________________ भावना जगी और इन्होंने जैनी दीक्षा अंगीकार की। विनय, भद्रता व विद्वत्ता आदि गुणों के कारण मुनि-संघ में भद्रबाह की प्रतिष्ठा निरन्तर बढती ही गई और इन्हें आचार्य पद प्राप्त हआ। इससे वराहमिहिर ने अपनी हीनता अनुभव की / अहंभाव व ईर्ष्या के आवेश में वराहमिहिर ने मुनिवेश त्याग दिया और प्रतिष्ठानपुर के राजा के यहां पहुंचा। राजा का नाम जितशत्रु था, जो वराहमिहिर के विशिष्ट निमित्तज्ञान से प्रभावित हुआ और उसने वराहमिहिर को अपना प्रधान पुरोहित बना लिया। वराहमिहिर ने स्वयं को ज्योतिष विद्या का सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता घोषित किया और वह ईर्ष्यावश आचार्य भद्रबाहु की बढ़ती प्रतिष्ठा को निर्मूल करने के निरन्तर प्रयास करता रहा, किन्तु वह सफल नहीं हो पाया। एक बार आचार्य भद्रबाह का प्रतिष्ठानपर में पदार्पण हआ। जनता में उनका प्रभाव बढ़ता गया। इधर वराहमिहिर की भविष्यवाणी क्रमशः असत्य होने लगीं। वराहमिहिर ने अपने पुत्र के शतायु होने की भविष्यवाणी की। इधर आ. भद्रबाहु ने भविष्यवाणी की कि इस की आयु मात्र सात दिनों की होगी और इसकी मृत्यु में कोई बिल्ली निमित्त बनेगी। यद्यपि जैन मुनि के लिए निमित्त ज्ञान व ज्योतिर्विद्या आदि का प्रयोग वर्जित होता है, किन्तु मिथ्या अज्ञान को दूर करने तथा धर्म-प्रभावना की दृष्टि से उन्होंने यह भविष्यवाणी की थी। आचार्य भद्रबाहु द्वारा की गई भविष्यवाणी ही सत्य सिद्ध हुई और उस बालक की मृत्यु में द्वार की एक ऐसी अर्गला निमित्त बनी जिस पर बिल्ली का आकार बना हुआ था। आचार्य भद्रबाहु की प्रतिष्ठा सर्वत्र संस्थापित हो गई। आ. भद्रबाहु के उपदेश से प्रभावित होकर राजा जितशत्रु ने श्रावक धर्म स्वीकार किया। ___आचार्य भद्रबाहु के मुनि जीवन में एक घटना और घटी, जिसका उल्लेख भी यहां प्रासंगिक है। एक व्यन्तर देव श्रावकों को अत्यधिक कष्ट दे रहा था जो वराहमिहिर का ही जीव था और जो मर कर व्यन्तर योनि में आया था। जनता उस व्यन्तर देव के उपद्रव से त्रस्त हो गई। अंत में जनसामान्य के कष्ट को दूर करने के लिए आ. भद्रबाहु ने पंचपद्यात्मक 'उवसग्गहर' नामक प्राकृत स्तोत्र की रचना की। इस स्तोत्र को 'पूर्व'-साहित्य से उद्धृत माना जाता है। विशेषावश्यक भाष्य और जिनभद्रगणि| आगमिक व्याख्या साहित्य में भाष्य-पद्धति का अत्यधिक महत्त्व है। मूल आगम व नियुक्ति- दोनों पर भाष्य लिखे गये। नियुक्तियों पर लिखे गये भाष्यों में विशेषावश्यक भाष्य को महनीय स्थान प्राप्त है। यह भाष्य आवश्यक नियुक्ति के प्रथम अध्ययन 'सामायिक' पर एक प्राकृत पद्यात्मक विस्तृत व्याख्यान है। इसे सामायिक भाष्य भी कहा जाता है। मलधारी हेमचन्द्र कृत बृहद्वृत्ति (शिष्यहिता) से युक्त विशेषावश्यक भाष्य के प्रस्तुत संस्करण में लगभग 3600 गाथाएं हैं। (यद्यपि स्वोपज्ञ वृत्ति व कोट्याचार्यकृत वृत्ति वाले संस्करणों में 4300 से अधिक गाथाएं हैं।) इससे इसकी बृहदाकारता स्वतः सिद्ध हो जाती है। 63. द्र. प्रबन्धकोश RODROOR@@RB0R [501 ROORBOORBOOROOR