Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 28
________________ [Type text] आगम-सागर-कोषः (भागः-४) [Type text] भंडचालणं- भाण्डचालनं-भाण्डादीनां-पीठरकादीनां पण्या- | भंडागारा- हिरण्णसुवण्णभायणं। निशी० २७२ आ। दीनां वा तत्र गृहस्थस्थापितानां साध्वर्थ चालनं | भंडारा-तुन्नाकविशेषः। प्रज्ञा० ५६। स्थानान्त-रस्थापनम्। प्रश्न. १२७) भंडालंकार-भाण्डालङ्कार, अलङ्कारभाण्डं, भंडण-कलहः। ओघ० १४८१ आव० ५१५। आचा० १०६) आभरणकरण्ड-कम्। जम्बू० २१७। भण्डनं-कायिकम्। प्रश्न. ९७। भण्डणं-कलहः परस्परं भंडिओ- भण्डकः। उत्त० १३६| हस्तस्पर्शजनितः। ओघ. ९११ भाण्डनं-क्लेशः भंडिति- भण्डकः। उत्त० १३६। भण्डयितुम्। आव०७११। कलहो। निशी. १३ आ। भंडिय-भण्डिकाः-स्थाल्यः। स्था०४१९। भग० ८०२ कलहो, विवादो। निशी. ३५अ। भंडिया- पडिचरगा। निशी. ११ अ। भण्डिकाःभंडणसीलो- भण्डनःशीलः। उत्त० ३५५। रन्धनादिभाजनानि। भग०६६४। भंडणाभिलासी-भण्डनं पिष्टातकादिभिः। ज्ञाता० २२० | भंडिवडेंसिए- मथुरानगरर्यामुयानम्। ज्ञाता० २५३। भंडत- कलहायमानः। आव० ३०५ कलहयन्। आव० ३९७ | भंडी- असती, कुलटा, गन्त्री। ओघ० १४२। भण्डीगन्त्री। उत्त० १३६| प्रश्न. ३९। आव० १९८१, ३५८१ गण्डी। निशी. ३७ अ। भंडभारिए- उपकरणेन गुरुः। आचा० ३७९। गड्डी। निशी. १८७ अ। गन्त्री प्रथमः सार्थः। बहिलकाः भंडमत्त-भाण्डमात्रा-उपकरणपरिच्छिदः। भग० १२२ करभीवेसरबलीवर्दप्रभृतयः। बृह० १२५ अ। भाण्डमात्रः-उपकरणमात्रः। जम्बू. १४८ भाण्डमात्रा- भंडीर-भण्डीरं-मथुरायाम्दयानम्। विपा० ७० प्रहरणकोशादिरूपा। भग० ३२२ भाजनरूपः परिच्छिदः | भंडीरमणजत्ता-भंडीरमणयात्रा। आव० १९८१ भग०७५०| पणितपरिच्छदः। भग०६७३। भंडीरवण- चक्षुरिन्द्रियोदाहरणे मथुरायां चैत्यविशेषः। गणिमादिद्रव्यरूपः परि-च्छदः। भग० ९४। आव० ३९८१ भंडमत्तोवगरण-भाण्डमात्रोपकरणं-हारार्द्धहारकुण्डलादि। | भंडीसुणए- गन्त्रीवा। आव० २००१ जीवा० ४०६। भंडु- मुण्डनम्। आव० ६२६। खुरो। निशी० ३५अ। भंडमोल्ल-भाण्डमूल्यम्। आव० ३५४। भंडुग्गा-धणा जत्थ भिज्जति तं। निशी० ७० आ। भंडय-भाण्डकं-मुखवस्त्रिकाकल्पादि। उत्त० ५३६। भंडोवक्खरं- भाण्डोपस्करम्। आव० ८२९। भाण्डकं-प्राग्वर्षाकल्पादि उपधिम्। उत्त० ५४० भंडोवगरणं- भाण्डोपकरणं-पात्रवस्त्रादिकम्। आव० ५७६) भाण्डकं-उपकरणं रजोहरणदण्डकादि। उत्त०५१७ भंत-भ्रमणं भ्रान्तं। इतश्चेतश्च गमनम्। दशवै.१४१५ पतग्रहाद्युप-करणम्। उत्त०५३६| भ्रान्तः-भग्नः। आचा० २५४। भंडवाल-भाण्डपालः-परकीयानि भाण्डानि भाटकादिना | भंतसंभंत- भ्रान्तो भ्रमप्राप्तः स इव यत्राद्भुतचरित्रदशनेन पालयति। उत्त०४९५) पर्ष-ज्जनः सम्भ्रान्तः-साश्चर्यो भवति तत् भंडवेआलिए- भाण्डविचारः कर्मास्येति भाण्डवैचारिकः। भ्रान्तसंभ्रान्तम्। जम्ब०४१८ भ्रान्तसंभ्रान्तंअणु० १४९। दिव्यनाट्य विधिः। जम्बू० ४१२। भंडवेयालिया- कर्मार्यभेदविशेषः। प्रज्ञा० ५६| भंते- भदन्त ! वर्द्धमानस्वामिन्। प्रज्ञा० ५६२| भयान्त ! भंडसाला- पुव्वभायणातो अण्णम्मि भायणे वर्द्धमानस्वामिन् ! प्रज्ञा० ५६२। भदन्ते-भदन्तः-कल्यासंकामिज्जति भंडशाला। निशी. १४१ अ| घटकरकादि- | णस्य सुखस्य च हेतुत्वात् कल्याणः सुखश्चेति भजतेसंगो-पनस्थानम्। बृह. १७५ अ। जहिं भायणाणि सेवते सिद्धान् सिद्धिमार्ग वा अथवा भज्यते-सेव्यते संगोवि-याणि अच्छंति। निशी. २१ आ। शिवार्थिभि-रिति भजन्तः, भाति-दीप्यते भाजते वाभंडा- गच्छाविशेषः। प्रज्ञा० ३२ लासगा। निशी. २७७ । । दीप्यते वा दीप्यत एव ज्ञानतपोगणदीप्त्ये भान्तो भंडागार-जत्थ सोलसविहाइं रयणाइं। निशी. २७२ आ। भ्राजन्तो वेति। भ्रान्तः-अपेतो मिथ्यात्वादेः, भंडागारवती-भाण्डागारपतिः। आव० ८२६। तत्रानवस्थित इत्यर्थः, इति भ्रान्तः, भग-वान मुनि दीपरत्नसागरजी रचित [28] "आगम-सागर-कोषः" [४]

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