Book Title: Visheshavashyak Bhashya Part 01
Author(s): Subhadramuni, Damodar Shastri
Publisher: Muni Mayaram Samodhi Prakashan

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Page 481
________________ तरतमयोगाभावे तु किं भवति?, इत्याह तरतमजोगाभावेऽवाउ च्चिय धारणा तदंतम्मि। सव्वत्थ वासणा पुण, भणिया कालंतरे वि सई॥२८६॥ [संस्कृतच्छाया:- तरतमयोगाभावे अपाय एव धारणा तदन्ते। सर्वत्र वासना पुनर्भणिता कालान्तरेऽपि स्मृतिः॥] तरतमयोगाभावे ज्ञातुरग्रेतनविशेषाकाङ्क्षानिवृत्तावपाय एव भवति, न पुस्तस्याऽवग्रहत्वमिति भावः, तन्निमित्तानां पुनरीहादीनामभावादिति / यद्यग्रत ईहादयो न भवन्ति, तर्हि किं भवति?, इत्याह- तदन्तेऽपायान्ते धारणा तदर्थोपयोगाप्रच्युतिरूपा भवति। शेषस्य वासना-स्मृतिरूपस्य धारणाभेदद्वयस्य क्व संभवः?, इत्याह- 'सव्वत्थ वासणा पुणेत्यादि / वासना वक्ष्यमाणरूपा, तथा कालान्तरे स्मृतिः, सा च सर्वत्र भणिता। अयमर्थः- अविच्युतिरूपा धारणाऽपायपर्यन्त एव भवति, वासना-स्मृती तु सर्वत्र कालान्तरेऽप्यविरुद्ध // इति गाथार्थः / / 286 // एवं चाऽभिहितस्वरूपव्यावहारिकाऽवग्रहाऽपेक्षया यथाश्रुतार्थव्याख्यानमपि सूत्रस्याविरुद्धमेव, इति दर्शयन्नाह तारतम्य का योग (स्पष्ट, स्पष्टतर, स्पष्टतम, अधिक स्पष्टतम इत्यादि जिज्ञासाओं का क्रम) न हो तो क्या होगा? इस प्रश्न का समाधान किया जा रहा है // 286 // तरतमजोगाभावेऽवाउ च्चिय धारणा तदंतम्मि / सव्वत्थ वासणा पुण, भणिया कालंतरे वि सई॥ . . [ (गाथा-अर्थ :) तारतम्य योग के अभाव में 'अपाय' ही होता और उसके अन्त में धारणा होती है। वासना व स्मृति का तो सर्वत्र अन्य काल में भी होना कहा गया है।] व्याख्याः- तारतम्य योग के न होने पर, अर्थात् आगे विशेष को जानने की आकांक्षा न होने पर, "अपाय' ही होता है, अर्थात् वह 'अवग्रह' नहीं होता, क्योंकि उस (अवग्रह) के निमित्तभूत ईहा आदि का वहां सद्भाव नहीं होता। (प्रश्न) धारणा के जो दो भेद वासना व स्मृति (बताये गये) हैं, उनका सद्भाव कहां होगा? उत्तर दिया- (सर्वत्र वासना पुनः इत्यादि)। वासना का स्वरूप आगे कहेंगे, और कालान्तर में स्मृति, इनका सर्वत्र होना कहा गया है। तात्पर्य यह है कि अविच्युति रूप धारणा 'अपाय' पर्यन्त तक ही रहती है, किन्तु वासना व स्मृति तो सर्वत्र, कालान्तर में भी निर्विरोध रूप से होती हैं। यह गाथा का अर्थ पूर्ण हुआ // 286 // - इस प्रकार, व्यावहारिक अर्थावग्रह का जो स्वरूप बताया गया है, उसकी अपेक्षा से आगम के अनुरूप ही सूत्र-व्याख्यान करने में कोई विरोध भी नहीं रहता -इस तथ्य को प्रस्तुत किया जा रहा है- .. Via ---------- विशेषावश्यक भाष्य -------- 415 2

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