Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
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तत्त्वार्थश्रद्धानलक्षण-सम्यग्दर्शनरूपां ददातीति प्रतिसेवना, विराधना, खलना, उपघातः, अशोधिः। बोधिदः। जीवा० २५६।
ओघ० २२५। भङ्गः-वस्तु विकल्प। अवधिभेद। भग. बोहिय-बोधितः उन्निद्रीकृतः। जीवा० २७१। बोधिकः- ३४४क्रमस्था-नभेदभिन्नाः । आव० ५९६)
स्तेनकः। आव० ७८४। म्लेच्छः। व्यव० १८५। आ। भंगसुहम- भङ्गा-भङ्गका वस्तुविकल्पाः तानि एव बोहिया- बोधिकाः-मालवस्तेता। बृह. १३४ अ।
सूक्ष्मम्। स्था० ४७७, ४७८१ बोहिलाभ- बोधिलाभः-जिनप्रणीतधर्मप्राप्तिः। आव. भंगा-अतसी। स्था० ३३८१ ७८७। प्रेत्य जिनधर्मप्राप्तिः । आव. ५०७
भंगिए-अतसीमयं वस्त्रं भाङ्गिकम्। बृह. २०१ अ। बोहिलाभवत्तिया- बोधिकाभप्रत्ययं-बोधिलाभनिमित्तं | भंगित-अतसी तन्मयं भागिकम्। स्था० ३३८१
प्रेत्य जिनप्रणीतधर्मप्राप्तिनिमित्तम्। आव० ७८६) अतसीम-यम्। स्था० १३८१ बोही- बोधिः-जिनधर्मप्राप्तिः। दशवै. १९०| बोधिः- भंगिय- नानाभगिकविकलेन्द्रियलालनिष्पन्नः। आचा० प्रव्रज्या। पिण्ड० १००| बोधिः-सर्वज्ञधर्मप्राप्तिः ३९३॥ भङ्गी-भङ्गबहुलं श्रुतम्। नन्दी० ५०| अहिंसारूपत्वाच्च तस्याः अहिंसा बोधिरुक्ता। अहिंसा- | भंगियसय-भगिकश्रुतं- दृष्टिवादान्तर्गतमन्यवा। अनुकम्पा सा च बोधिकारणत्वाबोधिरेव वा।
आव०७७६) अहिंसायाः षोडशं नाम। प्रश्न. ९९। बोधिः
भंगी-भङ्गी-वनस्पतिविशेषः। प्रज्ञा० ३६४। भङ्गाःजिनधर्मावाप्तिः औत्पत्तिक्यादिबुद्धिर्वा। भग० १०० जनप-दविशेषः। प्रज्ञा०५५ बोधिः-जिनप्रणीतधर्मप्राप्तिलक्षणा। उत्त. १८८1 साधारणबादरवनस्पतिकायविशेषः। प्रज्ञा० ३४| जिनप्रणीतधर्मप्राप्तिः। जीवा० २५६। बोधिः
भंगीरए- भङ्गीरजः-वनस्पतिविशेषः रजः। प्रज्ञा० ३६४। धर्मावाप्तिः। प्रज्ञा० ३९९। बोधिः-सामायिकम्। आव. | भंगुर- भगुरा-भुग्ना। जम्बू०१११। ३४७
भंजगा- भजगा-वृक्षाः। आचा० २३४। ब्रह्म-योगदवारविवरणे कृष्णाबेन्नानदयोरन्तराले भंजणं-विद्धंसणं| निशी० २३० आ। द्वीपः। पिण्ड० १४४
भंजणा-भञ्जना-विनाशः। आव० ५४५) ब्रह्मदत्त-कम्पिलपरे राया। निशी० ११३आ। व्यव० | भंजित्तए- भक्तुं सर्वतः। ज्ञाता० १३९।
१९८ आ। आचा० ३५। विशिष्टतपश्चरणफलवान्। सूत्र० | भंड- भाण्डं-मृन्मयभाजनम्। भग० २३८, ३९९। अनुयो० २९९। जन्मान्तरभोगनिमित्तं तपः कारकः। दशवैः । १५९। आव० ४१४। भाजनं मन्मयम्। वस्त्राभरणादि। २५७। सति सामर्थ्य प्रासादादिकारयिता। उत्त० ३१२। स्था० १२० वस्त्रारादिकं वस्तपण्यं हिरण्यादि। ज्ञाता० निदानशल्ये यस्य दृष्टान्तः। आव. १७९
६११ भग. ३६८ भाण्डं-मृन्मयं पात्रम्। प्रश्न० १२४। द्वादशमचक्र-वर्ती। स्था० ९९। उत्त० ३१७। बृह० ११० भाण्डं-भाजनं मन्मयादि। भग० ९४। आव. ९१। अलआ।
कारादिः। पिण्ड० १२० भाण्डं आभरणम्। भग० ४६८१ ब्रह्मदत्तकुमार- द्वादशमचक्रवर्ती। नन्दी. १६७।
मृन्मयम्। प्रश्न. १५६। भाण्डं-भाजनम्। प्रश्न. ३९। ब्रह्मराक्षसाः- राक्षसभेदविशेषः। प्रज्ञा० ७०|
भाजनरूपम्। भग०६२११ भाण्डं-उपकरणम्। उत्त. ब्रह्मलोक- देवलोकविशेषः। स्था० २१७, ४३२॥
७११। यानपात्रम्। आव०८२४१ ओघ.१८८1 ब्रह्मशाखा- योगद्वारविवरणे साधशाखाविशेषः। पिण्ड | भंडइ- कलहयति। आव० ६५५ १४४१
भंडओ- भण्डकः। उत्त० १३६| ब्राह्मणी- गोधिकाकारो जीवविशेषः। दशवै० २३० भंडक- कुप्यभेदः। आव० ८२६। ओघ० १६९। ब्राहम्यादिलिपी- लिपिविशेषः। आव. २४।
भंडकरंडग- भाण्डकरण्डकं-आभरणभाजनम्। भग. १२२ -x-x-x-x
भंडग-धर्मोपकरणम्। आचा० ३३३। भण्डकं-भाण्डम्। भ
आचा०४७। उपधिः। ओघ. २०७। भंग- भङ्गः-ब्रह्मव्रतस्य सर्वभङ्गः। प्रश्न. १३८
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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