। दशवै. भारद्दायसगोत्त-भारद्वाजसगोत्रम्। सूर्य. १५०/
१९४| भावः-अभिप्रायः, प्रार्थना। दशवै. ९७। भावःभारवह- गर्दभादिः । ओघ० २२७।
मोक्षः। दशवै. २५८ औदयिकः प्रज्ञा० २४६। भावःभारवहा- पोट्टलिया। निशी. ३७ अ।
ओघ०७३। भूयिष्ठशुक्लादिपर्यायः। स्था० ४९० भारह- भरतः ज्ञाता० ११, १२४।
अनुभागलक्षणं कर्मणः पर्याय भारहर- भारं धरतीति भारधरः। उत्त० ३६२।
चतुःस्थानिकत्रिस्थानिकादिरसम्। उत्त०६४५। इति भारही- भारो अत्थो तं अत्थं धारयतीति। दशवै. १०२ द्रव्यादिको भावः। निशी० ८ अ। पर्यायः क्रमवर्ती। भारिय- महत्। निशी. १५६अ।
औप० ११७। परमार्थः। उत्त० ५५५। जम्बू०८। उत्त. भारिया- भारिका-'दुर्निवाह, भार्या। पश्न ०३९। ज्ञाता० ५४९। भवनं भावः-वक्तुमिष्ट-क्रियानुभवलक्षणः। १५२
पर्यायः। आव० ५। प्रतिबन्धः। बृह० २४१ आ। भावःभारुंड- भारुण्डपक्षिणोः किलैकं शरीरं पृथग ग्रीवं त्रिपावं च | अभिप्रायः। सूत्र. २३९। भावः-पर्यायः। उत्त. २०३। भवति। स्था० ४६४१
भावः-परमार्थः। आव. २७। भावः-आत्मपरिणामभारुंडपक्खी-भारण्डपक्षी- चर्मपक्षिविशेषः। जीवा० ४१। लक्षणः। आव० ३६६। भावलिङ्गोपलक्षणार्थः। आव. भालिय-भारिय-भृतम्। बृह. २८७ अ।
५२७। भावपरिहरणा, परिहरणाया अष्टमो भेदः। आव. भावंग- भावाङ्ग-श्रुतनोश्रुतभेदभिन्नम्। उत्त० २८७ अ। ५५२ भावः-सद्भावः। नन्दी०५३। भाव- भावः-पदार्थः। आव०४४५, ६०९। भावः-आदर्श-पक्षे भावकड-भावकृतं-द्रव्यादिभिर्भेदः सूत्रे विहितम्। ब्रह. नयनमुखादिधर्माः साधुपक्षे अशठतया मनःपरिणामः। १३२। औप० ३६। भावः-चित्तम्। प्रश्न० ३०। भावः
भावकसाए- भावकषायाःचित्तसंभवः। प्रश्न० १४०। भावः-अन्तःकरणवृत्तिः। शरीरोपधिक्षेत्रवास्तुस्वजनप्रेष्या-र्चादिनिमित्ताविर्भूताः प्रश्न. ९८ भावः-सत्ता। प्रज्ञा० ३७१। भावः-पदार्थः शब्दादिकामगणकारणकार्यभूतकषायपर्यायः। प्रज्ञा० ११० भावः-जातो पृवचनम्। प्रज्ञा० कर्मोदयात्मपरिणामविशेषः। क्रोधमानमायालोभाः। २५१। वस्तु वस्तुधर्मो वा। ज्ञाता० १७७। भवनं भावः- | आचा० ९१|
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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