Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 673
________________ सुधा टीका स्था०३ उ० १ ० १९ योनिस्वरूपनिरूपणम् ६५७ वंसीपत्तियाणं जोणी पिहज्जास्स । वंसीपत्तियाए णं जोणिए बहः पिहजणा गम्भं वक्रमति ॥ सू० १९ ॥ ___छाया-त्रिविधा योनिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-शीता, उष्णा, शीतोष्णा । एवमेकेन्द्रियाणां विकलेन्द्रियाणां तेजस्कायिकवर्जानां समूच्छिम पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकानां संमूच्छिममनुष्याणां च । त्रिविधा योनिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-सचित्ता, अचित्ता, मिश्रका एवमेकेन्द्रियाणां विकलेन्द्रियाणां संमूच्छिमपच्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां समूच्छिममनुष्याणां च । त्रिविधा योनिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-संवृताविता संवृत जीवपर्याय के अधिकार को लेकर अब सूत्रकार योनि के स्वरूप का कथन करते हैं-(निविहा जोणी पण्णत्ता) इत्यादि। सूत्रार्थ-योनि-जीवों का उत्पत्ति स्थान तीन प्रकार की कही गयी है जैसे शीतयोनि, उष्णयोनि, और शीतोष्णयोनि यह योनि तेजस्कायिक वर्ज एकेन्द्रियोंको, विकलेन्द्रियोंको, समूच्छिमपंचेन्द्रियतियचोंको और संमूच्छिममनुष्योंको होती है। इस प्रकार से भी योनि तीन प्रकार की कही गई है-सचित्त, अचित्त और मिश्र यह योनि एकेन्द्रियों को, विकलेन्द्रियों को, समूच्छिमपंचेन्द्रियतिथंच योनियोंको और समूच्छिम मनुष्यों को होती है। तथा इस प्रकार से भी योनि तीन प्रकार की कही गई है-संवृत, विवृत, और संवृतविवृत यह योनि देव, नारक, एकेन्द्रिय, गर्भजपंचेन्द्रिय तिर्यञ्च और मनुष्य, विकलेन्द्रिय, अगर्भज पंचेन्द्रिय मनुष्य और तिर्यच । अथवा-कूर्मोन्नत, शङ्खावर्त और જીવપર્યાયના અધિકારની અપેક્ષાએ હવે સૂત્રકાર એનિના સ્વરૂપનું કથન ३२ छ-" तिविहा जोणी पण्णत्ता" ध्याह સૂત્રાર્થ–જીના ઉત્પત્તિ સ્થાનને નિ કહે છે. તે કેનિના ત્રણ પ્રકાર કહ્યા छ-(१) शीतयोनि, (२) 3- योनि, मने (3) शीतयोनि. ते य સિવાયના એકેન્દ્રિય જીને, વિકસેન્દ્રિય જીવોને, સંભૂમિપંચેન્દ્રિય તિર્યચાને અને સંમૂર્ણિમ મનુષ્યને આ નિ હોય છે. યોનિના નીચે પ્રમાણે प्रा२ ५५५ ५ छ-(1) सथित्त, (२) मथित्त भने (3) मिश्र. । ચેનિને એ કેન્દ્રિમાં, વિકલેન્દ્રિમાં, સંમૂછિમ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ યુનિ. કેમાં અને સંમૂર્ણિમ મનુષ્યમાં સદ્ભાવ હોય છે. યોનિના નીચે પ્રમાણે ત્રણ ४।२ ५४ ५७ छ-(१) सक्त, (२) विकृत माने (3) सवृतविकृत. या योनिन। સદુભાવ દેવ, નારક, એકેન્દ્રિય, ગજ પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ અને મનુષ્ય, વિકલેન્દ્રિય, અગર્ભજ પંચેન્દ્રિય મનુષ્ય અને તિર્યંચમાં હેય છે. स ८३ શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧

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