Book Title: Agam Sagar Kosh Part 04
Author(s): Deepratnasagar, Dipratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम-सागर-कोषः (भागः-४)
[Type text]
आ
भतीया- भृतिका कर्मकरी। व्यव. १९५अ।
व्यवच्छेदः-निरोधोडदानमित्यर्थः। आव०८१८ भत्त-भक्तः-'भज सेवयां इत्यस्य निष्ठान्तस्य भवति। | भत्तपाणसंकिलेस- भक्तपानाश्रितः सङ्कलेशो दशवै०७२। भक्तं-भोजनम्। अनुयो० १५४। अशनं- भक्तपानसक-लेशः। स्था० ४८९।
ओदनादि। आव०८१९। अशनं-अन्नम्। ओघ०११। भत्तपाणोयरया- भक्तपानोदरताभत्तकरण-भक्तकरणं-ओदनादिरन्धनम्। आचा. ५० आत्मीयाहारादिपरित्यागवतो वेदितव्या। दशवै० २७ भत्तकहा- भक्तकथा-ओदनादीनां प्रशंसनं दवेषण वा। भत्तवेला- भक्तवेला-भोजनसमयः। दशवे. १०८
आव. ५८१। भक्तस्य-भोजनस्य कथा भक्तकथा। भत्ति-भावप्रतिबन्धः। ओघ० ९८। बाह्या परिजुष्टिः। स्था० २०९। भक्तकथा-सुन्दराः शाल्योदन इत्यादिका। भग. ९२७। भृति-मूल्यम्। व्यव० २२७ अ। भक्तिःदशवै०११४॥
अञ्ज-लिप्रग्रहादिका। उत्त० ५७९। भक्तिःभत्तट्ठ- भक्तार्थ:-उदरपरणमात्रम्। ओघ०८६
विच्छित्तिः। राज०२८ भक्तिः-विच्छित्तिः। भग. भत्तद्वणं- भोजनम्। बृह. ५८ अ।
१४५ भत्तहिअ-भुक्त्वा। ओघ० ८७। बहिरेव भुक्ताः। ओघ. भत्तिगिह- भक्तिगृहम्। जीवा० २६९। ७९
भत्तिचेइयं- भक्तिचैत्यं-भक्त्या मनुष्यैः पूजा भत्तट्ठिया- भक्तार्थिका-भक्ता। ओघ. १९९।
वन्दनादयर्थं कृतं कारितं तद्भक्तिचैत्यम्। व्यव० २७६ भत्तपच्चक्खाइया- प्रत्याख्यातभक्ता। आव० ३९३। आ। भत्तपच्चतक्खाण-भक्तप्रत्याख्यानम्। आव० ११६ | भत्तिज्जओ- भ्रातृव्यः। आव० ८२४। भक्तं-भोजनं तस्यैव न चेष्टाया अपि पादपोपगमन इव भत्तिम- भक्तिमन्तं-अन्तरप्रतिबन्धोपेतम्। बृह. २४९। प्रत्याख्यानं वर्जनं यस्मिंस्तदभक्तप्रत्याख्यानम्। भत्तिराग-भक्तिरागः-भक्तिपूर्वकोऽनुरागः। राज०२७। स्था. ९४१
भत्ती- भक्तिः -विच्छित्तिविशेषः। जीवा० १७५। सूर्य भत्तपच्चक्खाणमरण- भक्तस्य-भोजनस्य यावज्जीवं २६३। प्रज्ञा. ९९। भक्तिः -अन्तःकरणप्रणिधानलक्षणा। प्रत्या-ख्यानं यस्मिंस्तत्तथा, इदं च त्रिविधाहारस्य आव० ५०९। भक्तिः -विच्छित्तिः । जीवा० १९९, २०९, चतुर्विधाहारस्य वा-नियमरूपं सप्रतिकर्मच
३७९। जम्बू० २९२। भग० ४७७। ज्ञाता० ४२। भक्तिःभक्तपरिज्ञया मरणम्। सम० ३३
अभ्युत्थानादिरूपा। उत्त०१७। भक्तिः-उचितोभत्तपच्चखाय- प्रत्याख्यातभक्तः। आव०६३८५
पचाररूपा। दशवै. २४२। भक्तिः नाम भत्तपरिणा-भक्तप्रत्याख्यानम्। ओघ. २२७।
गुरुणामितिकर्तव्य-तायां निषदयारचनादिकायां बाह्या भक्तपरिज्ञा प्रत्याख्यानवाची। व्यव० १४३ आ। प्रवृत्तिः । बृह. १३३ भत्तपरिणा- भक्तपरिज्ञा। आव० ५६३।
भत्तीए-भाडएणं। निशी० ६३अ। भक्तपरिज्ञामरणं-मरणस्य पञ्चदशो भेदः। उत्त. भत्था- निपातः कुत्सार्थे। बृह. २९ आ| ध्मानखल्ला। २३०| भक्तपरिज्ञा-अनश-नविधिः। भग० १६९।
भग०६९७। भत्तपरिन्ना- भक्तपरिज्ञा
भदंत-भदन्त। गुरोरामन्त्रणम्, भदन्त । भवान्त । त्रिविधचतुर्विधाहारविनिवृत्तिरूपा। दशवै० २७।
भयान्त । दशवै० १४४। भक्तस्य परिज्ञा-भक्तपरिज्ञा-अनशनम्। आचा० २६१। | भद्द- भाति भदन्ते वा भद्रः-कल्याणावहः। उत्त०६२ भत्तपरिव्वय-भक्तपरिव्ययः। दशवै०१०७
भद्रः-जितशत्रुराजकुमारः। उत्त० १२२। सम० १५२। भत्तपाणपडियाइक्खिय-प्रत्याख्यातभक्तपानः। भग. स्था० ४५३। भद्रकः-साधूनां मध्ये भद्रप्रकृतिकः। ओघ० १२७
४७। भद्रः-तृतीयबलदेवः। आव० १५९। महा-शुक्रकल्पे भत्तपाणवुच्छेए- भक्तपानव्यच्छेदः अशनपाननिरोधः। देवविमानम्। सम० ३२१ भद्रं-अतिप्रशस्यम्। जीवा० भक्तं-अशनमोदनादि पानं-पेर
कादि तस्य च
१६४। दवितीयचक्रवर्तिनः स्त्रीरत्ननाम। सम० १६२
मुनि दीपरत्नसागरजी रचित
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"आगम-सागर-कोषः" [४]

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