Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुधा टीका स्था० २ उ०१ सू
द्वैविध्यनिरूपणम्
छाया - द्विविधः कालः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - अवसर्पिणी कालश्चैव, उत्सर्पिणीकालश्चैव द्विविध आकाशः प्रज्ञप्तः, तद्यथा - लोकाकाशश्चैव अलोकाकाशश्चैव ॥ सू०१८॥ टीका - दुविहे काले इत्यादि ।
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कल्यते = परिच्छिद्यते ज्ञायते वस्त्वनेनेति कालः, कलन वा कालानां समयादि रूपाणां समूहो वा कालः- वर्तनादिरूपः 'वट्टणा लक्खणो कालो' इति वचनात् । स चावसर्पिण्युत्सर्वगीभेदेन द्विविधः । जगति महाविदेहादिभोगभूमिषु सदाऽवस्थितलक्षणस्तृतीयोऽपि कालो वर्त्तते तथाऽप्यत्र द्विस्थानकानुरोधाद् द्विविध एव कालः
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द्रव्य का स्वरूप कहा जा चुका है अब द्रव्याधिकार को लेकर के ही द्रव्यविशेषरूप काल और आकाश की प्ररूपणा सूत्रकार करते हैंदुविहे काले पण्णत्ते " इत्यादि ।
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वस्तु जिसके द्वारा नवीन पुरानी होती हुई जानी जानी है उस का नाम का है अथवा कलन का नाम काल है या समयादिरूप कलाओं का नाम काल है यह काल वर्तनादिरूप होता है तात्पर्य इसका ऐसा है कि काल निश्चय और व्यवहार की अपेक्षा से दो प्रकार का है वर्त्तनादिरूप काल निश्चयकाल और घडी घंटा आदि रूप काल व्यवहार काल है । उक्तं च- दव्य परिवहरूवो " इत्यादि ।
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यह काल उत्सर्पिणी और अवसर्पिणीके भेद से दो प्रकार का कहा गया हैमहाविदेह क्षेत्र में सदा चतुर्थकाल अवस्थित रहता है तथा भोगभूमियों मैं- अकर्मभूमिमें तृतीय आदि काल अवस्थित रहता है इस तरह से दो कालों के अतिरिक्त एक सदा अवस्थितरूप काल भी होता है फिर દ્રવ્યના સ્વરૂપનું કથન સમાપ્ત થયું, હવે સૂત્રકાર અહીં દ્રવ્ય વિશેષ રૂપ કાળની અને આકાશની પ્રરૂપણા કરે છે—
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दु काले पण्णत्ते " ईत्यादि ॥ १८ ॥
વસ્તુ જેના દ્વારા નવીજુની થતી લાગે છે, તેનું નામ કાળ છે. અથવા કલનનું (જાણવું) નામ કાળ છે. અથવા સમયાદિ રૂપ કલાઓનું નામ કાળ છે. તકાળ વર્તનાદિ રૂપ હાય છે. આ કથનના ભાષા એ છે કે કાળ નિશ્ચય અને વ્યવહારની અપેક્ષાએ એ પ્રકારના છે. નાદિ રૂપ કાળને નિશ્ચયકાળ, અને ઘટાઢિ રૂપ કાળને વ્યવહાર કાળ કહે છે. કહ્યું પણ છે કે—
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दव्य परिवहरूव '’ ઈત્યાદિ. આ કાળ ઉત્સિપ્પણી અને અવસર્પણીના ભેદથી એ પ્રકારના કહ્યો છે. મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં સદા ચતુર્થાં કાળ જ અવસ્થિત ( विद्यमान ) रहे छे, तथा लोगलूमियोभां तृतीयाहि क्षण अवस्थित रहे छे.
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૧