Book Title: Visheshavashyak Bhashya Part 01
Author(s): Subhadramuni, Damodar Shastri
Publisher: Muni Mayaram Samodhi Prakashan

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Page 479
________________ यदनन्तरमीमऽपायौ प्रवर्तेते, यश्च सामान्यं गृह्णाति, सोऽर्थावग्रहः, यथाऽऽद्यो नैश्चयिकः, प्रवर्तते च 'शब्द एवाऽयम्' इत्याद्यपायाऽनन्तरमीहाऽपायौ, गृह्णाति च 'शाङ्खोऽयं' इत्यादिभाविविशेषापेक्षयाऽयं सामान्यम्। तस्मादर्थावग्रह एष्यविशेषापेक्षया सामान्यं गृह्णातीत्युक्तम्। ततस्तदनन्तरं किं भवति?, इत्याह तृतीयगाथायाम्- 'तत्तोऽणन्तरमित्यादि'। ततः सामान्येन शब्दनिश्चयरूपात् प्रथमापायादनन्तरं 'किमयं शब्दः शाङ्कः शावा?' इत्यादिरूपेहा प्रवर्तते। ततस्तद्विशेषस्य शङ्कप्रभवत्वादेः शब्दविशेषस्य 'शाङ्क एवायम्' इत्यादिरूपेणाऽपायश्च निश्चयरूपो भवति। अयमपि च भूयोऽन्यतद्विशेषाकांक्षावतः प्रमातु विनीमीहामपायं चापेक्ष्य, एष्यविशेषापेक्षया सामान्यालम्बनत्वाच्चाऽर्थावग्रह इत्युपचर्यते। इयं च सामान्य-विशेषापेक्षा तावत् कर्तव्या, यावदन्त्यो वस्तुनो भेदो विशेषः। यस्माच्च विशेषात् परतो वस्तुनोऽन्ये विशेषा न संभवन्ति सोऽन्त्यः, अथवा संभवत्स्वपि अन्यविशेषेषु यतो विशेषात् परतः प्रमातुस्तजिज्ञासा निवर्तते सोऽन्त्यः, तमन्त्यं विशेषं यावद् व्यावहारिकार्थावग्रहेहाऽपायार्थं सामान्य-विशेषापेक्षा कर्तव्या।। इति गाथात्रयार्थः // 282 // 283 // 284 // . है। इसके बाद ईहा व अपाय की प्रवृत्ति होती है, और जो सामान्य का ग्रहण करता है, वह अर्थावग्रह उसी प्रकार है जिस प्रकार प्रथम नैश्चयिक ज्ञान (अर्थावग्रह) है। 'यह शब्द ही है' -इत्यादि अपाय के बाद ईहा व अपाय प्रवृत्त होते हैं, यह (अपाय ज्ञान) भी 'यह शङ्ख का है' इत्यादि भावी विशेष ज्ञान की अपेक्षा से ('यह शब्द ही है' -यह ज्ञान) सामान्य ही है, इसलिए यह कहा जाता है कि भावी विशेष की अपेक्षा से अर्थावग्रह सामान्य का ग्राहक होता है। उसके बाद क्या होता है? इस (प्रश्न) का उत्तर तीसरी गाथा में (ततोऽनन्तरम् -इत्यादि) है। अर्थात् इसके बाद सामान्यतया शब्दनिश्चय रूप प्रथम अपाय के बाद, 'यह शब्द क्या शङ्ख का है या शृंगी वाद्य का?' इत्यादि रूप ईहा प्रवृत्त होती है। तदनन्तर, उसके विशेष 'शङ्ख से उत्पत्ति' आदि शब्दविशेष का 'यह शङ्ख का ही है' इत्यादि रूप में निश्चय रूप अपाय होता है। यह (अपाय) भी पुनः उसके अन्य विशेष (के ज्ञान) की आकांक्षा रखने वाले ज्ञाता को, भावी ईहा व अपाय की अपेक्षा से, तथा भावी विशेष (अपाय) की अपेक्षा से, तथा सामान्य का आलम्बन लिये हुए होने से, (पूर्वोक्त 'यह शङ्ख का ही है' -यह निश्चयात्मक ज्ञान भी) उपचार से अर्थावग्रह कहा जाता है। यह सामान्य-विशेष की अपेक्षा तब तक करनी चाहिए, जब तक अन्तिम वस्तु-भेद रूप से 'विशेष' (सम्भव) हो। जिसके बाद वस्तु के अन्य 'विशेष' सम्भावित न हो, वही 'अन्तिम विशेष' है, अथवा अन्य विशेषों के सम्भव होने पर भी, जिस 'विशेष' के बाद ज्ञाता की तत्सम्बन्धी जिज्ञासा निवृत्त हो, वही 'अन्तिम विशेष' है। उस अन्तिम 'विशेष' तक व्यावहारिक अर्थावग्रह में (उत्तरोतर) ईहा व अपाय की उपलब्धि हेतु सामान्य-विशेष सम्बन्धी अपेक्षा करनी चाहिए। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हआ // 282-284 // ---- विशेषावश्यक भाष्य - ---- 413

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