Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुधा टीका स्था० १ उ० १ सू० ३३-३४ वेदनादिनिरूपणम् एकत्वं बोधसामान्याद् बोध्यम् । 'एगा' इति आपत्त्वात्-स्त्रीत्वम् । सू० ३१ ॥
पूर्व सामान्यकर्मानुभवरूपा वेदना मोक्ता, सम्पति विशेषकर्मानुभवलक्षणां तामाह--
मूलम्—'एगा येयणा' ॥ सू० ३३ ॥ छाया--एका वेदना ॥ सू० ३३ ॥ व्याख्या---' एगा वेयणा' इति ।
वेदना-पीडारूपा, सा चैका । एकत्यं च पीडासामान्यमाश्रित्य बोध्यम् ॥ मू० ३३ ॥ सम्पति पीडाया एव कारण विशेषमाह
मूलम्-'एगे छेयणे ॥ सू० ३४ ॥ वह विज्ञ बोध सामान्य की अपेक्षा से एक कहा गया है " एगा" ऐसी जो स्त्रीलिङ्गता इसमें कही गई है वह आर्ष होने की अपेक्षा से कही गई है ॥ सू० ३२॥
सामान्यरूप से कर्मों का अनुभव करना इसका नाम वेदनाहै ऐसा पहिले कह दिया गया है अब विशेषरूप से कर्मों को अनुभव करने रूप जो वेदना है उसका कथन किया जाता है।
'एगा वेयणा' इत्यादि ॥ ३३ ॥ मूलार्थ-वेदना एक है।३३।
टीकार्थ-पीडारूप परिणति का नाम वेदना है यह पीडारूप वेदना पीडासामान्य की अपेक्षा एक है ऐसा जानना चाहिये ॥३३॥
पीडा के कारणविशेष का कथन किया जाता है।
'एगे छेयणे' इत्यादि ॥ ३४॥ न्यनी अपेक्षा मे मे ४ह्यो छे तने “ एगा" मे नारी तिनु ३५ मा હોવાની અપેક્ષાઓ આપવામાં આવ્યું છે. એ સૂ૦૩૨
સામાન્ય રૂપે કર્મોનું વેદન કરવું તેનું નામ વેદના છે, એવું પહેલાં કહેવામાં આવી ચૂક્યું છે. હવે વિશેષરૂપે કર્મોનું વેતન કરવારૂપ જે વેદના छ, तेनु नि३५६५ ४२वामा मा छ--
"एगा वेयणा" त्याहि ॥ 3 ॥ सूत्रार्थ--२हना छ. ॥33॥
ટીકાર્થ–-પીડારૂપ પરિણતિને વેદના કહે છે. તે પીડારૂપ વેદના પીડા સામાન્યની અપેક્ષાએ એક છે, એમ જાણવું. છે ૩૩ છે
હવે પીડાનાં કારણુવિશેનું નિરૂપણ કરવામાં આવે છે-- "एगे छेयणे" याहि ॥ ३४ ॥
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧