________________ उक्कमओऽइक्कमओ, एगाभावेऽवि वा न वत्थुस्स। जं सब्भावाहिगमो, तो सव्वे नियमियक्कमा य॥२९५॥ [संस्कृतच्छाया:- उत्क्रमतः, अतिक्रमतः एकाभावेऽपि वा न वस्तुनः। यत् स्वभावाधिगमः ततः सर्वे नियमितक्रमाश्च // ] एषामवग्रहादीनामुत्क्रमेणोत्क्रमतः, अतिक्रमेणाऽतिक्रमतः, अपिशब्दस्य भिन्नक्रमत्वादेकस्याऽप्यभावे वा यस्माद् न वस्तुनः सद्भावाऽधिगमः, तस्मात् सर्वे चत्वारोऽप्येष्टव्याः, तथा नियमितक्रमाश्च- सूत्रनिर्दिष्टपरिपाट्यन्विताश्च 'भवन्त्येतेऽवग्रहादयः' इति प्रक्रमाल्लभ्यते॥ इत्यक्षरयोजना॥ भावार्थस्तूच्यते-तत्र पश्चानुपूर्वी भवनमुत्क्रमः, अनानुपूर्वीभवनं त्वतिक्रमः, कदाचिदवग्रहमतिक्रम्येहा, तामप्यतिलठ्याऽपायः, तमप्यतिवृत्त्य धारणेति, एवमनानुपूर्वीरूपोऽतिक्रम इत्यर्थः। एताभ्यामुत्क्रम-व्यतिक्रमाभ्यां तावदवग्रहादिभिर्वस्तुस्वरूपं नावगम्यते। तथा, एषां मध्ये एकस्याऽप्यन्यतरस्याऽभावे वैकल्येन वस्तुस्वभावावबोध इत्यसकृदुक्तप्रायमेव। ततः सर्वेऽप्यमी एष्टव्याः,न त्वेकः द्वौ. त्रयो वेत्यर्थः। // 295 // उक्कमओऽइक्कमओ, एगाभावेऽवि वा न वत्थुस्स / जं सब्भावाहिगमो, तो सव्वे नियमियक्कमा य॥ ___ [(गाथा-अर्थ :) चूंकि उत्क्रम से, या अतिक्रम से, या (अवग्रह आदि चारों में से) किसी एक का भी अभाव होने पर वस्तु के सद्भाव का ज्ञान नहीं होता, इसलिए सभी (अवग्रह आदि चारों होते हैं और वे) नियत क्रम से ही होते हैं।] - व्याख्याः - (उत्क्रमतः, अतिक्रमतः)। इन अवग्रह आदि (चारों) का उत्क्रम से या अतिक्रम से / 'अपि' (भी) शब्द से यह सूचित होता है कि भिन्न क्रम होने के कारण, या (चारों में से) एक का भी.अभाव होने से, चूंकि वस्तु के सद्भाव का बोध नहीं होता है, इसलिए (अवग्रह आदि) सभी चारों का होना अपेक्षित (आवश्यक) है, तथा ये अवग्रह आदि नियत क्रम से होते हैं, और सूत्र में निर्दिष्ट परिपाटी (क्रम) से युक्त होते हैं- यह प्रकरणवश अर्थ उपलब्ध होता है। यह प्रस्तुत गाथा की अक्षरशः योजना (के अनुसार अर्थ-व्याख्या) हुई। अब भावार्थ कहा जा रहा है- उत्क्रम का अर्थ है-क्रम का उलट जाना (अन्त से पीछे जाने का क्रम), और अतिक्रम का अर्थ है- आनुपूर्वी (नियत क्रम) का न होना, (जैसे-) कभी अवग्रह का अतिक्रमण कर ईहा का होना, (कभी) ईहा को भी लांघ कर अपाय का हो जाना, (कभी) उस (अपाय) का भी अतिक्रमण कर धारणा का होना / और इनके मध्य में किसी एक का भी अभाव हो जाता है तो अपरिपूर्ण रूप से वस्तु-स्वभाव का बोध होता है -इसे हम कई बार कह चुके हैं। इसलिए ये सभी होने चाहिएं, न कि एक, या दो, या तीन -यह भाव है। ------ विशेषावश्यक भाष्य -------- 429